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छत्तीसगढ़ से लगातार दूसरी बार संसद में पहुंची तीन महिलाएं, पांच लोकसभा चुनावों में 70 को टिकिट, 7 जीत पाईं

छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने तीन-तीन महिला प्रत्याशियों पर दांव लगाया, इनमें से तीन जीत पाईं। दो बीजेपी की और एक कांग्रेस की। छत्तीसगढ़ में पुरूषों की तुलना में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। ऐसे में, जाहिर है चुनावों में महिलाओं की भूमिका अहम होती हैं।

छत्तीसगढ़ से लगातार दूसरी बार संसद में पहुंची तीन महिलाएं, पांच लोकसभा चुनावों में 70 को टिकिट, 7 जीत पाईं
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By anil tiwai

रायपुर। छत्तीसगढ़ के सियासी इतिहास में लगातार दूसरी बार ऐसा हुआ है, जब प्रदेश से तीन महिला सांसद संसद जा रही हैं। इनमें भाजपा की और कांग्रेस पार्टी की एक महिला सांसद लोकसभा पहुंची हैं। प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में 29 महिलाएं चुनाव मैदान में थी। जिनमें से सिर्फ तीन को ही जीत नसीब हुई है। यानी 11 लोकसभा सीटों में महिलाओं की भागीदारी 27 प्रतिशत से ज्यादा रही है।

पिछले कुछ सालों में हर चुनाव में महिलाएं बड़ी फैक्टर बन गई हैं। हो सकता है कि जब अगला लोकसभा चुनाव 2029 में हो, तो नए परिसीमन के साथ 33 फीसदी महिलाओं के जनप्रतिनिधित्व भागीदारी के साथ हो। लेकिन उससे पहले ही छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व में 27 फीसदी से ज्यादा महिलाओं की भागीदारी है। छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने तीन महिलाओं को चुनाव के मैदान में उतारा था। जिनमें कोरबा लोकसभा सीट से सरोज पांडे, महासमुंद लोकसभा सीट से रूप कुमारी चौधरी और जांजगीर चांपा लोकसभा सीट से कमलेश जांगड़े को टिकट दी गई थी। वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी तीन महिला उम्मीदवारों को टिकट देकर मुकाबले में उतारा था। इनमें रायगढ़ लोकसभा सीट से मेनका सिंह, सरगुजा लोकसभा सीट से शशि सिंह और कोरबा लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद ज्योत्सना महंत को दूसरी बार टिकट दिया गया। इस तरह भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने 6 महिलाओं को चुनाव के मैदान में उतारा, जिनमें से तीन महिलाओं ने इस चुनाव में जीत हासिल की है। इनमें भाजपा की दो और कांग्रेस की एक महिला प्रत्याशी को जीत मिली है।

छत्तीसगढ़ राज्य में शुरू से ही पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या ज्यादा है। यहां हर चुनाव में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं बढ़-चढ़कर वोट करती हैं। छत्तीसगढ़ को लेकर यहां साफ माना जाता है कि यहां की सरकार प्रदेश की महिलाएं तय करती हैं। यही वजह है कि लगातार सियासी दल महिलाओं को साधने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते रहते हैं। अन्य राज्यों में चुनाव में महिलाओं की भागीदारी कम नजर आती है लेकिन छत्तीसगढ़ में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा वोट करती हैं। पिछले साल हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में 19 महिलाएं निर्वाचित हुईं। इनमें से 11 कांग्रेस से और आठ भाजपा से हैं।

24 साल में 70 महिलाओं को टिकट

छत्तीसगढ़ राज्य बने 24 साल हो गए हैं। इसके बाद से प्रदेश में दोनों ही राजनीतिक दलों ने चाहे विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव हार और जीत के फैक्टर के साथ-साथ जाति समीकरण के आधार पर ही महिलाओं को टिकट दिए हैं। 1 नवंबर साल 2000, यानी राज्य के गठन के बाद से सभी पार्टियों ने अब तक 70 महिलाओं को पार्टियों ने टिकट दिया है। हालांकि इन 70 महिलाओं में से सिर्फ 7 महिलाएं ही अपनी सीट जीतने में कामयाब हुई हैं। छत्तीसगढ़ के सियासी इतिहास में अब तक सिर्फ 7 महिला सांसद ही ऐसी हैं जिन्होंने संसद में छत्तीसगढ़ की आवाज बुलंद किया है। 70 में से 63 महिला उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है। छत्तीसगढ़ की कोरबा सीट से सांसद ज्योत्सना महंत राज्य बनने के बाद पहली और एकलौती कांग्रेस की सांसद हैं जो चुनाव जीत कर संसद पहुंची हैं। वहीं भाजपा से अब तक 6 महिला सांसद बनी हैं। इनमें सरगुजा से रेणुका सिंह, रायगढ़ से गोमती साय, करुणा शुक्ला और कमला पटेल दो बार सांसद रही हैं। इस बार के चुनाव में जांजगीर-चांपा से कमलेश जांगड़े और महासमुंद से रुपकुमारी चौधरी सांसद पहुंची हैं।

1952 में चुनी गई थीं छत्तीसगढ़ से पहली महिला सांसद

अगर अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व की बात करें, तो देश में हुए पहले आम चुनाव में ही छत्तीसगढ़ से महिला सांसद बनी थीं। मिनीमाता अगम दास गुरु, जिनका मूल नाम मीनाक्षी देवी था, उन्होंने 1952 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और प्रथम महिला सांसद चुनी गई थीं। बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर आरक्षित सीट से उन्होंने जीत दर्ज की थी। उन्होंने 1955 में अस्पृश्यता निवारण अधिनियम पारित कराने में अहम भूमिका निभाई थी। मीनाक्षी देवी उर्फ मिनीमाता का जन्म 13 मार्च, 1913 को असम के दौलगांव में हुआ। उन्हें असमिया, अंग्रेजी, बांग्ला, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषा का अच्छा ज्ञान था। उनका विवाह गुरुबाबा घासीदास जी के चौथे वंशज गुरु अगमदास से हुआ। विवाह के बाद वे छत्तीसगढ़ आईं, तब से उन्होंने इस क्षेत्र के विकास के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। 1957 से 1971 तक वह जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहीं। 11 अगस्त, 1972 को मिनी माता की एक विमान हादसे में मृत्यु हो गई थी।

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