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छत्तीसगढ़ के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों का मत अलग-अलग.... फिर, ऐसा दिया फैसला

याचिकाकर्ता रमेश बघेल की उस याचिका जिसमें उसने अपने पिता के शव का अंतिम संस्कार करने पैतृक गांव के श्मशान घाट में दो गज जमीन मांगी थी। ग्रामीणों ने ईसाई धर्म के लिए गांव के कुछ दूरी पर स्थित कड़कापाल गांव में जगह आरक्षित होने की बात कहते हुए गांव में अंतिम संस्कार करने की मनाही कर दी थी। दरअसल रमेश बघेल धर्म परिवर्तन करने के साथ ही पादरी बन गया है और ईसाई धर्म का प्रचार करता है। यही कारण है कि ग्रामीणों ने ईसाई समुदाय के लिए कड़कापाल में श्मशान घाट होने की बात कहते हुए मना कर दिया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच का मत भी अलग-अलग आया। दोनों जजों की सहमति ना बन पाने के कारण संविधान में दी गई व्यवस्था के तहत आदेश जारी किया है। पढ़िए सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में क्या कहा है।

छत्तीसगढ़ के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों का मत अलग-अलग.... फिर, ऐसा दिया फैसला
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By Sandeep Kumar

बिलासपुर। बस्तर के कड़कापाल निवासी रमेश बघेल ने पिता की मृत्यु के बाद शव को पैतृक गांव में अंतिम संस्कार करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने ईसाई समुदाय के लिए आरक्षित कड़कापाल गांव के श्मशान घाट में अंतिम संस्कार करने का आदेश देते हुए याचिका को खारिज कर दिया था। रमेश ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों का मत अलग-अलग था। संविधान में दी गई व्यवस्था का अनुसरण करते हुए डिवीजन बेंच ने ईसाई धर्म के लिए आरक्षित कड़कापाल गांव के श्मशान घाट में पिता के शव का अंतिम संस्कार करने का आदेश जारी किया है। याचिकाकर्ता को सुरक्षा प्रदान करने संबंधी अन्य जरुरी आदेश सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन को दिया है।

याचिका की सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चन्द्र शर्मा की डिवीजन बेंच में हुई। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच का मत एक नहीं सका। दोनों इस मुद्दे पर असहमत रहे। जस्टिस बीवी नागरत्ना का कहना था कि भारत का संविधान सेक्यूलर है। लिहाजा प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने के साथ ही प्रत्येक स्थान पर रहने और अंतिम संस्कार की अनुमति मिलनी चाहिए। इसमें किसी तरह का रोक-टोक नहीं होना चाहिए। जस्टिस सतीशचंद्र शर्मा का कहना था कि संविधान में बनाई गई व्यवस्था और तय किए गए नियमों के अनुसार कानून के हिसाब से कड़कापाल में जगह निर्धारित की गई है। इसलिए याचिकाकर्ता को अपने पिता के शव का अंतिम संस्कार उसी जगह पर करना चाहिए। पीठ की आपस में असहमति के चलते संविधान के अनुच्छेद 1942 में दी गई व्यवस्थाओं और निर्देशों का पालन करते हुए डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट द्वारा जारी आदेश के तहत कड़कापाल गांव में अपने पिता के शव का अंतिम संस्कार करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन को भी जरुरी दिशा निर्देश जारी करते हुए याचिकाकर्ता को अपने पिता के शव का अंतिम संस्कार करने में मदद की बात कही है।

0 सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया ये निर्देश

(i) अपीलकर्ता अपने मृत पिता का अंतिम संस्कार करेगा तथा उन्हें कड़कापाल गांव स्थित कब्रिस्तान में दफनाएगा।

(ii) राज्य और उसके स्थानीय प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि यदि याचिकाकर्ता चाहे तो मृतक के शव को जगदलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज के शवगृह से कड़कापाल गांव स्थित ईसाई कब्रिस्तान में स्थानांतरित करने के लिए याचिकाकर्ता और उसके परिवार को सभी प्रकार की सहायता प्रदान की जाए।

(iii) इस संबंध में पर्याप्त पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

(iv) राज्य और उसके प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि मृतक पिता का अंतिम संस्कार यथाशीघ्र हो।

0 केंद्र व राज्य शासन के विधि अधिकारियों ने की पैरवी और ये कहा

राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता प्रफुल्ल भारत ने कहा कि बस्तर के गांवों में पांचवींअनुसूचित क्षेत्र के अलावा पेसा कानून प्रभावशील है। कानून का उल्लंघन करने या फिर जबर्दस्ती करने पर लोक व्यवस्था का प्रश्न खड़ा हो सकता है। ग्राम पंचायतों में 1999 का नियम भी बना हुआ है। जहां जगह निर्धारित है उसी जगह पर अंतिम संस्कार करने की बाध्यता भी है। क्रिश्चियन के लिए कानून के हिसाब से कड़कापाल की जगह निर्धारित है। इसलिए याचिकाकर्ता को अपने पिता के शव का अंतिम संस्कार कड़कापाल कब्रिस्तान में करना चाहिए।

0 केंद्र व राज्य शासन की ओर से इन्होंने की पैरवी

तुषार मेहता, सॉलिसिटर जनरल, प्रफुल्ल भरत, महाधिवक्ता छत्तीसगढ़,कौस्तुभ शुक्ला व रोहित शर्मा ने

पैरवी की।

0 क्या है मामला

बस्तर के दरभा निवासी याचिकाकर्ता रमेश बघेल के पिता की 7 जनवरी को मृत्यु हो गई। उनकी मौत के बाद से याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने गांव के आम कब्रिस्तान में ईसाईयों के लिए सुरक्षित जगह पर उनका अंतिम संस्कार करने की तैयारी की थी। लेकिन, इसकी जानकारी होने पर गांव के लोगों ने विरोध कर दिया और तनाव की स्थिति निर्मित हो गई। ग्रामीणों ने कहना है कि किसी ईसाई व्यक्ति को उनके गांव में दफनाया नहीं जा सकता। चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या याचिकाकर्ता की अपनी निजी भूमि। जिसके बाद रमेश बघेल ने अपने पिता का शव अपनी खुद की जमीन पर दफन करने और सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने विशेष अनुमति याचिका में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पहले स्थानीय अधिकारियों के साथ ही सरकार से सुरक्षा और मदद मांगी थी। जहां से मदद नहीं मिलने पर उसे हाई कोर्ट आना पड़ा। याचिका में कहा कि छत्तीसगढ़ ग्राम पंचायत नियम, 1999 के प्रावधानों के अनुसार मृत व्यक्ति के धर्म की रीति के अनुसार शवों के अंतिम संस्कार के लिए जगह उपलब्ध कराना ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है।

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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