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CG Paddy: 8000 करोड की चपत लगाने वाले मार्कफेड के अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं? टाईम पर धान का टेंडर होता तो भी 1800 करोड़ बच जाता

CG Paddy: छत्तीसगढ़ बनने के बाद सबसे बड़ी वित्तीय नुकसान के लिए कोई जिम्मेदार है तो वह हैं मार्कफेड के अफसर और उनके उपर बैठे लोग। समय रहते कस्टम मीलिंग करा नहीं पाए, उपर से जब बरसात चालू हो गया तो धान की नीलामी शुरू की। अगर दो महीने पहले भी बचे धान को बाजार में बेच लिया होता तो कम-से-कम दो हजार करोड़ का नुकसान बच जाता। मगर आश्चर्य की बात है कि इतनी बड़ी लापरवाही के बाद भी मार्कफेड के किसी भी अफसर पर कार्रवाई की बात तो दूर नोटिस तक इश्यू नहीं की गई है। सरकार ने मार्कफेड के एमडी को हटाकर किरण कौशल को बिठाया, तब तक काफी लेट हो चुका था। बहरहाल, सिस्टम यह कहकर नहीं बच सकता कि धान की खरीदी ज्यादा हो गई। धान सरकार के नार्म के हिसाब से ही खरीदा गया।

CG Paddy: 8000 करोड की चपत लगाने वाले मार्कफेड के अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं? टाईम पर धान का टेंडर होता तो भी 1800 करोड़ बच जाता
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By Sandeep Kumar

CG Paddy: रायपुर। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 25 साल में जो नहीं हुआ था, वो सबसे बड़ी लापरवाही मार्कफेड के अफसरों ने कर डाली। मार्कफेड के अधिकारियों ने एक तो धान की खरीदी के हिसाब से कस्टम मीलिंग की तैयारी नहीं की। उपर से बच गए तीन करोड़ 70 लाख क्विंटल धानों को बाजार में बेचने पर सही समय पर निर्णय नहीं लिया। कायदे से अगर मार्च, अप्रैल तक नीलामी का टेंडर कर दिया होता, तब भी राज्य के खजाने को इतना बड़ा नुकसान नहीं होता।

ये कहकर अधिकारी अपनी चमड़ी नहीं बचा सकते कि धान की खरीदी ज्यादा हो गई। कस्टम मीलिंग नहीं करा पाना अधिकारियों की लापरवाही है और उससे बड़ी लापरवाही यह कि तीन करोड़ 70 लाख क्विंटल धान बच गया, उसके बाद भी टाईम से उसको बाजार में बेचने का इंतजाम नहीं किया।

वैसे भी 4100 में किसानों से धान खरीदकर 1900 रुपए में बेचने सरकारी फैसले से करीब आठ हजार करोड़ की चपत लग रही है। नीलामी का टेंडर अफसरों ने अगर समय पर कर लिया होता तो धान का रेट कम-से-कम पांच सौ रुपए उपर मिल गया होता। रबि का धान आ जाने के कारण धान का रेट गिर गया है, वह पांच सौ उपर मिलता। याने 1900 की जगह सरकार को 2400 का रेट मिल जाता। इससे 8000 करोड़ की जगह 6200 करोड़ का ही नुकसान होता।

अप्रैल में अगर नीलामी कर दिया होता तो उस समय

खुले बाजार में धान का रेट 2300 से 2400 रुपए चल रहा था। मगर नीलामी का टेंडर नहीं हुआ और तब तक बाजार में रबि का धान आ गया। इसके चलते धान का रेट धराशायी हो गया। यदि पांच सौ रुपए रेट उपर मिल गया होता तो सरकार को इतना बड़ा नुकसान नहीं होता।

3100 का धान पड़ता 4100

दरअसल, किसानों से धान 3100 में खरीदा जाता है मगर खरीदी, परिवहन, सूखत आदि मिलाकर धान करीब 4100 रुपए में पड़ता है। महीना भर तक सिकरेट्री, कलेक्टर से लेकर राज्य की पूरी सरकारी मशीनरी धान खरीदी में लग जाती है, इससे समझा जा सकता है कि 8000 करोड़ के अलावे ये कितना बड़ा नुकसान हुआ। 3.70 करोड़ क्विंटल धान बच गया है। मार्कफेड इसे अब मिलरों को टिकाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए 1900 रुपए के हिसाब से नीलामी के लिए टेंडर निकाला गया है। याने 4100 में किसानों से धान खरीदकर उसे 1900 में बेचा जाएगा। अफसरों के इस कारनामों से राज्य के खजाने को आठ हजार करोड़ रुपए की चपत लगेगी। क्योंकि, प्रति क्विंटल 2200 रुपए का नुकसान होगा। इसे कोई अर्थशास्त्री सुनेगा तो उसका दिमाग चकरा जाएगा...छत्तीसगढ़ में आखिर ये हो क्या रहा है।

जाहिर है, छत्तीसगढ़ में धान का रेट 1800 से बढ़कर 3100 हो गया है, उधर, किसानों से प्रति एकड़ में अब 15 की बजाए 21 क्विंटल धान खरीदा जा रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले साल 110 लाख मीट्रिक टन की तुलना में 2024-25 में 140 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया।

बरसात आने पर अफसर हरकत में

एक तो पिछले साल की तुलना में 35 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी अधिक हो गई। फूड और मार्कफेड स्तर पर इसकी तैयारी नहीं की गई कि रेट और रकबा बढ़ने पर धान की खरीदी अधिक होगी तो उसकी मिलिंग का क्या होगा। अब स्थिति यह कि बरसात आ गया। कई जगहों पर धान खुले में भी रखे हुए हैं। इसको देखते मार्कफेड ने धान की नीलामी करने के लिए टेंडर निकाला है। इसके लिए 1900 रुपए रेट तय किया गया है। मगर मिलरों का कहना है कि मार्केट में जब 1800 में धान मिल रहा तो मार्कफेड से 100 रुपए महंगा धान क्यों खरीदे।

मिस मैनेजमेंट

धान खरीदी में मिस मैनेजमेंट से सरकार के खजाने को बड़ी चपत लगा रही है। 4100 रुपए में धान खरीद उसे 1900 में बेचा जा रहा। अर्थात 2200 रुपए का प्रति क्विंटल नुकसान। 3.37 करोड़ क्विंटल के हिसाब से अगर 2200 का गुणा करें तो लगभग आठ हजार करोड़ आएगा। सीधा-सीधा ये खजाने पर चोट होगा। जाहिर है, किसानों से धान खरीदी के लिए सरकार लोन लेती है। इस लोन के पैसे से खरीदे गए धान को 8000 करोड़ नुकसान में बेचना राज्य की बड़ी क्षति होगी।

मार्जिन मनी

इस साल जिस स्तर पर धान खरीदी हुई है, और सिस्टम में बैठे लोग इसका डिस्पोजल नहीं कर पाए, उसमें अर्थशास्त्र को जानने वालों का कहना है कि सरकार को इसके लिए अब कोई रास्ता निकालना पड़ेगा। वरना, खजाने की कमर टूट जाएगी। क्योंकि, अगले साल फिर धान की खरीदी बढ़ेगी। आखिर, 4100 में खरीदकर 1900 में बेचने के फैसले को सही कैसे ठहराया जा सकता है। इससे अच्छा तो ये कि प्रति एकड़ धान की खरीदी कम कर दिया जाए। या फिर किसानों से कुछ परसेंट धान लेकर बाकी मार्जिन मनी कैश उनके खाते में ट्रांसफर देना चाहिए।

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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