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Chhattisgarh News: त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव: कुर्सी बचाने सत्ता की शरण में आए थे जिला पंचायत अध्यक्ष व दो सदस्य, भाजपा ने इस बार भाव ही नहीं दिया

Chhattisgarh News: सत्ता का तिलस्म जो ना करे वह कम ही है। राज्य में जब कांग्रेस की सरकार थी तब पहले नगर निगम और फिर बाद में त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव हुआ था। चुनाव में सरकार ने अपनी जमकर चलाई। प्रदेश के सभी 14 नगर निगम सहित निकायों में कांग्रेस के अलंबरदार कुर्सी पर काबिज हो गए। पंचायत चुनाव में भी यह रौब-दाब कायम रहा। बिलासपुर जिला पंचायत में भी सत्ता का जोर चला और तमात राजनीतिक समीकरणों को दरकिनार करते हुए अरुण सिंह चौहान जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए। तब तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल के करीबी अटल श्रीवास्तव की चली थी। जब उनकी चली तब उन्होंने अरुण पर अपना हाथ रख दिया। राज्य की राजनीति पलटी खाई और भाजपा की सरकार बन गई। कुर्सी का प्रेम ऐसा कि अध्यक्ष सहित दो सदस्यों राहुल सोनवानी और राजेश्वर भार्गव ने भी इसी अंदाज में पलटी मार दी। अध्यक्ष की कुर्सी बच गई और सदस्यों ने सत्ता का सुख पा लिया। मौजूदा पंचायत चुनाव में तीनों को ही भाजपा ने किनारे कर दिया है।

Chhattisgarh News: त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव: कुर्सी बचाने सत्ता की शरण में आए थे जिला पंचायत अध्यक्ष व दो सदस्य, भाजपा ने इस बार भाव ही नहीं दिया
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By Radhakishan Sharma

Chhattisgarh News: बिलासपुर। प्रदेश की राजनीति और सियासी इतिहास पर नजर डालें तो दल बदलने वाले या फिर पार्टी के प्रति निष्ठा बदलने वालों को जनता ने कभी माफ नहीं किया है। कमोबेश कुछ इसी तरह की बात पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए सोची और समझी जा सकती है। सैद्धांतिक और वैचारिक मतभेद वाले एक दल से दूसरे दल में जब आते हैं तो उसके बीच विचार या फिर सिद्धांत बदलना नहीं, सियासी लालच ही सबसे बड़ा कारण होता है या यूं कहें कि कारण बनता है। यही कारण है कि दल बदलने वालों का दिल ना तो कभी बदल पाता और ना ही कुर्सी की लालच में दल बदलने के बाद अपने सिद्धांत को बदल पाते। यह भी कह सकते हैं कि सिद्धातों और विचारों से कभी समझौता कर ही नहीं सकते। जब यह सब आड़े आता है तो सियासत में एडजस्टमेंट होने में भी यह सब आड़े आने लगता है। बीते विधानसभा और मौजूदा निकाय व त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव के परिदृश्य में हम उन नेताओं के चेहरे सामने लाएंगे जिन्होंने सियासत में सत्ता प्रेम और लाइम लाइट में रहने के कारण दल तो बदला पर जिस दल में गए वहां के नेता और कार्यकर्ताओं के बीच तव्वजो नहीं मिल पाई।

वर्ष 2014 के नगरीय निकाय चुनाव से लेकर वर्ष 2019 में हुए चुनावी दौर की चर्चा करें तो कांग्रेसी खेमे से विष्णु यादव की मेयर केंडिडेट के रूप में सबसे गंभीर दावेदारी सामने आते रही है। मेयर की दौड़ में पिछड़ने या फिर प्रादेशिक नेताओं की प्राथमिकता में ना आने के चलते उसे हर बार मेयर के बजाय पार्षद की टिकट दे दी जाती है और उसे सियासी मजबूरी के चलते पीसीसी के निर्देशों का पालन करना पड़ता था। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भी उनकी गंभीर दावेदारी सामने आई थी। टिकट से एक बार फिर चुक गए। नतीजा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। चुनावी माहौल में भाजपा प्रवेश को लेकर तब स्थानीय राजनीति में जमकर चर्चा भी चली। समय के साथ भाजपा ने तब उनका उपयोग भी उसी अंदाज में किया। बेलतरा से लेकर बिलासपुर और मुंगेली से तखतपुर। जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में उनके चेहरे को बार-बार फोकस किया गया। कारण भी साफ था। ओबीसी के अलावा यादवों के बीच भाजपा अपना पैठ बढ़ाना चाहती थी, लिहाजा सियासीतौर पर उपयोग भी हुआ। जिस चेहरे को लेकर भाजपा ने फोकस किया, नगरीय निकाय से लेकर त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपाई दिग्गजों व रणनीतिकारों ने भूला दिया। यह भी कह सकते हैं कि किनारे कर दिया।

0 राज्य में सत्ता बदलते ही हुआ बड़ा बदलाव

राज्य में सत्ता बदलते ही एक और बड़ा बदलाव ग्रामीण राजनीति में देखने को मिला। ग्रामीण राजनीति में जिला पंचायत की अपनी अहम भूमिका रहते आई है। एक सदस्य सीधेतौर पर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। जाहिरतौर पर ग्रामीण इलाकों में इनका अपना दबदबा होता है और सियासत में असरकारी दखल भी। यही वजह है कि राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद जिला पंचायत के अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान, सदस्य राहुल सोनवानी और राजेश्वर भार्गव ने दल बदल दिया। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। तब इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि कोटा से अरुण की दावेदारी को तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने तव्वजो नहीं दी। अरुण के बजाय अटल पर भरोसा जताया। यही टिस दल बदलने में सबसे ज्यादा रोल निभाया। दो सदस्यों के बारे में चर्चा करें तो जिला पंचायत की राजनीति में बहुमत होने के बाद अपनों से महत्व नहीं मिल पा रहा था। लिहाजा दल बदलने में इन दोनों ने भी देर नहीं की।

0 भाजपा ने अपनों पर जताया भरोसा

अरुण सिंह चौहान कोटा विधानसभा से जिला पंचायत की राजनीति में एंट्री की। राहुल सोनवानी और राजेश्वर भार्गव मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले जिला पंचायत के सीटों से प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। भाजपा ने उम्मीदवारी की चयन में अरुण सिंह चौहान, राहुल सोनवानी और राजेश्वर भार्गव तीनों पर भरोसा नहीं जताया। भाजपाई रणनीतिकारों ने अपनों को आगे बढ़ाते हुए उम्मीदवार का ऐलान कर दिया है।

0 इन सीटों से तलाश रहे थे संभावना

अरुण सिंह चौहान का जिला पंचायत क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गया था। लिहाजा वे तखतपुर विधानसभा की सामान्य सीट से संभावना तलाश रहे थे। भाजपा ने तव्वजो नहीं दी। कांग्रेस से भाजपा में आए राहुल सोनवानी जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 11 से उम्मीद लगाए बैठे थे। भाजपा ने चंद्रप्रकाश सूर्या की पत्नी पर भरोसा जताया। राजेश्वर भार्गव जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 13 से सदस्य निर्वाचित हुए थे। उनकी सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई है। वे क्षेत्र क्रमांक 12 से चुनाव लड़ना चाह रहे थे। भाजपा ने इस सीट को फ्री कर दिया है।

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