Chhattisgrah Tarkash 2024: हैवानित और हैवान सिस्टम...
Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय दीक्षित का निरंतर 15 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
तरकश, 28 जुलाई 2024
संजय के. दीक्षित
हैवानित और हैवान सिस्टम
राजधानी रायपुर से लगे जिले में स्थित एक बड़ी शैक्षणिक संस्था में पांच बरस की नर्सरी की बच्ची से दुष्कर्म की घटना हो गई। घर लौटने पर मासूम को जब तकलीफ बढ़ी तो उसके घर वाले एमडी के पास ले गए। डॉक्टर ने कहा, गायनिक से दिखाइये। लेडी डॉक्टर ने जांच के बाद प्रिस्क्रिप्शन में लिखा...प्रायवेट पार्ट से ब्लीडिंग और व्हाईट डिस्चार्ज मिला है। पता चला, बच्ची को स्कूल की आया टॉयलेट कराने वाशरुम ले गई और उसे छोड़कर किसी और काम में व्यस्त हो गई। करीब घंटे भर बाद वाशरुम के पास बच्ची रोते हुए मिली। याने वाशरूम में उसके साथ किसी ने हैवानियत की। मगर उसके बाद सिस्टम की हैवानियत शुरू हो गई। प्रिस्क्रिप्शन में इतना साक्ष्य होने के बाद भी मासूम का मेडिकल कराने की बात तो दूर, मामले पर पर्दा डालने का काम शुरू हो गया। एसपी साब हालांकि तेज-तर्रार हैं मगर पता नहीं खून गरम कर देने वाले इस केस में वे ठंडे कैसे पड़ गए? लिहाजा, परिजन एक विधायक को पकड़कर आईजी से फरियाद करने पहुंचे। मगर विधायकजी को लोगों ने समझा दिया, आपको मंत्री बनना है...आप काहे को पचड़े में पड़ते हो। एक कांग्रेस विधायक के दरवाजे पर बच्ची के परिजन पहुंचे तो उन्होंने हाथ खड़ा कर दिया। बताते हैं, कांग्रेस विधायक के घर का कोई बच्चा वहां पढ़ता है। हालांकि, आईजी के निर्देश पर एक महिला एडिशनल एसपी जांच करने पीड़िता के घर पहुंची मगर बयान लेने की बजाए वे परिजनों को चतुराईपूर्ण प्रेशर के साथ उन्हें कंविंस करने में कामयाब हो गई कि छोटी बच्ची है...मेडिकल कराना होगा...बार-बार थाने का चक्कर लगेगा। बच्ची पर इसका प्रभाव ठीक नहीं पडे़गा, उपर से आपलोगों की प्रतिष्ठा खराब होगी। अब पीड़िता के घरवाले क्या करते...पक्ष-विपक्ष के विधायकों को देख लिया, एसपी, आईजी कुछ नहीं किए। उन्होंने भी बेरहम सिस्टम के आगे सरेंडर कर दिया। ऐसा भी नहीं कि किसी को बदनाम करने ऐसा किया जा रहा हो...जैसा प्रचारित करने का प्रयास किया गया। पीड़िता का परिवार काफी धन-दौलत वाला है...फैक्ट्री, होटल का काम है। फिर अपनी मासूम बच्ची को कोई मोहरा क्यों बनाएगा। और यह भी...जब सिस्टम उसके साथ ऐसा हैवान हो सकता है तो फिर सोचिए आम आदमी के साथ क्या होता होगा।
प्रभारी मंत्री, प्रभारी सचिव का संयोग
जिले के विभाजन में सक्ती के अलग होने के बाद भी जांजगीर छत्तीसगढ़ का टॉप टेन जिले में आता है। लॉ एंड आर्डर के मामले में तो टॉप थ्री बोल सकते हैं। सुबह से क्राइम की खबरें आनी शुरू हो जाती हैं। किसिम-किसिम के अपराध होते हैं। कलेक्टर तक को भी नहीं बख्शते। याद होगा, एक कलेक्टर हनी ट्रेप के शिकार होकर अपनी कुर्सी गंवा बैठे थे। खैर बात प्रभारी मंत्री और प्रभारी सचिव के संयोग की। इस समय ओपी चौधरी जांजगीर के प्रभारी मंत्री हैं और सोनमणि बोरा प्रभारी सचिव। दोनों के साथ कॉमन यह है कि ओपी जांजगीर के कलेक्टर रह चुके हैं और बोरा भी। कलेक्टरी के तौर पर बोरा का पहला जिला जांजगीर था और ओपी का दूसरा जिला। बोरा जब बिलासपुर के कमिश्नर थे, उस समय ओपी जांजगीर के कलेक्टर रहे। बोरा जब दौरे में जाते थे तो कलेक्टर के नाते जाहिर तौर पर कमिश्नर का वेलकम करना ही पड़ता है। मगर वक्त का पहिया घूमना बोलें...या फिर संयोग...ओपी अब मंत्री हैँ और बोरा प्रमुख सचिव.
आईएएस की पोस्टिंग
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय नीति आयोग की बैठक में शामिल होने दिल्ली गए हैं। वहां से लौटने के बाद आईएएस पोस्टिंग के कुछ आदेश निकलेंगे। दो संभागों में कमिश्नरों की पोस्टिंग करनी ही पड़ेगी। इस समय रायपुर डिविजनल कमिश्नर डॉ0 संजय अलंग के पास बिलासपुर का भी चार्ज है। दो दिन बाद 31 जुलाई को वे रिटायर हो जाएंगे। सो, सरकार को इन दोनों जिलों में नए कमिश्नर पोस्ट करना होगा। बता दें, सचिव और कमिश्नर का रैंक सेम होता है। और सचिव में इस समय अफसरों की भरमार हो गई है। डायरेक्ट में भी और प्रमोटी में भी। सिकरेट्रीज इतने हो गए हैं कि गिनना मुश्किल हो गया है। सो, सरकार को बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।
आईजी बदलेंगे
जैसा कि एक बार तरकश में लिख चुके हैं कि अब थोक में आईएएस, आईपीएस की लिस्ट नहीं निकलेगी। एक-एक, दो-दो करके ही तबादले होंगे। मसलन बलरामपुर एसपी को सीएम सिक्यूरिटी में लाया गा और राजेश अग्रवाल को उनकी जगह भेजा गया। इसके बाद फिलहाल एसपी लेवल पर कोई लिस्ट नहीं निकलेगी...कोई हिट विकेट हो गया तो उसकी बात अलग है। आईजी स्तर पर जरूर कुछ बदलाव हो सकते हैं। कुछ पुलिस रेंजों के आईजी बदलने पर सरकार विचार कर रही है।
नए मंत्री, कमजोर विपक्ष!
कांग्रेस की सड़क की लड़ाई में सानी नहीं है मगर सदन में कमजोर पड़ जाती है। चाहे पांच साल सत्ता में रही तब भी भूपेश बघेल के मंत्रियों का परफार्मेंस पुअर रहा। रविंद्र चौबे और अकबर के अलावा बाकी मंत्री आए दिन हाउस में घिर जाते थे। बीजेपी के अकेले अजय चंद्राकर सबको पस्त कर देते थे और अब कांग्रेस विपक्ष में हैं, जब भी यही हाल है। नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत सधे और मारक शब्दों, शेरों-शायरियों के जरिये थोड़े-बहुत माहौल जरूर बना लेते हैं। भूपेश बघेल पांच साल के सीएम रहे हैं। मगर दोनों की अपनी मर्यादा है। हमले करने का काम आमतौर पर मंझोले सदस्य करते हैं, जो कि विपक्ष के पास है नहीं। ऐेसे में, विपक्ष का रोल सत्ता पक्ष को निभाना पड़ रहा है। सत्ता पक्ष के कई विधायकों ने इस बार अपने ही मंत्रियों को टारगेट करते सवाल दाग। मानसून सत्र में तो ऐसा ही नजर आया। अलबत्ता, विष्णुदेव साय के नए और पहली बार के मंत्री भी विपक्ष पर हॉवी होते नजर आए। नक्सली मामले पर डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने दमदारी से जवाब दिया। तो वित्त मंत्री ओपी चौधरी भी सत्ता और विपक्ष, दोनों तरफ से आए बाउंसरों को उसी अंदाज में उठाकर मारा। हालांकि, कुछ नए मंत्रियों ने ओवरकांफिडेंस में ज्यादा ही परफार्मेंस दिखा दिया। लक्ष्मी को माफी मांगनी पड़ गई तो दयालदास को स्पीकर ने टोका।
दो सवाल आपसे
1. ऑल इंडिया सर्विस के किस अफसर को मंत्री से अतिशय नजदीकियां भारी पड़ गई?
2. छत्तीसगढ़ का अगला DGP कौन होगा?