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छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की टूटी कमर: भारी बारिश में भी सुरक्षाबलों का करारा प्रहार, क्या 2026 तक खत्म हो जाएगा 'लाल आतंक'?

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है, सरकार की नीतियों और सुरक्षाबलों द्वारा चलाये जा रहे ऑपरेशंस से नक्सली अब परेशान हो गए है..

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की टूटी कमर: भारी बारिश में भी सुरक्षाबलों का करारा प्रहार, क्या 2026 तक खत्म हो जाएगा लाल आतंक?
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(NPG FILE PHOTO)

By Ashish Kumar Goswami

रायपुर। छत्तीसगढ़ के जंगलों में दशकों से दहशत फैला रहा 'लाल आतंक' अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। पिछले दो सालों में सुरक्षाबलों ने जिस तरह से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाए हैं, उसने पूरे नक्सली संगठन की नींव हिला दी है। एक-एक करके बड़े-बड़े कमांडर मारे जा रहे हैं या हथियार डाल रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने का सपना अब हकीकत में बदलता दिख रहा है।

आप सुनकर हैरान रह जाएंगे कि, साल 2024 से लेकर सितंबर 2025 तक छत्तीसगढ़ में 435 से ज़्यादा नक्सली मारे जा चुके हैं। इनमें से अकेले 2025 में ही 244 नक्सली ढेर हुए हैं। ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि इस बात का सबूत हैं कि, सुरक्षाबल अब पूरी ताकत से नक्सलियों के गढ़ में घुस चुके हैं।

नक्सलवाद की टूटी रीढ़, टॉप लीडर्स हुए ढेर

नक्सली संगठन की असली ताकत उसके बड़े-बड़े नेताओं में थी, जिन्हें रणनीति बनाने और युवाओं को गुमराह करने में महारत हासिल थी। लेकिन अब इनमें से ज़्यादातर या तो मारे जा चुके हैं या उन्होंने सरेंडर कर दिया है।

1. नंबाला केशव राव उर्फ ​​बसवराजू उर्फ : 22 मई 2025 को नारायणपुर में ढेर हुआ यह नक्सली संगठन का सबसे बड़ा चेहरा था। डेढ़ करोड़ के इनामी बसवराजू को माओवादी संगठन का महासचिव और सैन्य मास्टरमाइंड माना जाता था। वह एक पढ़ा-लिखा इंजीनियर था, जिसने अपनी पढ़ाई छोड़ नक्सलवाद का रास्ता अपनाया। उसकी मौत को माओवादियों के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है।

2. नर सिंहाचलम उर्फ सुधाकर: बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके में सुरक्षाबलों ने 50 लाख के इनामी सुधाकर को मार गिराया।

3. मोडेम बालकृष्ण उर्फ मनोज: 11 सितंबर 2025 को गरियाबंद में एक बड़ी मुठभेड़ में डेढ़ करोड़ के इनामी बालकृष्ण समेत 10 नक्सली मारे गए।

4. अनिल पूनेम और रामचंद्र रेड्डी उर्फ चलपति: ये दोनों भी बड़े नक्सली नेता थे, जिन्हें सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन चलाकर ढेर किया। जब संगठन के बड़े नेता ही नहीं रहे, तो बाकी कैडरों का मनोबल टूटना तय था। इन मौतों से नक्सलवाद की रीढ़ टूट गई है।

इन कारणों से हथियार डाल रहे नक्सली

एक तरफ जहां सुरक्षाबलों की गोलियों से नक्सली ढेर हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कई नक्सली डर और निराशा में हथियार डाल रहे हैं। सरकार की आत्मसमर्पण नीति अब रंग ला रही है। इस नीति के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों को पैसे, नौकरी और नई जिंदगी की गारंटी दी जाती है।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि, सरेंडर करने वालों में महिला नक्सलियों की संख्या सबसे ज़्यादा है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि, बड़े नक्सली नेता इन महिला नक्सलियों का शारीरिक शोषण करते थे और उन पर हुकुम चलाते थे। इस गुलामी से तंग आकर कई महिलाओं ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है।

हाल ही में, 13 सितंबर 2025 को नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी की सीनियर मेंबर सुजाता ने तेलंगाना पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। खराब सेहत और संगठन की अंदरूनी कमजोरी को उसने सरेंडर की वजह बताया। सुजाता के सरेंडर से पुलिस को नक्सलियों की अंदरूनी जानकारी मिल रही है, जिससे आगे के ऑपरेशनों में मदद मिलेगी।

सरकार की नीति और बस्तर का विकास

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ बंदूक और विकास की दोहरी नीति कारगर साबित हो रही है। जहां एक ओर सुरक्षाबलों के लगातार ऑपरेशन से नक्सलियों के बड़े लीडर मारे जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार ने प्रभावित इलाकों में विकास की रफ्तार को तेज कर दिया है।

सरकार की नई 'छत्तीसगढ़ नक्सल आत्मसमर्पण/पीड़ित राहत और पुनर्वास नीति-2025' के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को आर्थिक मदद, नौकरी और कानूनी सहायता दी जा रही है। इस नीति से प्रभावित होकर 2024 में 1,045 और 2025 में 1,100 से ज्यादा नक्सलियों ने हथियार डाले हैं। साथ ही, बस्तर जैसे धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़कें, मोबाइल टावर, बिजली, स्कूल और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।

सरकार ने इन क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में 300% की वृद्धि की है। इसके अलावा, सुरक्षाबलों ने अंदरूनी जंगलों में नए कैंप स्थापित किए हैं, जो सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, बल्कि सामुदायिक केंद्रों के रूप में भी काम कर रहे हैं। इन कैंपों से ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवा और सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है, जिससे उनका पुलिस और प्रशासन पर भरोसा बढ़ा है। अब ग्रामीण नक्सलियों से डरने के बजाय उनके बारे में खुफिया जानकारी दे रहे हैं, जिससे ऑपरेशन में मदद मिल रही है। यह सब इस बात का सबूत है कि सरकार की यह रणनीति नक्सलियों का मनोबल तोड़ रही है और उन्हें मुख्यधारा में लौटने पर मजबूर कर रही है।

क्या खत्म हो पाएगा लाल आतंक?

आज की तारीख में नक्सलियों की ताकत बहुत घट चुकी है। संगठन के पास अब अनुभवी और पढ़े-लिखे कैडरों की भारी कमी है। नए महासचिव देवजी और हिड़मा के नेतृत्व में संगठन के पास अब वो पुरानी ताकत और रणनीति नहीं रही है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि, भले ही सशस्त्र नक्सली खत्म हो जाएं, लेकिन नक्सलवाद की विचारधारा पूरी तरह खत्म नहीं होगी। लेकिन जिस तरह से सुरक्षाबलों ने पिछले कुछ महीनों में कामयाबी हासिल की है, उससे यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अपने अंतिम चरण में है। 2026 तक इसे पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य अब नामुमकिन नहीं लगता। यह सब इस बात का संकेत है कि, नक्सलवाद अब अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है और छत्तीसगढ़ में शांति और विकास की एक नई सुबह आने वाली है। ऐसी ही तमाम ख़बरों के लिए बने रहे NPG न्यूज के साथ।

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