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Dahegaon-Gowari Coal Mining Project : 10 गांव के ग्रामीण विस्थापन के कगार पर... छत्तीसगढ़ में शुरू हुआ विरोध, पद्मश्री शमशाद बेगम ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र

Dahegaon-Gowari Coal Mining Project : पद्मश्री शमशाद बेगम ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस परियोजना पर आपत्ति दर्ज कराई है। इस परियोजना के कारण 10 गांव पूरी तरह से उजड़ जाएंगे, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है

Dahegaon-Gowari Coal Mining Project : 10 गांव के ग्रामीण विस्थापन के कगार पर... छत्तीसगढ़ में शुरू हुआ विरोध, पद्मश्री शमशाद बेगम ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
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By Meenu Tiwari

Dahegaon-Gowari Coal Mining Project : महाराष्ट्र के नागपुर जिले में प्रस्तावित दहेगांव-गोवारी कोयला खनन परियोजना का विरोध अब छत्तीसगढ़ में भी व्यापक रूप से हो रहा है। समाजसेवी से लेकर सोशल मीडिया लवर भी इसका विरोध कर रहे हैं. इसी कड़ी meसामाजिक कार्यकर्ता और सहयोगी जन कल्याण समिति की अध्यक्ष पद्मश्री शमशाद बेगम ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखकर इस परियोजना के खिलाफ अपनी चिंता व्यक्त की है. पद्मश्री शमशाद बेगम ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस परियोजना पर आपत्ति दर्ज कराई है।


पत्र में किया उल्लेख- 10 गांव पूरी तरह से उजड़ जाएंगे


शमशाद बेगम ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि इस परियोजना के कारण 10 गांव पूरी तरह से उजड़ जाएंगे, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने जनसुनवाई में ग्रामीणों की चिंताओं को पूरी तरह नजरअंदाज किया। यह परियोजना सीधे तौर पर ग्रामीणों के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है।


14 सितंबर को राष्ट्रपति भवन को मेल भेजा था, अभी तक कोई जवाब नहीं

शमशाद बेगम ने अपने पत्र में यह भी बताया कि उन्होंने 14 सितंबर को राष्ट्रपति भवन को एक मेल भेजा था, लेकिन अभी तक उसका कोई जवाब नहीं मिला है। उनका मानना है कि संभवतः यह मेल उच्च अधिकारियों तक नहीं पहुंच पाया। यदि मेल को समय पर संज्ञान में लिया जाता, तो उन्हें अब तक उसका उत्तर मिल गया होता। यह स्थिति यह दर्शाती है कि प्रशासनिक प्रक्रियाएं कितनी कमजोर हो गई हैं।


उन्होंने कहा, “यह जनसुनवाई पूरी तरह से दोषपूर्ण थी, जिसमें संबंधित अधिकारियों ने जनसंवेदना नियमों का उल्लंघन किया। ऐसे में हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हमारी आवाज सुनी जाएगी?” शमशाद बेगम का यह पत्र न केवल प्रशासन के प्रति सवाल उठाता है, बल्कि स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।



10 गांव के लोग विस्थापन के कगार पर

शमशाद बेगम ने बताया कि वह हाल ही में महाराष्ट्र में एक महिला कमांडो टीम की बैठक में गई थीं। इस दौरान जब उन्होंने खनन प्रस्तावित क्षेत्र का दौरा किया, तो वहां के ग्रामीणों की परेशानी देखकर उन्होंने राष्ट्रपति को मदद की गुहार लगाई। उन्होंने बताया कि इस परियोजना के कारण करीब 10 गांव के लोग विस्थापन के कगार पर हैं और खदान शुरू होने पर उन्हें अपनी जगह छोड़नी पड़ेगी।


शमशाद बेगम ने कहा, “यहां की जनसुनवाई तो की गई, लेकिन अधिकारियों ने ग्रामीणों की आपत्तियों को नकार दिया। पंचायतों से एनओसी लेना भी उचित नहीं समझा गया।” यह स्थिति स्थानीय लोगों की आजीविका और उनके अधिकारों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है।

समाजसेवी योगेश अनेजा का बयान

इस आंदोलन से जुड़े नागपुर के समाजसेवी योगेश अनेजा ने बताया कि राष्ट्रीय खनिज नीति के अनुसार प्राकृतिक खनिज संसाधनों का मालिकाना हक जनता का है, जबकि सरकार केवल संरक्षक की भूमिका निभाती है। इसके बावजूद, इस खनन परियोजना के लिए ग्रामीणों से कोई राय नहीं ली गई।

उन्होंने कहा, “यह जनसुनवाई तब आयोजित की गई जब परियोजना का 95 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका था। यह खदान गोड़ेवाड़ा जलाशय के निकट स्थित है, जिससे वलनी, खंडाला, पारडी, दहेगांव-गोवारी, खैरी, तोंडाखैरी, बोरगांव, झुनकी, सिंदी और बेल्लोरी सहित आसपास के कई गांव सीधे प्रभावित होंगे।” योगेश अनेजा ने चेतावनी दी कि खदान संचालन से भूगर्भीय जलस्रोत नष्ट हो जाएंगे, जिससे कुएं, पनघट और तालाब सूखने का खतरा है।




उनका कहना है कि इस परियोजना का असर केवल 10 गांवों पर नहीं, बल्कि 10 लाख से अधिक लोगों के जीवन पर पड़ेगा। अगर खनन कार्य शुरू होता है, तो यह स्थानीय लोगों के लिए संकट का कारण बनेगा।

गौरतलब है की दहेगांव-गोवारी कोयला खनन परियोजना का विरोध अब व्यापक रूप ले चुका है। शमशाद बेगम और योगेश अनेजा जैसे समाजसेवी इस मुद्दे को उठाकर स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


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