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CG: पुलिस के हाथों से लाठी गायब, आखिर कहां गया जवानों का डंडा? जानिए लाठी की कहानी...

CG: दौर बदला पुलिस भी बदली है और ऐसे ही बदल गई पुलिस की लाठी, आखिर कहां गया जवानों का डंडा?

CG: पुलिस के हाथों से लाठी गायब, आखिर कहां गया जवानों का डंडा? जानिए लाठी की कहानी...
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By Sandeep Kumar

CG: रायपुर। एक समय था जब पुलिस की पहचान उसके डंडे से हुआ करती थी। चौक-चौराहे से पुलिसवाले गुजरते थे तो अच्छे-अच्छों की चाल सीधी हो जाती थी। उस समय लोगों के अंदर पुलिस के डंडे का खौफ हुआ करता था। लेकिन आज के समय में जवानों के हाथों से डंडा ही गायब नजर आ रहा है।

दरअसल, दौर बदला तो पुलिस भी बदली है और ऐसे ही बदल गई पुलिस की लाठी, अब लाठी ने आधुनिक रूप ले लिया है। कुछ सालों से फाइबर से बनी लाठी का उपयोग पुसिलकर्मियों के द्वारा किया जा रहा है। और ये फाइबर की लाठी कोरोना काल से ही सबसे ज्यादा चलन में आई। फायबर की लाठी हल्की और लचीली होती है।

अब पुलिसकर्मियों की लाठी तब ही नजर आती है जब कोई बड़ा धरना-प्रदर्शन हो या फिर दंगा होने वाला हो। लेकिन यहां पर भी आजकल पुलिस लकड़ी की लाठी नहीं बल्कि फाइबर से बनी लाठियों का उपयोग करते है। पुलिस की शोभा बढ़ाने वाली लाठी कोई आम लाठी नहीं बल्कि इसे विशेष रूप से तैयार किया जाता है। भर्ती के दौरान पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को लाठी चलाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।

ऐसे में जानते हैं आखिर कहां गुम हो गई लाठी और क्यों कर रहे फाइबर लाठी का उपयोग...

एनपीजी न्यूज की टीम जब थाने और सड़कों में तैनात पुलिसकर्मियों के हाथों में लाठी खोजने निकली तो जानिए क्या कुछ हुआ...

थानों में तैनात जवानों के हाथों में नहीं मिली लाठी

एनपीजी की टीम 11 जुलाई को राजधानी रायपुर के एक थाने पहुंची तो दो पुलिसकर्मी थाने के बाहर थे और चार फरियादी उनसे किसी विषय को लेकर चर्चा कर रहे थे। इस दौरान कांस्टेबलों के हाथों में लाठी नहीं थी। जब हमने उनसे पूछा कि आपके हाथ में लाठी नहीं, उन्होंने कहा लाठी थाने के अंदर रखी है।

फिर जब हम अंदर पहुची तो थाना प्रभारी के कक्ष से पहले वाले कक्ष में लगभग 8 पुलिसकर्मी मौजूद थे उनमें से चार पुलिसकर्मी टेबल में बैठकर लोगों की शिकायत सुन रहे थे और शिकायती पत्रों को रजिस्टर में दर्ज कर रहे थे। पुलिसकर्मियों के आसपास लोगों का मेला लगा हुआ था। इन सभी पुलिसकर्मियों के पास डंडा नहीं दिखा। जब उनसे डंडा के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ड़डा थाने में ही है, जब बड़ी घटनाएं या थाने में प्रदर्शन होने वाला होता है तो ये लाठी निकाला जाता है।

फाइबर लाठी मिली

एनपीजी की टीम जब थाने से निकली तो सड़क पर देख कि एक बारात नाचते गाते सड़क से गुजर रही थी। यहां पर दो पुलिसकर्मी यातायात व्यवस्था संभाल रहे थे। उनमें से एक पुलिसकर्मी के हाथ में डंडा था। डंडा भी फाइबर वाला ही था।

एनपीजी संवाददाता अपने दफ्तर पहुंचे और एक पुलिस अधिकारी को फोन कर पूछा गया कि इन दिनों लकड़ी कि लाठी कि बजाएं फाइबर कि लाठी पुलिसकर्मियों के हाथों में देखी जा रही है?.. पुलिस अधिकारी ने जवाब देते हुए कहा कि पहले लकड़ी से बनी लाठी का उपयोग होता था। पुलिस जब लाठी से किसी को मारती थी तो कई बार सामने वाले की हड्डी भी टूट जाती थी और सिर में भी चोट भी लगाती थी। लाठी की मार से शारीर में काफी दिनों तक दर्द होता था। अब फाइबर से बनी लाठी की मार से शरीर की हड्डी नहीं टूटती और ना ही मांसल वाली जगह पर निशान बनते है। और ना ही इसकी मार से सामने वाले को ज्यादा गंभीर दर्द होता है।

ड्यूटी के दौरान पुलिसकर्मियों पर हमला

पुलिसकर्मियों के हाथों में लाठी नहीं होने से कई बार बदमाशों के द्वारा पुलिसकर्मियों पर ही हमले हो जाते है। दरअसल, विवाद की शिकायत मिलने पर थाने की पुलिस अमूमन बिना लाठी के ही मौके पर कार्रवाई करने पहुंच जाती है। देखा गया कि पुलिस को निहत्ते देख अपने बचाव के लिए बदमाश उन पर ही हमला कर देते है।

जानिए डंडे की शुरूआत कब से हुई

भारत में लाठी का इस्तेमाल अंग्रेजों के शासन काल से चला आ रहा है। अंग्रेज काफी निर्दयी थे। वे लोग भारतीयों पर हर तरह से जुल्म करते थे। अंग्रेजी शासनकाल के सैनिक भीड़ काबू करने, किसी को सताने के लिए लाठी का उपयोग करते थे। तभी से लाठी का चलन पुलिस में आया। लाठी को बनाने के लिए किसी ठोस लकड़ी नहीं बल्कि लचीली बेंत का इस्तेमाल किया जाता था।

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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