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Chhattisgarh Tarkash 2025: नाम की लाल बत्ती!

Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 16 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Chhattisgarh Tarkash 2025: नाम की लाल बत्ती!
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By Sanjay K Dixit

तरकश, 16 मार्च 2025

संजय के. दीक्षित

नाम की लाल बत्ती!

विधानसभा के बजट सत्र के बाद निश्चित तौर पर बोर्ड और निगमों में अब नियुक्तियों होंगी. लोकसभा, नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव का ब्रेकर भी अब नहीं रहा. लिहाजा, बीजेपी के भीतर जोर आजमाइश तेज़ हो गई है. मगर ये भी सही है कि लाल बत्ती को लेकर नेता लोग जितना उत्सुकता और उतावलापन दिखाते हैं, बाद में यह भ्रम साबित होता है. ब्रेवरेज कारपोरेशन, सीएसआईडीसी, माइनिंग कारपोरेशन, टूरिज्म बोर्ड जैसे तीन-चार में अफसरों के रहमों-करम से थोड़ा-बहुत मिल भी जाता है. बाकी में गाड़ी और पेट्रोल के अलावा मिलता है सिर्फ पदनाम, जो गाड़ियों पर मोटे अक्षरों में लिखवाने का काम आता है. दरअसल, बोर्ड, निगमों के चेयरमैन को लेकर बड़ी भ्रान्ति है. सच्चाई यह है कि पावर पूरा प्रशासनिक अधिकारियों यानी एमडी के पास होता है.

साल में एकाध बार बोर्ड की मीटिंग होती है. उसमें चेयरमैन लोग चाय नाश्ता क़े साथ रुतबा झाड़ लें. टेंडर, सप्लाई से लेकर पेमेंट में चेयरमैन का कोई रोल नहीं होता. रमन सरकार की तीसरी पारी में अभनपुर के एक नेताजी को वेयर हाउस का चेयरमैन बनाया गया था. उन्होंने पदभार ग्रहण करते ही फूँ-फाँ करने की कोशिश की. मगर अंजाम ये हुआ कि किसी मसले पर नाराज होकर ऐन बोर्ड की मीटिंग से पहले चले गए बाहर...देखते हैं कैसे बैठक होती है. मगर MD ने उनकी गैर मौजूदगी में बोर्ड की मीटिंग करा सभी प्रस्ताव पास करा लिया. उसके बाद नेताजी क़े पास भूनभुनाने के अलावा कोई चारा नहीं था. क्योंकि, अफसरों ने बोर्ड, निगमो के संविधान में सबका रास्ता निकाल रखा है. अलबत्ता, ये जरूर है कि सरकार से तगड़ा संरक्षण है और खुद का गॉड्स तो फिर कोई बात नहीं. आखिर, अपवाद तो होता ही है.

इन कारपोरेशनों पर निगाहेँ

पिछली कांग्रेस सरकार ने सीएसआईडीसी और छत्तीसगढ़ ब्रेवरेज कारपोरेशन में नियुक्ति नहीं की. दोनों सबसे अधिक मलाईदार निगम माने जाते हैं. इसलिए किसी पोलिटिकल व्यक्ति की इसमें एंट्री नहीं दी गई. अब देखना है, विष्णुदेव सरकार का इन दोनों निगमों के प्रति क़्या स्टैंड रहता है. वैसे अगर ब्रेवरेज कारपोरेशन में नियुक्ति हुई तो चेयरमैन के लिए प्रबल प्रताप सिंह जूदेव की संभावना अत्यधिक है. उनके भाई युद्धवीर सिंह जूदेव रमन सिंह की दूसरी पारी में इस कारपोरेशन के चेयरमैन रह चुके हैं. तीसरी पारी में भी उन्हें इस निगम की कमान सौंपी गई थी, मगर वे मंत्री बनना चाहते थे, इसलिए पद नहीं संभाला. ऐसे में पांच वर्ष तक ब्रेवरेज कारपोरेशन चेयरमैन का पद खाली रह गया. इसके बाद कांग्रेस सरकार ने भी खाली ही रखा. कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह का नाम इस पद बहुप्रचारित हुआ मगर ताज उनके सिर सज नहीं सका. बहरहाल, प्रबल प्रताप को ब्रेवरेज के कामों की समझ है, सो उनकी नियुक्ति का अंदेशा जानकार लोग व्यक्त कर रहे हैं.

आईएएस पर ऐसा बोझ

आईएएस महादेव कावडे इस समय रायपुर और बिलासपुर के डिवीजनल कमिश्नर हैं. रायपुर, बिलासपुर बोले तो आधे से अधिक छत्तीसगढ़. इसके साथ पंडित सुंदर लाल शर्मा स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वाविद्यालय के कुलपति का भी प्रभार. महादेव कावडे को सिस्टम काबिल मान रहा है तो हम भी उनकी काबिलियत पर कोई संदेह खड़ा नहीं कर रहे हैं. किन्तु वे भी बेचारे आदमी हैं. सिस्टम को उनके साथ थोड़ी सहानुभूति बरतनी चाहिए. ऐसा भी नहीं कि छत्तीसगढ़ में आईएएस अफसरों की कमी पड़ गई है. इस समय सचिव स्तर पर 50 से अधिक आईएएस अधिकारी हैं. फिर भी, आश्चर्यजनक है...पिछली सरकार से कमिश्नर को डबल, ट्रिपल चार्ज देने की परिपाटी शुरू हुई, वो रुक नहीं पा रही. पिछली सरकार में संजय अलंग पहले बिलासपुर और सरगुजा संभाग के कमिश्नर रहे, फिर रायपुर और बिलासपुर के. अलंग इस सरकार में भी इसी पोर्टफोलियो के साथ कंटिन्यू किए. सरकार सुशासन पर तेज गति से काम कर रही है. सुधार के कई उल्लेखनीय काम हो रहे हैं. मगर यह भी सही है कि एक अफसर को आधे छत्तीसगढ़ का प्रभार देने से सुशासन के अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे।

कलेक्टर बड़े या सरकार?

अविभाजित मध्य प्रदेश के समय छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक कमिश्नर रहे मगर छत्तीसगढ़ राज्य बनने केबाद कलेक्टर नहीं चाहते कि कोई डायरेक्ट आईएएस अधिकारी कमिश्नर बने. यही वजह है कि पिछले डेढ़ दो दशक में केडीपी राव, सोनमणी बोरा, यशवंत कुमार जैसे चार से अधिक डायरेक्ट आईएएस अफसर कमिश्नर नहीं बन पाए. ब्यूरोक्रेसी के लोगों भी मानते हैं कि कलेक्टर नहीं चाहते कि प्रशासन में कोई पैरेलेल पॉजिशन खड़ा हो जाए. वैसे कमिश्नरों को पावर देने से चीजें ठीक होंगी. सरकार में बैठे शीर्ष अफसरों को इस पर विचार करना चाहिए.

कलेक्टर्स और डिरेल्ड एसपी

छत्तीसगढ़ में इस समय राजधानी रायपुर, न्यायधानी बिलासपुर, वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट जशपुर के साथ ही सूबे का सबसे कठिन जिला बलौदा बाजार को प्रमोटी आईपीएस अधिकारी संभाल रहे हैं. रायपुर में लाल उमेद सिंह, बिलासपुर में रजनेश सिंह, जशपुर में शशिमोहन सिंह और बलौदा बाजार में विजय अग्रवाल पुलिस कप्तान हैं. सबसे अहम यह है कि इन चारों की नियुक्ति में कोई सियासत नहीं...चारों पुलिस मुख्यालय के टेस्टेड अफसर हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि डायरेक्ट आईपीएस क्यों पिछड़ रहे हैं. जवाब मिलेगा, आईपीएस की कमजोर ट्रेनिंग और दूसरा कलेक्टरों से कॉम्पीटिशन. ट्रेनिंग की कमजोरी से फील्ड में वे फेल हो जा रहे हैं. और कलेक्टरों से प्रतिस्पर्धा में डिरेल्ड. कलेक्टर जिले के मुखिया होते हैं. 35 विभाग उनके अंदर होते हैं. फिर करोड़ों के DMF के मालिक. DMF में काम भी खुद देते हैं और चेक भी. जाहिर हैं, कलेक्टरों के लाइफस्टाइल ऊँचा रहेगा ही. SP के पास सिर्फ एक विभाग होता हैं... पुलिस. ऐसे में होता यह हैं कि कलेक्टर अगर बंगले में 10 लाख का जयपुरी पर्दा लगवा लिया तो एसपी की पत्नियों को भी वही चाहिए. कलेक्टर अगर सरकारी घर को व्हाइट हाउस बनवा लिया तो एसपी को चाहिए पिंक हॉउस. इसके लिए भले ही अवैध शराब, सट्टा और काबाडियों की मदद लेनी पड़ जाए. इस चक्कर में 90 परसेंट एसपी साहब लोग जात भी गवां रहे और धर्म भी. PHQ में इधर-उधर फिकायें डायरेक्ट आईपीएस में कई काबिल अफसर रहे हैं, लेकिन कलेक्टरों के लाइफ स्टाइल के कॉम्पीटिशन में मारे गए. DGP अरुण देव गौतम को डायरेक्ट आईपीएस के लिए अलग से वर्कशॉप आयोजित करनी चाहिए. उन्हें बताएं भी कि कॉम्पीटिशन न करें, दो-दो आईएएस इस समय जेल में हैं.

पीएम और प्रेसिडेंट

किसी भी राज्य में आमतौर से ऐसा नहीं होता कि हफ्ते भर के भीतर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का विजिट हो जाए. मगर छत्तीसगढ़ में बड़ा संयोग बन रहा...24 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आ रहीं तो 30 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. राष्ट्रपति विधानसभा के रजत जयंती समारोह की मुख्य अभ्यागत होंगी तो पीएम मोदी बिलासपुर में दो पावर प्लांट की आधारशीला रखने के साथ पब्लिक मीटिंग को सम्बोधित करेंगे. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पिछले दिल्ली दौरे में प्रधानमंत्री को छत्तीसगढ़ आने का न्योता दिया था और वह स्वीकार हो गया. जाहिर है, हफ्ते भर में देश की दो शीर्ष हस्तियों क़े दौरे से छत्तीसगढ़ की तगड़ी ब्रांडिंग होगी.

करप्शन का इनोवेशन

लहरों को गिनकर पैसा कमाने वाली एक बड़ी पुरानी कहावत छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी पर फिट बैठती है. वो इस तरह कि सरकारी प्रेस की पोस्टिंग सबसे सुखाग्रस्त समझा जाता था. लिहाजा, सबसे कमजोर आईएएस अफसर को भी इसे एडिशनल तौर पर सौंपा जाता था. मगर एक प्रमोटी आईएएस अधिकारी ने सरकार प्रेस की पोस्टिंग को भी साल में पांच खोखा का बना दिया. आपको बता दें, सरकारी प्रेस में गजट, डायरी, कैलेंडर छपती है. मगर इस आईएएस ने इनोवेशन करते हुए दूसरी चीजों की छपाई शुरू कर दी. कमाल तो ये किया कि 2020-21 में टेंडर कर उन्हीं प्रिंटर्स से करोड़ों की छपाई करते रहे. 50 परसेंट कमीशन वाला यह काम इसलिए माना जाता है कि सरकारी प्रेस में कोई देखने वाला सिस्टम नहीं कि कितना और कैसा छपा. 25 परसेंट सरकारी प्रेस के अफसरों को और 25 परसेंट सम्बंधित विभाग क़े अधिकारियों को देने के बाद भी प्रिंटर मालामाल, तो आप समझा सकते हैं कि आईएएस ऑफिसर का इनोवेशन कितना दमदार है. सेक्रेटरी टू सीएम मुकेश बंसल ने इस पर ब्रेक लगा दिया. वरना ये खेल चलता रहता.

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्री अगर विधानसभा में बार-बार घिर रहे हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है?

2. एक पुलिस रेंज के आईजी-एसपी क़े बीच तनातनी को सिस्टम रोक क्यों नहीं पा रहा?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

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