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Chhattisgarhi Musical Instruments: गुम होती छत्तीसगढ़ी धुनों को फिर से जिंदा कर रहे हैं कलाकार संजू सेन, विलुप्त हो रहे इन वाद्य यंत्रो से आती है पक्षियों की आवाज

समय की धारा में जहां पारंपरिक कलाएं और सांस्कृतिक विरासत धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के एक छोटे से गांव तवेरा के संजू सेन इन धरोहरों को सहेजने में जुटे हैं। संजू सेन न सिर्फ छत्तीसगढ़ी संस्कृति के प्रति गहरा जुड़ाव रखते हैं, बल्कि उन्होंने इसे जीवित रखने के लिए एक अनूठा और सराहनीय मार्ग चुना है।

Chhattisgarhi Musical Instruments: गुम होती छत्तीसगढ़ी धुनों को फिर से जिंदा कर रहे हैं कलाकार संजू सेन, विलुप्त हो रहे इन वाद्य यंत्रो से आती है पक्षियों की आवाज
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By Supriya Pandey

समय की धारा में जहां पारंपरिक कलाएं और सांस्कृतिक विरासत धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के एक छोटे से गांव तवेरा के संजू सेन इन धरोहरों को सहेजने में जुटे हैं। संजू सेन न सिर्फ छत्तीसगढ़ी संस्कृति के प्रति गहरा जुड़ाव रखते हैं, बल्कि उन्होंने इसे जीवित रखने के लिए एक अनूठा और सराहनीय मार्ग चुना है।


140 छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्रों का किया संग्रह-

संजू सेन ने बस्तर से लेकर सरगुजा तक छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों की यात्रा की और वहां की पारंपरिक वाद्य यंत्रों को न सिर्फ पहचाना, बल्कि उन्हें बजाने की विधा भी सीखी। यही नहीं, उन्होंने इन वाद्य यंत्रों को खुद तैयार कर अपने पास सुरक्षित रखा। आज उनके पास जिनमें से कई ऐसे हैं, जो अब देखने को नहीं मिलते। इन वाद्य यंत्रों की खास बात यह है कि ये सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि प्रकृति की आवाज़ों को भी कृत्रिम रूप से जीवंत कर देते हैं- जैसे शेर की दहाड़, चिड़ियों की चहचहाहट और झरने की कलकल। वाद्य यंत्रों में सिंह बाजा, दोहरी बांसुरी, गोपी बाजा, एकतारा, खजेरी, तंबूरा, नागदा, देव नागदा, मारनी ढोल, माड़िया ढोल, अकुम, तोड़ी, तोरम, मोहिर, धुरवा ढोल, मांदरी, चरहे, मिरगीर ढोल, देव मोहिर है. 70 से ज्यादा वाद्ययंत्रो मट्टी, बांस और लकड़ी से बनाया गया है।


पेशे से सैलून है संजू-

संजू सेन सैलून चलाते हैं, जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। लेकिन उनका दिल सदैव कला और संस्कृति से जुड़ा रहा। कोरोना महामारी के दौरान जब लोगों का रोजगार छिना, तब संजू ने तय किया कि वे अपने राज्य की सांस्कृतिक पहचान को संजोएंगे। इस उद्देश्य के साथ उन्होंने अपने सफर की शुरुआत की, और धीरे-धीरे एक टीम भी बना ली जिसमें गांव के बच्चे भी शामिल हैं।

संजू सेन मंच पर इन वाद्य यंत्रों के साथ सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देते हैं। अब उनके साथ गांव के बच्चे भी नृत्य और लोकगीतों में भाग लेने लगे हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर एक सांस्कृतिक जागरूकता का माहौल बना है। संजू का मानना है कि किसी भी प्रदेश की पहचान उसके पहनावे, रहन-सहन और संगीत से होती है। और जब संगीत पारंपरिक वाद्य यंत्रों से जुड़ा हो, तो वह केवल ध्वनि नहीं बल्कि इतिहास बोलता है।

संजू सेन का सपना है कि छत्तीसगढ़ की नई पीढ़ी इन वाद्य यंत्रों को जाने, समझे और अपनाए। इसके लिए वे सरकार से चाहते हैं कि इस सांस्कृतिक प्रयास को प्रोत्साहित किया जाए। संजू सेन की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति के जुनून की नहीं, बल्कि एक राज्य की आत्मा को जीवित रखने की कोशिश की कहानी है जो लोगों को प्रेरणा देती हैं।

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