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Chhattisgarh Tarkash: शुक्रिया... तरकश के 15 साल

छत्तीसगढ़ तरकश: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय के. दीक्षित का निरंतर 15 साल से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Chhattisgarh Tarkash: शुक्रिया... तरकश के 15 साल
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By Sandeep Kumar Kadukar

तरकश, 31 दिसंबर 2023

संजय के. दीक्षित

शुक्रिया...15 बरस

आप सभी के पसंदीदा साप्ताहिक स्तंभ तरकश ने डेढ़ दशक कंप्लीट कर लिया है। 2008 से दैनिक हरिभूमि में इस स्तंभ का सफर प्रारंभ हुआ था। हालांकि, कुछ अखबारों में तरकश के तीर नाम से यह कॉलम पहले भी छपता रहा। मगर, संस्थान बदलने के क्रम में निरंतरता टूट गई थी। इन्हीं दिनों...तारीख तो याद नहीं...पुराने मंत्रालय में तब के हायर एजुकेशन सिकरेट्री सीके खेतान के कमरे में हरिभूमि के प्रधान संपादक हिमांशु द्विवेदीजी से अचानक मुलाकात हो गई। मुलाकात पुरानी थी मगर उस रोज बरबस बात तरकश शुरू करने की निकली। और, हिमांशुजी ने सहमति देने में देर नहीं लगाई, बल्कि इसके लिए रविवार का दिन भी तय कर दिया। उस समय मेरे समक्ष समस्या यह थी कि मैं दिल्ली के एक नेशनल डेली से जुड़ा था। ऐसे में, एस. दीक्षित नाम से तरकश का प्रकाशन शुरू हुआ, उसके बाद से लगातार जारी है। वैसे, 15 बरस की अवधि बहुत लंबी नहीं होती, पर इसे एकदम छोटी भी नहीं कही जा सकती। वो भी बिना ब्रेक। यह अवसर मुहैया कराने के लिए हरिभूमि और हिमांशुजी को आभार। आमतौर पर लीडिंग अखबार गेस्ट कॉलमनिस्ट को...वो भी तरकश जैसा कॉलम...लिखने की इजाजत नहीं देते...हिमांशुजी ने मौका दिया। इन 15 बरसों में हमने भी क्वालिटी मेंटेन करने का भरसक प्रयास किया...खबरों को राग-द्वेष से दूर रखा। खरी-खरी लिखने के चक्कर में कई लोग नाराज हुए...फिर कुछ अच्छा हुआ तो खुश भी। बहरहाल, पाठकों के विश्वास ने तरकश को इतना सशक्त बना दिया कि सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग इसकी खबरों पर संज्ञान लेने लगे। अनेक ऐसे मामले हैं, जिसे तरकश में आते ही सिस्टम हरकत में आया और कार्रवाइयां हुईं। तरकश के प्रति इस विश्वास के लिए लाखों पाठकों को शुक्रिया।

अघोषित डिप्टी सीएम

पूर्व ब्यूरीक्रेट्स ओपी चौधरी भले ही डिप्टी सीएम नहीं बन पाए मगर पोर्टफोलियो उन्हें ऐसा मिला है कि उनके पास सारे विभागों की चाबी रहेगी। ओपी को सबसे अहम विभाग फायनेंस मिला है। जाहिर है, लक्ष्मी के बिना कोई काम आगे नहीं बढ़ता। वैसे ही फायनेंस के अप्रूवल के बिना न कोई योजना आगे बढ़ती है और न ही कोई खरीदी, बिक्री या फिर पोस्टिंग, प्रमोशन की फाइल मूव होती। किस विभाग को कितना पैसा मिला है, कितना खर्च किया, कितना धर के बैठा है, पूरी कुंडली फायनेंस के पास होती है। कौन फिजूलखर्ची कर रहा, कौन लिमिट से उपर जाकर लग्जरी गाड़ी खरीद रहा, इस पर भी फायनेंस की नजर रहती है। ओपी को आवास और पर्यावरण विभाग भी मिला है। यह विभाग उसे ही मिलता है, जो पार्टी या फिर सीएम का विश्वस्त हो। रमन सिंह सरकार में राजेश मूणत लंबे समय तक आवास और पर्यावरण मंत्री रहे। इसमें टाउन एंड कंट्री प्लानिंग समेत पौल्यूशन बोर्ड, एनआरडीए, आरडीए जैसे आते हैं। कालोजनाइजर हो या आम आदमी, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से पाला पड़ता ही है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल

मंत्री ओपी चौधरी ने विभाग मिलने से पहले ही रायगढ़ में सीएम के मंच से बड़ी घोषणा कर दी। उन्होंने कहा, भ्रष्टाचार न होने दूंगा और किसी को करने दूंगा। बोले, कोई पैसा मांगे तो मुझे बताना, उसकी खैर नहीं होगी। ओपी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद किया और पार्टी ने उन्हें आवास और पर्यावरण की जिम्मेदारी दे दी। ऐसे में, जमीनों को खेला करने वाले भूमाफियाओं और कालोनाइजरों की चिंताएं बढ़ गई है क्योंकि इस विभाग में बिना रैकेट को साधे फाइल आगे बढ़ती नहीं।

साय के घर साय

सीएम विष्णु देव साय दो तीन दिन के गृह जिले जशपुर के दौरे पर रहे। इस दौरान कल 30 दिसंबर को इलाके के लोगों से मेल मुलाकात का कार्यक्रम रखा। इस दौरान देर रात करीब 10 बजे एक चेहरे को देखकर हैरान रह गए। आगंतुक थे नंदकुमार साय। कभी बीजेपी के दिग्गज नेता रहे साय जी। विष्णु देव उनके सामने बच्चे रहे। मगर क्या करें, जहां घुटने भर भी पानी नहीं था, बड़े साय जी ने खुद ही अपनी कश्ती डूबो ली। बार बार आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ने के बावजूद पार्टी ने केंद्रीय मंत्री का दर्जा दिया। पर पता नहीं उनके दिमाग को क्या हुआ...सरकार बनने से ठीक पहले बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में चले गए और अब हार के बाद कांग्रेस भी छोड़ दिए हैं।

अफसरों की चुनौती

ब्यूरोक्रेसी में चर्चाएं हैं...सीएम सचिवालय को कंप्लीट करने के लिए दिल्ली से प्रमुख सचिव और एडिशनल चीफ सिकरेट्री रैंक के अफसरों से कुछ बात चली थी मगर फिलहाल वे आने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। एक तो अधिकांश अफसरों के बच्चे वहां पढ़ रहे हैं और दूसरा जो सबसे अहम है वह है नई सरकार, नए चेहरे। नई सरकार में सीएम के अलावा दो-दो डिप्टी सीएम हैं। उनके बाद कुछ पुराने मंत्री। ऐसे में, सीएम सचिवालय के अफसरों के सामने कोआर्डिनेशन की बड़ी चुनौती होगी।

न्यू ईयर खराब-1

सरकार बदलने के बाद प्रशासनिक सर्जरी नहीं होने से अफसरों की स्थिति विकट हो गई है। अटकलें थी मुख्यमंत्री के शपथ के बाद उठापटक मच जाएगी। मगर पखवाड़ा से अधिक टाईम निकल जाने के बाद भी कोई सुगबुगाहट नहीं है। इस चक्कर में अफसरों का न्यू ईयर खराब हो रहा है। जाहिर है, सरकार बदलने के बाद मंत्रालय समेत कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों में व्यापक चेंजेस होते हैं। 2018 में सरकार बदली तो पहली लिस्ट ही 58 अधिकारियों की निकली थी। इस बार वैसा नहीं फिर भी अंदेशा तो था ही कुछ अवश्य होगा। मगर अभी वेट ही चल रहा है। अफसरों को खटक यह रहा कि क्रीज पर अगर टिक गया तो फिर बल्ले-बल्ले। मगर अगर हटा दिया तो न्यू ईयर निकल जाने के बाद क्या करेंगे। वैसे भी हटना है, सो पहले ही हटा दे ंतो कम-से-कम फेमिली के साथ कहीं घूम फिर आएं। मगर स्थिति पेंडुलम टाईप हो गई है...बेचारे उम्मीद और आशंका में दुबले होते जा रहे हैं...मेरा क्या होगा देवों के देव विष्णु देव। जो अधिकारी पहले से लूपलाईन में हैं, वे भी रायपुर नहीं छोड़ पा रहे। दरअसल, यही तो फीलि्ंडग का टाईम है। नई सरकार से ठीक ठाक केमेस्टी बन गई तो फिर पांच साल बढ़िया निकल जाएगा।

न्यू ईयर खराब-2

न्यू ईयर अफसरों का ही नहीं, छत्तीसगढ़ के बड़े कामकाज याने ठेका, सप्लाई वालों का भी खराब हो गया। इस उम्मीद में कारोबारियों ने न्यू ईयर सेलिब्रेशन का ट्रेवल प्लान बना लिया था कि किसी भी सूरत में 20 से 25 दिसंबर के बीच मंत्रियों को विभागों का बंटवारा हो ही जाएगा। सो, काम वाले मंत्रियों को बुके वगैरह देकर निकल लेंगे। मगर साल गुजरने से एक दिन पहले जाकर मंत्रियों को विभाग वितरण हो पाया। ऐसे में, कई ठेकेदारों ने अपना टूर प्रोग्राम केंसिल करा लिया है। उन्हें डर था कि सैर सपाटे पर गए और विभाग बंटा तो दूसरे लोग कहीं खो न कर दें। रायपुर के एक बडे़ ट्रेवर्ल्स एजेंसी ने बताया, मंत्रियों के विभाग न बंट पाने के फेर में 32 लोगों ने अपना प्रोग्राम केंसिल कर दिया है। इनमें सिंगापुर, भूटान और थाईलैंड जाने वाले अधिक थे।

मंत्रियों में कंपीटिशन

पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने नए, पुराने मंत्रियों समेत सभी विधायकों को रिचार्ज कर दिया है। छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी के सभी विधायकों को भांति-भांति के सपने आने लगे हैं। उम्मीद के चक्कर में विधायक फुल एक्शन मोड में हैं। आलम यह है कि छह महीने का दौरा और मेल मुलाकात महीने भर में पूरा कर लिया है। मंत्री अलग बेचैन हैं...कैसे अपनी अलग लकीर खींचे। दरअसल, तीन राज्यों में सरकार के गठन में भाजपा ने जो प्रयोग किए हैं, उसके दूरगामी परिणाम दिखेंगे। भाजपा के लोग भी मान रहे हैं कि मंत्रियों का जलवा अब पुरानी बात हो गई। बीजेपी के एक बड़े नेता ने दबी जुबां से कहा, बीजेपी सरकार का 15 साल मंत्रियों, अफसरों के लिए स्वर्णिम काल रहा। कांग्रेस के भूपेश बघेल सरकार में भी मंत्रियों थोड़ा-बहुत जलवा तो काटा ही। मगर अब काम का जलवा रहेगा। याने जो मंत्री काम करेगा, सरकार में उसका प्रभाव दिखेगा। जाहिर है, मंत्रियों में अच्छा करने का कंपीटिशिन पैदा होगा। खासकर नए में। नए में अरुण साव, विजय शर्मा डिप्टी सीएम, पूर्व आईएएस ओपी चौधरी, श्याम बिहारी जायसवाल, लखनलाल देवांगन, टंकराम वर्मा और लक्ष्मी राजवाड़े मंत्री हैं। जाहिर है, सभी अपनी अलग लकीर लंबी करने का प्रयास करेंगे। इनमें तीन काफी तेज-तर्रार हैं। मुख्य तौर पर बढ़ियां करने का कंपीटिशिन इन्हीं तीन मंत्रियों के बीच रहेगा। चलिये, स्वस्थ्य कंपीटिशिन से राज्य को फायदा ही होगा।

हाथ की लकीरें

पूर्व विधायक रामदयाल उईके ने अपने ही समाज से जुड़े सिकरेट्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिख संविदा में पोस्टेड अफसर को हटाने की मांग कर डाली है। रामदयाल समय-समय पर चर्चा में आते रहे हैं। सबसे पहले पटवारी की नौकरी छोड़ बीजेपी की टिकिट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत कर चर्चा के केंद्र बने थे। फिर राज्य बनने के बाद अजीत जोगी के चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने मरवाही सीट खाली कर दी। तब बीजेपी को बड़ा सदमा लगा था तो सियासी पंडित भी रामदयाल के फैसले से हतप्रभ रह गए थे। हालांकि, जोगी सरकार में रामदयाल को इस त्याग के बदले युवा आयोग के चेयरमैन से संतोष करना पड़ा था। जाहिर है, उन्होंने पार्टी छोड़ने की अगर चूक नहीं की होती तो बीजेपी की 15 साल की सरकार में एकाध बार आदिवासी कोटे से मंत्री बनने का मौका मिल गया होता। बहरहाल, बीजेपी छोड़ने के बाद 14 साल कांग्रेस में रहे...15वे साल जब बीजेपी की नैया डूब रही थी कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाईन कर लिया। यदि कांग्रेस में रहे होते तो निश्चित तौर पर मंत्री पद मिलता क्योंकि वे पार्टी के दो कार्यकारी अध्यक्षों में शामिल थे। और, अब देखिए जब बीजेपी की सरकार बननी थी तो मोदी और कमल के इस लहर में अपनी सीट गंवा बैठे। ठीक ही कहा गया है, हाथ में जब राजयोग की लकीर नहीं हो तो इस तरह की गल्तियां खुद-ब-खुद होती जाती हैं, इन पर मानव का कोई वश नहीं होता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा में अनुपूरक पर चर्चा के दौरान सत्य को स्वीकार कर एक नए मंत्री घिर गए तो एक भी सीनियर सदस्य उनके पक्ष में खड़े नहीं हुए, क्यों?

2. विजय शर्मा के गृह मंत्री बनते ही पुलिस वालों की स्थिति क्यों खराब होने लगी है?


Sandeep Kumar Kadukar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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