छत्तीसगढ़ में महिलाएं बनीं आत्मनिर्भरता की मिसाल, विष्णुदेव साय की योजनाओं से बन रही लखपति दीदी...
Vishnudeo Sai: छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन 'बिहान' के तहत राज्य में महिलाएं अब आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रही हैं...

रायपुर। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन 'बिहान' के तहत राज्य में महिलाएं अब आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रही हैं। बस्तर जिले में जगदलपुर, तोकापाल, लोहंडीगुड़ा और दरभा - इन चार विकासखंडों में चिन्हांकित 16 इंटीग्रेटेड फार्मिंग क्लस्टर्स के माध्यम से लगभग 4600 परिवारों को एकीकृत खेती और संबद्ध गतिविधियों से जोड़कर उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि की जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य समूह से जुड़ी महिलाओं को 'लखपति दीदी' बनाना है, जिससे वे सालाना एक लाख रुपये से अधिक की आय अर्जित कर सकें।
'बिहान' परियोजना के तहत, पारंपरिक खेती से हटकर उन्नत किस्म के बीजों और नई तकनीकों का उपयोग करके अधिक मात्रा में उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। साथ ही, पौधों में होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए भी प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
सब्जी उत्पादन से आत्मनिर्भरता की राह
परियोजना के पहले चरण में, स्वसहायता समूह से जुड़ी 1800 से अधिक दीदियों ने अपने घरों के बाड़ी में 5 से 10 डिसमिल भूमि पर लतर वाली सब्जियों जैसे करेला, बरबटी, लौकी, तरोई और गिलकी का उत्पादन शुरू किया है। इसके लिए उन्होंने मल्चिंग और मचान जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया है।
ग्राम कलचा के जयंती बघेल बिहान स्व सहायता समूह' की सदस्य हैं और लगभग 15 डिसमिल में सब्जी उत्पादन कर रही हैं। इसी तरह ग्राम नेगीगुड़ा की पद्मा बघेल 'रुपशिला स्व सहायता समूह' से जुड़ी हैं और 10 डिसमिल में सब्जी उगा रही हैं। ग्राम बीजापुट की चंपा बघेल 'जीवन ज्योति स्व सहायता समूह' की सदस्य हैं और 25 डिसमिल में, जबकि ग्राम करणपुर की हीरामणि 'दुलार देई स्व सहायता समूह' की सदस्य हैं और 5 डिसमिल में सब्जी उत्पादन कर रही हैं।
इस पहल से गांवों में सब्जियों का पर्याप्त उत्पादन हो रहा है, जिससे न केवल स्वयं के परिवार के पोषण और स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है, बल्कि बाजार से सब्जी खरीदने पर होने वाले खर्च में भी कमी आ रही है। इस बचत राशि का उपयोग महिलाएं अपनी दैनिक आवश्यकताओं, बच्चों की पढ़ाई, संपत्ति निर्माण या नए व्यवसाय में कर सकती हैं।
इसके अलावा, अतिरिक्त सब्जी को स्थानीय बाजारों और छोटी मंडियों में बेचकर महिलाएं अपनी आय बढ़ा रही हैं, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।g भविष्य में, बस्तर में उत्पादित सब्जियों की मांग के अनुरूप जिले के बाहर भी इनकी आपूर्ति की योजना है।
एक सदस्य, कई आजीविका गतिविधियां
'बिहान' परियोजना का लक्ष्य एक सदस्य को तीन से चार आजीविका गतिविधियों से जोड़ना है। इसमें सब्जी उत्पादन के अलावा मक्का, पशुपालन (मुर्गी, बकरी), वनोपज (इमली प्रसंस्करण), मछली पालन और लघु धान्य उत्पादन जैसी संबद्ध गतिविधियां भी शामिल हैं, जो महिलाओं की आय वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
'बिहान' की यह पहल बस्तर की ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे वे सही मायने में 'लखपति दीदी' बन सकेंगी।
हथबंद की ज्योति बनीं आत्मनिर्भरता की मिसाल
ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में चलाई जा रही बिहान योजना से बलौदाबाजार के ग्राम हथबंद की ज्योति निषाद ने न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल की, बल्कि अपने परिवार को एक नई दिशा भी दी।
पहले खेती पर निर्भर रहने वाली ज्योति निषाद के परिवार की स्थिति उस समय कठिन हो गई जब उनके पति की तबीयत खराब रहने लगी। ऐसे समय में उन्होंने ‘जय मां सरस्वती’ स्व-सहायता समूह से जुड़कर कपड़ा दर्री बुनाई, सिलाई कार्य और किराना दुकान की शुरुआत की। बिहान योजना के अंतर्गत उन्हें ₹3 लाख का बैंक लिंकेज और ₹60,000 का सामुदायिक निवेश कोष उपलब्ध कराया गया। वर्तमान में ज्योति निषाद लगभग ₹12,000 प्रतिमाह की आय प्राप्त कर रही हैं और यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत का परिणाम है।
बिहान योजना से मिली सहायता से वे न केवल आर्थिक रूप से सक्षम हुईं, बल्कि अब अन्य ग्रामीण महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं। श्रीमती ज्योति ने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि बिहान योजना हम महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का मार्ग मिला...
सेट्रींग प्लेट उपलब्ध कराकर खेमीन दीदी
दुर्ग/ गांव में मजदूरी कर गुज़ारा करने वाली स्व सहायता समूह की महिलाएं आज अपने व्यवसाय से लखपति बन चुकी हैं और क्षेत्र की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं। दुर्ग जिले के ग्राम पंचायत रिसामा में छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ‘‘बिहान‘‘ अंतर्गत संचालित कल्याणी स्व सहायता समूह की सदस्य और सचिव खेमीन निर्मलकर बिहान योजना में सक्रिय महिला के तौर पर भी कार्य कर रही है, और स्व सहायता समहों से जुड़ी महिलाओं के लिए एक मिशाल के तौर पर उभरी है।
खेमीन निर्मलकर बताती है कि ग्राम में मजदूरी का कार्य करती थी और उनके पति मिस्त्री के रूप में कार्य करते थे, जिससे उन्हंे 8,000 रूपये मासिक आमदानी प्राप्त होती थी। खेमीन ने समूह के माध्यम से ऋण लेकर नया व्यवसाय करने और अपनी आमदानी को बढ़ाने की योजना बनाई। समूह के माध्यम से उन्होंने 2.5 लाख रुपये का बैंक लोन और एक लाख रुपये अपनी पूंजी लगाकर 2000 वर्गफुट सेट्रींग प्लेट का निर्माण कार्य शुरू किया।
काम की गुणवत्ता और समय पर सेवा देने के चलते खेमीन दीदी की मांग बढ़ती गई। उन्होंने इसी वित्तीय वर्ष (2024-25) में अपने लाभ से 1000 वर्गफुट अतिरिक्त सेट्रींग प्लेट खरीदी और अब कुल 3000 वर्गफुट प्लेट्स उपलब्ध हैं। ये प्लेट्स अब तक 100-150 प्रधानमंत्री ग्रामीण आवासों और 100 से अधिक निजी निर्माण कार्यों में लगाई जा चुकी हैं।
हर 1000 वर्गफुट प्लेट से उन्हें 12 हजार रुपये की शुद्ध आमदनी होती है। इस हिसाब से 3000 वर्गफुट प्लेट से 36 हजार रुपये प्रतिमाह और 10 महीनों की कार्य अवधि में कुल 3 लाख 60 हजार रुपये वार्षिक आमदनी हो रही है।
सिर्फ खुद नहीं, औरों के लिए भी रोशनी बनीं
आज खेमीन दीदी सिर्फ अपने गांव रिसामा में ही नहीं, बल्कि दुर्ग जिले के चंदखुरी, उतई, घुघसीडीह, मचांदुर, कुकरैल, अण्डा, चिरपोटी और यहां तक कि बालोद जिले के ओटेबंद, सुखरी, पांगरी जैसे अनेक गांवों में भी प्रधानमंत्री आवास और निजी निर्माण कार्यों के लिए सेट्रींग प्लेट उपलब्ध करा रही हैं। अब उनकी योजना है कि वे आने वाले महीनों में अपने व्यवसाय को 3000 से बढ़ाकर 5000 वर्गफुट तक करें, जिससे और अधिक आमदनी हो सके और अन्य महिलाओं को भी रोजगार मिल सके।
