Chhattisgarh Tarkash 2025: इस्तीफा या सरकार की नाराजगी!..
Chhattisgarh Tarkash 2025: Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 17 बरसों से निरंतर प्रकाशित साप्ताहिक स्तंभ तरकश।

Chhattisgarh Tarkash 2025, तरकश, 23 नवंबर 2025
संजय के. दीक्षित
इस्तीफा या सरकार की नाराजगी!
बिलासपुर हाई कोर्ट के महाधिवक्ता प्रफुल्ल भारत ने अचानक इस्तीफा देकर लोगों को चौंका दिया। सरकार ने विवेक शर्मा को नया एजी अपॉइंट कर दिया है। बहरहाल, प्रफुल्ल भारत ने इस्तीफा दिया क्यों, इस पर कोई खुलकर बोल नहीं रहा। मगर पर्दे के पीछे कुछ ऐसी गॉशिप चल रहीं हैं, जिससे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार और महाधिवक्ता कार्यालय के बीच सब कुछ अच्छा नहीं था। उसमें जैजैपुर विधायक बालेश्वर साहू का केस ताबूत का आखिरी कील जैसा साबित हुआ। बालेश्वर ने किसानों के साथ गंभीर धोखाधड़ी की थी। पुलिस ने उनके खिलाफ तीन-तीन एफआईआर किया। मगर कोर्ट से गिरफ्तारी पर रोक लग गई। मामला जांच में चला गया। जबकि, पुलिस ने जांच करने के बाद मुकदमा कायम किया था। सरकारी पक्ष ने कोर्ट में इस बात को ढंग से रखा नहीं। पिछले एक साल में ऐसे कई एपिसोड हुए, जिसमें सरकारी विभाग के काम लटके रहे। प्राचार्य प्रमोशन में भी ऐसा ही हुआ। अप्रैल में प्रमोशन हुआ, और इस महीने जाकर मामला निबटा। तब तक 200 से अधिक प्राचार्य बेचारे बिना नेम प्लेट लगाए रिटायर हो गए।
हालात ये हो गए थे कि अति महत्वपूर्ण केसों में थोक में सरकारी वकील होने के बाद भी पैनल लॉयर (Panel Lawyer) खड़े हो जाते थे। चना-मुर्रा टाईप केसों में भी सरकार की स्थिति दयनीय हो जा रही थी। इसमें राज्य महिला आयोग सहित तीन आयोगों में अब तक सत्ता पक्ष के पदाधिकारी की नियुक्ति न हो पाना भी शामिल है। छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने कांग्रेस शासन में पदभार संभाला था। इसी तरह दो और आयोग में अब भी पुराने पदाधिकारी ही नियुक्त हैं। एक आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद सरकार की किरकिरी हो गई, जब नवनियुक्त अध्यक्ष को पदभार संभालने का मौका ही नहीं मिला और उन्हें आखिरकार दूसरे निगम का अध्यक्ष बना दिया गया। बहरहाल, हाई कोर्ट बनने के बाद नौ महाधिवक्ता बने हैं, जिनमें से रवीश अग्रवाल, देवचरण सुराना, कनक तिवारी और प्रफुल्ल भारत की विदाई असहज स्थिति में हुई।
100 से अधिक की फौज और रिजल्ट?
हाई कोर्ट बनने के 25 साल में यह पहला मौका होगा, जब बिलासपुर महाधिवक्ता ऑफिस में 100 से अधिक की फौज है। सात एडिशनल एजी...सात डिप्टी एजी। 33 गवर्नमेंट वकील और 100 के करीब पैनल लॉयर (Panel Lawyer)। इतना भारी-भरकम अमला होने के बाद भी सरकारी पक्ष कमजोर क्यों पड़ जा रहा, सिस्टम को इस पर सोचना चाहिए?
ओपी के बंगले में अमित शाह
डीजीपी कांफ्रेंस के दौरान वित्त मंत्री ओपी चौधरी के बंगले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तीन दिन रुकेंगे। हालांकि, उनके लिए नवा रायपुर स्थित एक नए मंत्री के बंगले की बात हुई थी। मंत्रीजी तैयार भी हो गए थे। मगर शायद उन्हें किसी ने सलाह दे दी कि पूजा-पाठ के बाद बंगले में किसी और को रहना शुभ नहीं होगा। लिहाजा, उन्होंने लिखित रिप्लाई में अनिच्छा प्रगट कर दी। इसके बाद खाली बंगले की तलाश शुरू हुई। ओपी चौधरी को एलॉटेड एम11 बंगला अभी खाली है। अफसरों ने उनसे बात की तो वे सहर्ष तैयार हो गए।
गेस्ट हाउसों के दिन फिरे
अभी तक वीआईपी और वीवीआईपी रायपुर आते थे तो वे बड़े होटलों में रुकते थे। मगर पीएम नरेंद्र मोदी का इंस्ट्रक्शन है, सरकारी विश्राम गृहों, अतिथि गृहों में सरकारी नुमाइंदे ठहरेंगे...जो पैसा सितारा होटलों में खर्च होता है, उसे गेस्ट हाउसाों को रिनोवेशन में लगाया जाए। यही वजह है कि 28 से 30 नवंबर तक होने वाले डीजीपी, आईजी कांफ्रेंस के लिए युद्ध स्तर पर सरकारी गेस्ट हाउसों को तैयार किया जा रहा है। इसके लिए भारत सरकार से पैसा मिला है, तो राज्य ने भी दिया है। निमोरा स्थित गेस्ट हाउस में 91 कमरे हैं। वहां वाॅशरुम से लेकर दरवाजा, खिड़की, बेड सब कुछ बदल दिया गया। रायपुर और नवा रायपुर के सर्किट हाउसों को भी सजाया-संवारा जा रहा है। सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों के सिकरेट्री होम रायपुर के सर्किट हाउस में ठहरेंगे। नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर यानी एनएसए अजीत डोभाल को नवा रायपुर के सर्किट हाउस में पूरा एक फ्लोर दिया जा रहा है। हालांकि, उनके लिए आईआईएम के गेस्ट हाउस को देखा गया मगर अफसरों ने सर्किट हाउस को बेहतर समझा।
मंत्री, प्रेयसी और सर्वधर्म सम्भाव
पिछले तरकश स्तंभ में एक सवाल था, मंत्री ने माशूका को खरीद कर दिया 3 करोड़ का बंगला....पार्टी के हिटलिस्ट में मंत्री। इस पर काफी प्रतिक्रियाएं आईं। 200 से अधिक अननोन पाठकों ने व्हाट्सएप्प के जरिये अपनी जिज्ञासा प्रगट की। मगर सबसे अधिक खरी-खरी फोन बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का रहा। बोले... देश में प्रेयसी पर सर्वस्व न्यौछावर करने के अनेकों दृष्टांत रहे हैं...मुगलों के दौर में शाहजहां ने अपनी प्रियतमा के लिए विश्व प्रसिद्ध स्मारक बनवा दिया था।
फिर छत्तीसगढ़ के एक मंत्री ने 3 करोड़ में बंगला खरीद अपनी प्रेयसी को दे दिया तो फिर हाय-तोबा क्यों? कैबिनेट मंत्री के लिए 3 करोड़ रुपए क्या मायने रखता है? आखिरी लाइन उनका ज्यादा टचिंग था...धर्मनिरपेक्ष देश में मंत्रीजी प्रेयसी के जरिये सर्वधर्म समभाव का उदाहरण पेश कर रहे तो इसमें किसी को दिक्कत क्यों? और क्या ये पहली बार हुआ है...? बात सही है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कई मंत्रियों, राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा इस तरह बंगला, फ्लैट खरीद दूसरा घर बनाने की चर्चाएं होती रही हैं। अबकी मंत्रीजी ने जल्दी कर दी, इसलिए एक्सपोज हो गए।
कलेक्ट्रेट से विस भवन तक
बहुत कम लोगों का पता होगा कि विधानसभा सचिवालय कुछ दिनों तक कलेक्ट्रेट और मंत्रालय में लगा था। राजकुमार काॅलेज में प्रोटेम स्पीकर का चुनाव और विधायकों की शपथ के बाद बलौदा बाजार रोड पर स्थित भारत सरकार के जल संसाधन विभाग की बिल्डिंग को विधानसभा के लिए चुना गया था। मगर सदन के अनुकूल उसे तैयार करने में करीब दो महीने का वक्त लगा। लिहाजा, पहले कलेक्ट्रेट में विधानसभा सचिवालय लगा, फिर मंत्रालय में दो कमरे दिए गए। विधानसभा के वर्तमान सिकरेट्री दिनेश शर्मा न केवल सबसे पहले यहां ज्वाईन किए बल्कि अब उनके साथ एक और रिकार्ड जुड़ गया है। वह है मध्यप्रदेश के समय पुराने से नए विधानसभा में जाने का और अब छत्तीसगढ़ में भी यही संयोग दुहरा रहा। याने उन्हें एमपी, छत्तीसगढ़ को मिलाकर कुल चार विधानसभा भवनों में काम करने का मौका मिला।
डिस्ट्रिक्ट जज सिकरेट्री
आजादी के बाद कई साल तक जिला न्यायाधीश स्तर के जज विधानसभाओं के सचिव होते थे। अविभाजित मध्यप्रदेश में सालों डीजे लेवल के सचिव रहे तो छत्तीसगढ़. बनने के बाद पहला सचिव भी डीजी टीपी शर्मा को बनने बनाया गया। टीपी शर्मा बाद में विधि सचिव रहे और हाई कोर्ट जज बने। खैर, टीपी शर्मा के बाद डीजे मिन्हाजुद्दीन को दूसरा सचिव बनाया गया। मगर दो-चार दिन काम करने के बाद उन्होंने अनिच्छा प्रगट कर दी। तब तक भोपाल से भगवानदेव इसरानी आ गए थे। स्पीकर स्व0 राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने इसरानी को सचिव अपाइंट किया। इसके बाद विधानसभा के अधिकारी प्रमोट होकर यह पद संभालने लगे।
देर आए, दुरुस्त आए?
सात सदस्यीय कमेटी द्वारा रायपुर में कमिश्नर सिस्टम लागू करने के लिए रिपोर्ट देने के बाद भी किन्हीं वजहों से राज्योत्सव के मौके पर इसे लागू नहीं किया जा सका। मगर अब खबर है, अगले महीने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पुलिस कमिश्नर के एक्ट को पारित कराया जाएगा। ओड़िसा की तरह छत्तीसगढ़ में भी एक्ट के जरिये पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया जाएगा। मगर अब देखना है कि ओड़िसा की तरह अपने रायपुर का पुलिस कमिश्नर सिस्टम भी प्रभावशाली होगा या सिर्फ नाम का रहेगा?
कांग्रेस की नियुक्ति पाॅलिसी
कांग्रेस पार्टी ने लंबे समय के एक्सरसाइज के बाद 11 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति का आदेश जारी कर दिया। बाकी जिलों में कब होगा, इस पर पार्टी मौन है। कांग्रेस के नियुक्ति प्रक्रिया पर पार्टी के लोग ही सवाल उठा रहे हैं। कार्यकताओं और नेताओं को रिचार्ज करने के नाम पर संगठन में नियुक्तियों से पहले कांग्रेस में काफी बड़े स्तर पर राय-मशविरा, भेंट-मुलाकात चलता है मगर इससे कार्यकर्ता जितना रिचार्ज नहीं होते, उससे अधिक डिस्चार्ज हो जाते हैं। असल में, अत्यधिक कवायदों से सबकी उम्मीदें बंध जाती है और होता वही है, जो पहले से तय रहता है। और जब उम्मीदें टूटती है तो फिर सेल्फ गोल शुरू हो जाता है। अब पार्टी भले ही इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया कहकर खुश हो लें, मगर पार्टी के जिम्मेदार लोगों का कहना है कि इस एक्सपेरिमेंट से फायदे की जगह नुकसान हो रहा है।
मनी लॉन्ड्रिंग पर लगाम
अरुण जेटली ने वित्त मंत्री रहते 2017 में मुख्यमंत्री को DO लेटर लिख छत्तीसगढ़ में ज़मीनों के गाइड लाइन रेट देश में सबसे कम होने पर चिंता जताई थी। उन्होंने लिखा था...रेट में भारी विषमता होने से छत्तीसगढ़ में मनी लॉन्ड्रिंग तेज़ी से बढ़ रहा है। जेटलीजी उसके बाद नहीं रहे। मगर आठ साल बाद अब उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। पंजीयन विभाग ने रेट का युक्तियुक्तकरण करते हुए रेट में काफी सुधार किया है । इस पर सूबे के बिल्डरों और भूमाफियाओं में हाहाकार मचा हुआ है। दरअसल, 2017 से पहले गाइड लाइन दर हर साल सात से 10 परसेंट बढ़ता था। मगर पिछली सरकार ने रेट बढ़ाने की बजाय 30 परसेंट कम कर दिया। इससे छत्तीसगढ़ में दिल्ली, मुंबई जैसे मेट्रो सिटी से ब्लैक मनी का फ्लो बढ़ा।
जाहिर है, सरकारी दर कम होने से खजाने को पंजीयन शुल्क का नुकसान होता ही है, इन्कम टैक्स विभाग को भी हर साल करीब 500 करोड़ का चूना लगता था। वो इसलिए कि, शंकर नगर, कचना, सड्डू जैसे एरिया में जो बिल्डर छह से सात हजार रुपये फुट में जमीन और मकान बेच रहे, उसका सरकारी रेट हजार, बारह सौ से ज्यादा नहीं। इस अंतर की राशि को कैश में देना पड़ता है। याने मकान या जमीन के लिए जितनी राशि एक नम्बर में ली जाती है, उससे कहीं अधिक दो नम्बर में। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में बड़े स्तर पर ब्लैक मनी को व्हाइट किया जा रहा था। ऊपर से नौकरी पेशा और मिडिल क्लास को सरकारी रेट कम होने से बैंकों से जरूरत के हिसाब से लोन नहीं मिल रहा था, फिर दो नम्बर में कैश जुटाने की मुसीबत थी, वो अलग। उम्मीद है, युक्तियुक्तकरण से स्थिति कुछ बदलेगी।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. क्या ये सही है...आयुष्मान योजना अगर बंद हो जाए तो सूबे के 60 परसेंट हॉस्पिटल बंद हो जाएंगे?
2. क्या ये सही है कि जिस राज्य में ब्यूरोक्रेसी कमजोर और सियासी हस्तक्षेप ज्यादा होता है, वहां डेवलपमेंट ठहर जाता है?
