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Chhattisgarh ki Vishesh pichhadi janjati: ये है छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति , जानिए PVTG के बारे में पूरी जानकारी

Chhattisgarh ki Vishesh pichhadi janjati: छत्तीसगढ़ राज्य भारत देश का आदिवासी बहुल राज्य है। जनजाति समुदायों में कई ऐसे जनजाति समूह है जो आज भी बाहरी दुनिया से कटे हुए हैं। आइये जानते हैं PVTG के बारे में पूरी जानकारी.

Chhattisgarh ki Vishesh pichhadi janjati: ये है छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति , जानिए PVTG के बारे में पूरी जानकारी
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By Chirag Sahu

Chhattisgarh ki Vishesh pichhadi janjati: छत्तीसगढ़ राज्य भारत देश का आदिवासी बहुल राज्य है। कई हजारों सालों से आदिवासी संस्कृति और परंपरा छत्तीसगढ़ में जीवंत रूप में देखने को मिल जाती है। राज्य की जनसंख्या का लगभग एक तिहाई हिस्सा अनुसूचित जनजातियों का है। इन जनजाति समुदायों में कई ऐसे जनजाति समूह है जो आज भी बाहरी दुनिया से कटे हुए हैं।आधुनिकता भरी इस दुनिया के बावजूद भी वे प्रकृति पर निर्भर है और जंगलों में निवास करते हैं।

भारत सरकार ने इन्हीं जनजाति समुदाय के पांच समूहों को विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा दिया है और दो ऐसे जनजाति समूह है जिन्हें राज्य सरकार ने यह दर्जा प्रदान किया है। यह जनजाति समूह छत्तीसगढ़ के लगभग 10 जिलों में फैले हुए हैं। सरकार की कई योजनाएं इन्हें मुख्य धारा से जोड़ने का भी कार्य कर रही है। इस लेख में हम इन जनजातियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

अबूझमाड़िया

अबूझमाड़िया जनजाति बस्तर संभाग के नारायणपुर, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों के अबूझमाड़ क्षेत्र में निवास करती है। यह क्षेत्र घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिसके कारण यह जनजाति बाहरी दुनिया से काफी हद तक कटी हुई है। यह सबसे छोटी विशेष पिछड़ी जनजाति है क्योंकि इनकी संख्या लगभग 551 मात्र है। अबूझमाड़िया लोग गोंड जनजाति की एक उप-शाखा हैं और अपनी प्राचीन परंपराओं को आज भी जीवित रखे हुए हैं। ये

बैगा

बैगा जनजाति छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी विशेष पिछड़ी जनजाति है। ये लोग कबीरधाम, बिलासपुर, कोरिया, राजनांदगांव, मुंगेली और जशपुर जिलों में फैले हुए हैं। बैगा अपने आप को जंगल का राजा मानते हैं और प्रकृति के साथ गहरा जुड़ाव रखते हैं। इनकी संस्कृति में 'गुर्रा' देवता की पूजा और 'सैला' नृत्य का विशेष महत्व है। बैगा जनजाति के लोगों को आदिवासियों द्वारा डॉक्टर की तरह माना जाता है क्योंकि इन्हें जड़ी बूटियो व बीमारी के इलाज पद्धति अच्छे से पता होती है।

कमार

कमार जनजाति को धनगढ़ी या धनका भी कहा जाता है। ये सूरजपुर, कोरिया, जशपुर और बलरामपुर जिलों में रहते है। इनकी जनसंख्या लगभग तीस हजार है। कमार लोग अपनी धातु कला के लिए प्रसिद्ध हैं और औजार बनाने में निपुण हैं। इनकी संस्कृति में 'करमा' नृत्य और प्रकृति पूजा का विशेष स्थान है।

बिरहोर

बिरहोर शब्द का अर्थ होता है जंगल में रहने वाले मनुष्य। ये सूरजपुर, कोरिया, जशपुर और बलौदाबाजार जिलों में निवास करते है। बिरहोर जनजाति के लोग खानाबदोश जीवन जीते हैं और बांस के पत्तों से बने अस्थायी घरों में रहते हैं। इनकी आजीविका का मुख्य स्रोत शिकार और जंगल से महुआ, तेंदू पत्ता जैसे उत्पादों का संग्रहण है। सारुल नृत्य और टोटेम पूजा इनकी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं।


पहाड़ी कोरवा

पहाड़ी कोरवा जनजाति कोरवा समुदाय की एक उप-शाखा है और सूरजपुर,कोरिया, कोरबा और बलरामपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में रहती है। 'कोरवा' का अर्थ है जंगल का स्वामी। पशु पूजा इनकी सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा हैं। ये लोग कोरवा भाषा बोलते हैं। सरकार ने भी कोरवा विकास प्राधिकरण के माध्यम से इन्हें मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य किया है।

उपरोक्त पांच जनजाति समूह को भारत सरकार द्वारा विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है परंतु दो अन्य जनजातीया भी हैं जिन्हें राज्य सरकार ने विशेष पिछड़ी जनजाति माना है और इन्हें भी सुविधाएं प्रदान की गई हैं।

भुंजिया

भुंजिया जनजाति को छत्तीसगढ़ सरकार ने विशेष पिछड़ी जनजाति के रूप में मान्यता दी है। ये लोग रायगढ़, जशपुर और सरगुजा जिलों में रहते हैं। ये लोग असुरी भाषा बोलते हैं और पारंपरिक कृषि व पशुपालन पर निर्भर हैं। भुंजिया समुदाय की आर्थिक स्थिति कमजोर है, क्योंकि ये आज भी आधुनिक संसाधनों से वंचित हैं।

पंडो

पंडो जनजाति भी राज्य सरकार द्वारा विशेष पिछड़ी जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनकी जनसंख्या लगभग 5 हजार के आसपास है। इनका जीवन प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। यह लोग कोरिया, सूरजपुर सरगुजा और बलरामपुर में रहते है। ये अपनी उत्पत्ति महाभारत काल के पांडवों से मानते हैं।

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