Chhattisgarh News: नगरीय निकाय चुनाव, दो मंत्री और दो वेटिंग इन मिनिस्टर की सियासी साख लगी दांव पर
Chhattisgarh News: शहर से लेकर गांव तक चुनावी माहौल बन चुका है। नगरीय निकाय चुनाव को लेकर शहरी इलाकों में कुछ ज्यादा ही सरगर्मी देखी जा रही है। कारण भी साफ है। मतदान में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। गिनती लगाएं तो महज पांच दिन। छठवें दिन शहरी मतदाता एक साथ दो वोट डालेंगे। मेयर और पार्षद चुनने के लिए ईवीएम के जरिए मताधिकार का प्रयोग करेंगे। चुनावी माहौल में इस बात की चर्चा भी होने लगी है कि प्रदेश के ऐसे कौन-कौन कद्दावर नेता हैं जिनकी सियासी साख इस चुनाव से जुड़ गई है। या यूं कहें कि यह चुनाव के उनके लिए नाक का सवाल हो गया है। निश्चित रूप से मानिए प्रदेश के दो मंत्री और दो वेटिंग इन मिनिस्टर के लिए तो ऐसा लग ही रहा है। उत्तर छत्तीसगढ़ से आने वाले एक मंत्री के लिए यह तो और भी बड़ा सवाल है। लोकसभा चुनाव में उनके क्षेत्र में परफारमेंस बेहद कमजोर रहा है।

Chhattisgarh News: बिलासपुर। भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से इस बार सियासी बाजी पलटने का अच्छा अवसर है। वर्ष 2019 में हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस सरकार ने मेयर चुनाव का पैटर्न बदल दिया था। डायरेक्ट के बजाय पार्षदों के जरिए चुनाव का फैसला किया था। यह फैसला कांग्रेस के लिए फलदायी और भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से अशुभ रहा। बिलासपुर नगर निगम को ही लें। पार्षदों की अच्छी खासी संख्या होने के साथ ही चुनाव में दो-दो हाथ आजमाने के बेहतर अवसर होने के बाद भाजपाई दिग्गजों ने तब सरेंडर कर दिया था। बिलासपुर नगर निगम के इतिहास में पहली बार हुआ जब मेयर और सभापित दोनों निर्विरोध निर्वाचित हो गए। तब दिग्गजों के सियासी साख में बट्टा भी लगा था और कानफूसी भी हो रही थी। अब राजनीतिक परिस्थितियां एकदम अलग और अहलदा। परिस्थितियों के अनुकूल होने के बाद भी एक सवाल अब भी सियासी गलियारों में तेजी के साथ उठ रहा है। दिग्गज अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखेंगे या फिर गुटबाजी की भेंट चढ़ जाएगी।
गुटीय राजनीति, भितरघात और बगावत। मौजूदा निकाय चुनाव में दोनों ही दलों में साफ-साफ दिखाई दे रहा है। आंतरिक संकट से दोनों ही दल के प्रत्याशी से लेकर रणनीतिकार और पार्टी के प्रत्याशी जूझ रहे हैं। सत्ताधारी दल भाजपा में नाराजगी और बगावत कुछ ज्यादा ही नजर आने लगी है। यह पहली बार हो रहा है जब बिलासपुर नगर निगम चुनाव में 12 वार्डों में खुलकर बगावत देखने को मिल रही है। बागियों की मौजूदगी खुद के लिए लाभदायक हो या ना हो, अपनों के लिए नुकसान तो है ही। पार्षद और मेयर पद के उम्मीदवारों को नाराजगी और बगावत का नुकसान उठाना पड़ेगा। सीधेतौर हो रहे बगावत को लेकर रणनीतिकारों ने वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए जरुरी इंतजाम ना किया हो ऐसा भी नहीं हो सकता। जब सब-कुछ आंखों के समाने दिखाई देता है तो चुनावी प्रबंधन भी उसी अंदाज में होने लगता है। खतरा भितरघातियों से ज्यादा होता है। कारण भी साफ है उनकी मंशा और वे आगे क्या करने वाले हैं, यह किसी को पता नहीं होता। बहरहाल बगावत और भितरघात से दोनों ही दलों को जूझना पड़ रहा है।
0 हर चुनाव में अमर की ही चली, फायदा पार्टी को हुआ
वर्ष 2000 हजार में मेयर का चुनाव डायरेक्ट हुआ। तब से लेकर आजतलक बिलासपुर नगर निगम चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो विधायक व पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल की ही चली है। जब उनकी चली तो पार्टी को फायदा ही हुआ है। मेयर केंडिडेट के रूप में उमाशंकर जायसवाल उनकी खोज थी। अमर ने टिकट दिलाई और चुनाव जीताकर शहर सरकार भी बनवाई। मौजूदा चुनाव में भी मेयर से लेकर पार्षदों के टिकट वितरण में प्रदेश भाजपा ने अमर को तव्वजो दिया है। निकाय व त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से पहले मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा ने जोर पकड़ा था और विधायक अमर की एंट्री की चर्चा भी होने लगी थी। ब्यूरोक्रेट्स से लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच अमर के मंत्रिमंडल में एंट्री की चर्चा लगातार होते रही है। वेटिंग इन मिनिस्टर होने के नाते संभावना तो यही बन रही है कि मौजूदा निकाय चुनाव में भाजपा की शहर सरकार में वापसी को लेकर उनकी तरफ से कोई कसर ना छोड़ी जाए।
0 विपरीत परिस्थितियों में भी कुशल रणनीति
छत्तीसगढ़ के साथ ही देश की राजनीति में नसबंदी कांड को लेकर बवाल मचा था। नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया की दखलंदाजी भी तब बढ़ी थी। अमर अग्रवाल तब स्वास्थ्य मंत्री हुआ करते थे। विपक्षी दलों के निशाने पर थे। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने नसबंदी और आंख फोड़वा कांड को लेकर तब प्रदेशभर में जमकर माहौल बनाया था। विपरीत परिस्थिति होने के बाद भी अमर चुनाव जीतने में सफल रहे। चुनाव जीते और डा रमन सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री का ओहदा भी मिला। विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में अमर की सियासी क्षमता और दक्षता भी उसी अंदाज में निखरकर सामने आया है। माना जा रहा है कि मौजूदा निकाय चुनाव में भाजपा एक बार फिर कीर्तमान स्थापित करेगी।
0 सराजे पांडेय की पराजय ने बढ़ाई थी परेशानी
कोरबा लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडेय की पराजय में मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर सोनहत जैसे इलाकों की भूमिका कुछ ज्यादा ही रही। ये पूरा इलाका स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल का है। लोकसभा चुनाव में उत्तर छत्तीसगढ़ के इन इलाकों में भाजपा का प्रदर्शन लचर रहा। यह भी तय है कि चुनावी प्रदर्शन से कुर्सी को आंच नहीं आती है, यह भी सच है कि कुर्सी भले ही सलामत रहे राजनीतक प्रतिष्ठा पर आंच जरुरी आती है, सियासत में प्रतिष्ठा पर बट्टा लगे तो सबसे ज्यादा खतरा कार्यकर्ताओं का भरोसा टूटने का रहता है। जब यह होता है तब मतदाताओं की दूरी भी बढ़ने लगती है। राजनीतिक प्रतिष्ठा के साथ ही कार्यकर्ताओं के भरोसे को बनाए रखने के लिए निकाय चुनाव में सकारात्मक परिणाम के लिए मशक्कत करते नजर आएं तो अचरज की बात नहीं होनी चाहिए।
0 ये भी हैं वेटिंग इन मिनिस्टर
दुर्ग नगर निगम में मेयर का चुनाव बेहद दिलचस्प बन गया है। भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है। इस लड़ाई में बाजी किसके हाथ लगेगी यह कहना जल्दबाजी होगी। इतना तो तय है कि सत्ताधारी दल के रणनीतिकारों और दिग्गजों के लिए मौजूदा चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। खासतौर पर दुर्ग के विधायक गजेंद्र यादव के लिए। गजेंद्र आरएसएस पृष्ठभूमि के हैं। उनके पिता बिसराराम यादव संघ के बड़े पदाधिकारी रहे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में उनके नाम की चर्चा भी हो रही है। जाहिर है निकाय चुनाव उनके लिए भी लिटमस टेस्ट साबित होगा।