CG Private Hospitals: 10 हजार झोला छाप डॉक्टर छत्तीसगढ़ के अस्पतालों के बैकबोन, इसीलिए IMA द्वारा कभी झोला छाप डॉक्टरों का विरोध नहीं?
CG Private Hospitals:आयुर्वेदिक और होम्योपैथी डॉक्टरों की ऐलोपैथिक प्रैक्टिस के खिलाफ आईएमए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दौड़ जाता है मगर झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ कभी कोई आवाज नहीं उठाता। इसका रहस्य जानकर आप चौंक जाएंगे। कई डॉक्टरों का दावा है कि बिना डिग्री वाले झोला छाप डॉक्टरों पर अगर कार्रवाई हो गई तो आधे अस्पताल बंद हो जाएंगे।

CG Private Hospitals: रायपुर। आईएमए द्वारा आयुर्वेदिक और होम्योपैथी का किस स्तर तक विरोध किया जाता है, इन दो उद्धरणों से आप समझ जाएंगे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत सरकार ने डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए आयुर्वेदिक और होम्योपैथी डॉक्टरों के लिए ब्रिज कोर्स चलाने का प्रस्ताव तैयार किया गया था ताकि उसके बाद उन्हें एलोपैथी चिकित्सा के लिए छूट दी जा सके। इस प्रस्ताव के खिलाफ देश भर के डॉक्टर एकजुट हो गए। आईएमए ने पूरे देश के चिकित्सा सिस्टम को ठप्प कर देने की चेतावनी दी थी।
इसके बाद भारत सरकार ने प्रस्ताव को ड्रॉप करते हुए यह तय करने का अधिकार राज्यों को दे दिया। यूपी, पश्चिम बंगाल समेत कुछ राज्यों ने आयुर्वेविदक और यूनानी चिकित्सा की कुछ शर्तो के साथ इजाजत दे दी।
छत्तीसगढ़ सरकार ने भी 2019 में 29 दवाओं के संबंध में आर्युवेदिक और यूननी पद्धति से इलाज करने का नोटिफिकेशन जारी किया था। इसको लेकर आईएमए बिलासपुर हाई कोर्ट चला गया था।
मगर विडंबना देखिए
जिन आर्युवेदिक डॉक्टरों के खिलाफ आईएमए राशन-पानी लेकर कोर्ट-कचहरी से लेकर देश के चिकित्सा सिस्टम को ठप्प करने पर अमादा हो जाता है, छत्तीसगढ़ में हाल यह है कि आर्युवेदिक और होम्योपैथी डॉक्टरों के बिना अस्पतालों का संचालन संभव नहीं है।
छत्तीसगढ़ के बड़े कारपोरेट अस्पताल भी आर्युवेदिक और होम्योपैथी डॉक्टरों पर निर्भर हैं। खासकर, रात की ड्यूटी में किसी भी अस्पताल में चले जाइये, वहां बीएएमएस या बीएचएमएस डॉक्टर मिलेंगे। यहां तक कि इमरजेंसी और आईसीयू में भी इन डॉक्टरों की ड्यूटी लगा दी जाती है। याने एक तरफ आर्युवेदिक और यूनानी का प्रबल विरोध और दूसरी तरफ उनके बिना गुजारा नहीं।
छोटे अस्पतालों में झोला छाप या डेंटिस्ट
वो तो रहा कारपोरेट अस्पतालों की बात....छत्तीसगढ़ के 1300 से अधिक छोटे और मंझोले अस्पतालों की हालत तो और खराब है। रिशेप्सन के सामने दिखाने के लिए बोर्ड पर दर्जनों डॉक्टरों के नाम लिखे दिख जाएंगे मगर पता चलेगा कि कोई झोला छाप डॉक्टर अस्पताल संभाल रहा है। बिलासपुर के एक बड़े अस्पताल में हेल्थ विभाग की टीम ने रेड की तो उन्हें पूरे अस्तपाल में एकमात्र आर्युवेदिक डॉक्टर ड्यूटी करते मिला।
झोला छाप डॉक्टर अस्पतालों के माई-बाप
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि छत्तीसगढ़ के 1500 अस्पताल झोला छाप डॉक्टरों पर निर्भर हो गए हैं। यही वजह है कि आईएमए आर्युवेदिक, यूनानी और होम्योपैथी डॉक्टरों के खिलाफ तंबू तानकर बैठ जाता है मगर झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ आज तक कभी आवाज मुखर नहीं किया।
झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ न बोलने का सबसे बडी वजह है कि वे अस्पतालों के वे बैकबोन होते हैं।
गांवों के बिना पढ़े-लिखे झोला छाप डॉक्टर ही अस्पतालों के एजेंट की तरह काम करते हैं। झोला छाप डॉक्टरों का इतना तगड़ा नेवटर्क है कि 108 वाले भी उनकी बात मानते हैं। झोला छाप डॉक्टर ही किसी के बीमार पड़ने पर 108 को कॉल कर बुलाते हैं और बताते हैं कि फलां अस्पताल में लेकर जाना है। इसके एवज में झोला छाप डॉक्टरों को अच्छा खासा कमीशन मिलता है।
गजब की ईमानदारी
झोला छाप डॉक्टरों के साथ अस्पताल वाले ऐसी ईमानदारी बरतते हैं कि उसका जवाब नहीं। मरीजों के साथ भले ही लूट मचा दे मगर एजेंटों को पाई-पाई का हिसाब बताते हैं। याने किस मरीज का कितना बिल बना है, उसका पूरा ब्योरा देते हुए उसका कमीशन उसके खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है। रायपुर, बिलासपुर के अस्पताल संचालक पूरे प्रदेश में घूमघूमकर वर्कशॉप के नाम पर डॉक्टरों की पार्टी करते हैं मगर इसकी आड़ में झोला छाप डॉक्टरों को बुलाकर खुशामद किया जाता है। अब ऐसे में आईएमए कैसे झोला छाप डॉक्टरों का विरोध करेगा।
आईएमए का व्हीप
हालांकि, राज्य बनने के बाद आईएमए रायपुर ने नॉन डॉक्टरों के अस्पतालों को टारगेट करते हुए पहली बार डॉक्टरों के लि व्हीप जारी किया है। रायपुर आईएमए ने अपने व्हाट्सएप ग्रुप में डॉक्टरों से आग्रह किया है कि जिन अस्पतालों के मालिक डॉक्टर नहीं, वहां सेवा न दें।