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CGMSC Scame: EOW की जांच रिपोर्ट में बड़ा खुलासा: डॉ. अनिल परसाई और शशांक चोपड़ा मोबाइल के जरिए पूरे समय एक दूसरे के संपर्क में रहे, 341 करोड़ के रीएजेंट घोटाले में संगठित गिरोह ने किया काम

CGMSC Scam: EOW की जांच रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। जांच एजेंसी ने जिन छह अधिकारी व कर्मचारियों को घोटाले का मास्टर माइंड बताते हुए गिरफ्तार कर स्पेशल कोर्ट में चालान के साथ ही आरोप पत्र पेश किया है उसमें चौंकाने वाली बातें सामने आ रही है। जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 341 करोड़ के रीएजेंट घोटाले में संगठित गिरोह ने काम किया है। राज्य सरकार के खजाने को भारी नुकसान पहुंचाने में सीजीएमएसीएल के अफसरों ने मोक्षित कारपोरेशन के मालिक सहित दो अन्य कंपनियों के कर्ताधर्ताओं के साथ मिलकर पूरा खेला किया है। डा अनिल परसाई और मोक्षित कारपोरेशन के मालिक शशांक चोपड़ा के बीच बातचीत का काल रिकार्ड भी सामने आया है। ठेका की प्रक्रिया के दौरान दोनों मोबाइल के जरिए लगातार एक दूसरे के संपर्क में रहे हैं।

CGMSC Scame: EOW की जांच रिपोर्ट में बड़ा खुलासा: डॉ. अनिल परसाई और शशांक चोपड़ा मोबाइल के जरिए पूरे समय एक दूसरे के संपर्क में रहे, 341 करोड़ के रीएजेंट घोटाले में संगठित गिरोह ने किया काम
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CGMSC Scam

By Radhakishan Sharma

CGMSC Scam:रायपुर। सीजीएमएससी रीएजेंट घोटाले में राज्य सरकार के खजाने को 341 करोड़ का चूना लगाने वाले विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों ने ठेका कंपनियों के लोगों के साथ एक संगठित गिरोह के रूप में काम को अंजाम दिया है। ईओडब्ल्यू की जांच रिपोर्ट में कुछ इसी तरह का चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। मोक्षित कारपोरेशन के मालिक शशांक चोपड़ा और डॉ. अनिल परसाई के बीच मोबाइल के जरिए हुई बातचीत का काल डिटेल ईओडब्ल्यू ने निकाला है। ठेका की प्रक्रिया प्रारंभ होने से लेकर अंत तक दोनों एक दूसरे के लगातार संपर्क में रहे। हजारों बार दोनों के बीच बातचीत हुई। शशांक चाेपड़ा ने ठेका हथियाने के लिए जैसा चाहा,उसकी इच्छानुसार डा परसाई ने वह सब किया। इसके बदले शशांक चोपड़ा ने डा परसाई को मोटी रकम भी दी।

0 EOW की जांच रिपोर्ट में परसाई के बारे में यह सब

रीएजेंट्स की आपूर्ति हेतु बनाए गए इंडेंट में डॉ. अनिल परसाई की भूमिका अत्यंत आपत्तिजनक रही है। उन्होंने विशेषज्ञ समिति के स्पष्ट निर्णयों को दरकिनार करते हुए मनमाने ढंग से रीएजेंट्स की सूची तैयार करवाई।

कई ऐसे रीजेंट्स जिनकी आवश्यकता नहीं थी या जिन्हें समिति द्वारा हटाने की अनुशंसा की गई थी जैसे Cardiac Marker, Cancer Marker उन्हें पुनः जोड़ा गया और उनकी मात्रा भी जानबूझकर बढ़ाई गई। इससे शासन को करोड़ों रुपये की अनावश्यक वित्तीय क्षति पहुँची।

डॉ. परसाई ने इंडेंट निर्धारण प्रक्रिया में समिति की बैठक और राय को केवल औपचारिकता के रूप में उपयोग किया। उन्होंने न केवल विशेषज्ञों की आपत्तियों को दबाया, बल्कि फाइलों में पूर्वनिर्धारित निर्णयों के पक्ष में हस्ताक्षर भी करवाए. जिससे यह स्पष्ट होता है कि पूरी प्रक्रिया पहले से ही मोक्षित कॉर्पोरेशन को लाभ पहुँचाने हेतु नियंत्रित की जा रही थी।

0 कमेटी की सिफारिशों को किया नजर अंदाज

डॉ. अनिल परसाई की भूमिका केवल समिति के संयोजक या प्रतिनिधि तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने पूरे इंडेंट निर्धारण और मंजूरी प्रक्रिया को पूर्णतः अपने नियंत्रण में रखते हुए संचालित किया। अनेक अवसरों पर उन्होंने समिति सदस्यों की वास्तविक राय और सुझावों की उपेक्षा कर मनमानी प्रवृत्ति अपनाई, जिसके परिणामस्वरूप रीएजेंट्स की वास्तविक आवश्यकता से कई गुना अधिक मात्रा में आपूर्ति की गई।

0 जहां लैब नहीं वहां बड़ी मात्रा में करा दी रीएजेंट की सप्लाई

ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार जहां प्रयोगशाला, प्रशिक्षित स्टाफ या उपयोग की संभावना नगण्य थी, वहां भी एक समान और बड़ी मात्रा में रीएजेंट भेजे गए। इससे यह संदेह और भी प्रबल होता है कि डॉ. अनिल परसाई द्वारा यह वितरण किसी पूर्वनियोजित योजना, पक्षपातपूर्ण निर्णय अथवा किसी निजी /व्यावसायिक हित को ध्यान में रखकर किया गया।

0 यह सब जानबुझकर किया

ऐसे अनेक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) थे जहां न तो रेफ्रिजरेटर की सुविधा उपलब्ध थी, न ही नियमित लैब टेक्नीशियन पदस्थ थे, फिर भी वहां भी भारी मात्रा में रीएजेंट भेजे गए, जिनका कोई उपयोग नहीं हुआ और अधिकांश रीजेंट समयावधि समाप्त होने के कारण नष्ट हो गए। इस स्थिति से यह प्रतीत होता है कि डॉ. परसाई ने अपने प्रभाव का प्रयोग कर जानबूझकर गैर-उपयोगी केंद्रों में भी आपूर्ति करवाई, जिससे शासन को आर्थिक हानि हुई और योजना की पारदर्शिता और उद्देश्य दोनों को क्षति पहुँची।

0 डॉ. परसाई ने बार-बार समिति के सदस्यों की सलाह की उपेक्षा की और निर्णय थोपे। कई ऐसे पैरामीटर जो तकनीकी रूप से अनुपयुक्त थे, उन्हें भी जबरन सम्मिलित किया गया। उन्होंने न केवल विशेषज्ञों के तर्कों की अनदेखी की, बल्कि उन्हीं लोगों को दूसरी समिति में नामांकित किया जो पहले से तय निर्णयों का समर्थन करें। इससे यह स्थापित होता है कि समिति की पारदर्शिता और स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन किया गया।

0 निविदा क्रमांक-182 की प्री-बिड मीटिंग के रिप्रेजिंटेशन में कुछ फर्मों ने निविदा की स्पेसिफिकेशन को टेलर मेड बताते हुए उसमें सुधार करने के लिए सुझाव दिये थे जिसे डॉ अनिल परसाई द्वारा जानबूझ कर निविदा के अंतिम तिथि तक रोक कर रखा गया। जिसके कारण उपकरणों के स्पेसिफिकेशन नहीं बदले जा सके।

0 डॉ अनिल परसाई एवं क्षिरौद्र रौतिया को कवर-बी, खोले जाने के दौरान डेमोस्ट्रेशन की प्रकिया में श्री शारदा इण्डस्ट्रीज एवं रिकॉर्डर्स एण्ड मेडिकेयर सिस्टम्स प्राईवेट लिमिटेड द्वारा अन्य मेक मॉडल के मशीन प्रस्तुत किये जाने की जानकारी होने के बाद भी उनके उपकरणों को डेमोस्ट्रेशन की कार्यवाही में शामिल करते हुए उन फर्म/कंपनियों को अर्ह / पात्र घोषित करने में सहयोग किया।

0 सीजीएमएससीएल द्वारा निविदा कमांक-182 के अंतर्गत उपकरणों के कय आदेश जारी करने के पश्चात बिना विशेषज्ञ समिति के राय के स्टार्टर किट के इंडेंट स्वयं से तैयार किय गये। जिससें जो रीएजेंट की संस्थाओं में आवश्यकता नहीं थी, उन्हें भी कय कर लिया गया।

0 CDR में हुआ ऐसे खुलासा

विस्तृत कॉल डाटा रिकॉर्ड (CDR) विश्लेषण से यह साबित होता है कि डॉ. अनिल परसाई की शशांक चोपड़ा से लगातार टेलीफोनिक बातचीत होती रही, विशेषकर उस अवधि में जब निविदा क्रमांक-182 से संबंधित निर्णय प्रक्रिया अपने निर्णायक चरण में थी। दिनांक-वार कॉल डिटेल से यह स्पष्ट होता है कि डॉ. परसाई और शशांक चोपड़ा के बीच लगातार संवाद हुआ। यह संयोग नहीं, बल्कि एक स्पष्ट साजिश का संकेत है, जिसमें प्रत्येक निर्णायक मोड़ पर पूर्व समन्वय स्थापित कर प्रक्रिया को मोक्षित कॉर्पोरेशन के पक्ष में मोड़ा गया।

ईओडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह न केवल एक संगठित और पूर्वनियोजित आपराधिक षडयंत्र को रेखांकित करता है, कॉल डाटा एक तकनीकी, निर्विवाद और निष्पक्ष साक्ष्य है, जो यह स्थापित करता है कि डॉ. अनिल परसाई ने शशांक चोपड़ा के प्रभाव में आकर न केवल निर्णयों को मोड़ा, बल्कि शासन को करोड़ों की क्षति पहुंचाने वाली प्रक्रिया में अपनी निर्णायक भूमिका निभाई।

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