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CG OBC News: OBC को लगेगा आरक्षण का झटका! कोटा का होगा पुनर्निर्धारण, आयोग की सिफारिश के बाद ही होंगे स्थानीय चुनाव

स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को अब पहले जैसा निश्चित संख्या में आरक्षण नहीं मिलेगा। अब ओबीसी कल्याण आयोग तय करेगा कि किस निकाय में ओबीसी के लिए कितनी सीटें आरक्षित की जाए। दरअसल, यह सिर्फ छत्तीसगढ़ में नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पूरे देश में हो रहा है। मैदानी इलाकों में ओबीसी की आबादी अच्छी है इसलिए वहां कोई नुकसान नहीं होगा। मगर जहां आबादी कम वहां हो सकता है नुकसान।

CG OBC News: OBC को लगेगा आरक्षण का झटका! कोटा का होगा पुनर्निर्धारण, आयोग की सिफारिश के बाद ही होंगे स्थानीय चुनाव
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By Sandeep Kumar

CG OBC News रायपुर। एक बड़ी खबर आ रही है। छत्तीसगढ़ में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में अब पिछड़े वर्ग के लिए पहले जैसी संख्या में सीटें आरक्षित नहीं हांगी। अब ओबीसी कल्याण आयोग का सिफारिश पर पिछड़े वर्ग के लिए सीटों का निर्धारण किया जाएगा। बता दें, बिना आयोग की सिफारिश पर अमल किए नगरीय निकाय चुनाव नहीं होंगे। इसके लिए भले ही चुनाव आगे बढाना क्यों न पड़ जाए। सरकार ने कल ओबीसी कल्याण आयोग का गठन कर दिया। उसे तीन महीने में रिपोर्ट देने कहा गया है। ये समय कम है। मगर मध्यप्रदेश में भी तीन महीने में ही आयोग ने रिपोर्ट दिया था और उसके बाद वहां स्थानीय निकायों के चुनाव हुए थे।

क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि नौकरी की तरह अब स्थानीय निकाय चुनावों में 50 परसेंट से अधिक सीटों का आरक्षण नहीं होगा। आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों में ओबीसी कल्याण आयोग का गठन कर आरक्षण के संबंध में सिफारिश देने का आदेश दिया था। आयोग की सिफारिश के आधार पर ही सरकार ओबीसी की सीटों का आरक्षण करेंगी। मध्यप्रदेश जैसे जिन राज्यों ने ओबीसी कल्याण आयोग गठित कर आरक्षण की स्थिति क्लियर करवा ली, वहां नगरीय निकाय चुनाव हुए हैं। महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में अभी ओबीसी की स्टडी चल रही है। इस वजह से वहां लोकल बॉडी के इलेक्शन नहीं हो पा रहे हैं। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने तीन बिंदुआेंं पर जोर दिया है। पहला सभी राज्य ओबीसी के लिए विशेष आयोग का गठन करें, दूसरा सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन किया जाए और तीसरा आरक्षण की सीमा किसी भी सूरत में 50 प्रतिशत से अधिक न हो।

छत्तीसगढ़ में 25 परसेंट आरक्षण

छत्तीसगढ़ में अभी तक आरक्षण की कोई सीमा नहीं थी। कई निकायों में 70 से 75 परसेंट तक भी आरक्षण रहा है। इसमें ओबीसी के लिए 25 फीसदी आरक्षण फिक्स था। याने वार्ड पार्षद से लेकर नगर पंचायत, नगरपालिका और नगर निगमों के अध्यक्षों, महापौरों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित था। मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह व्यवस्था समाप्त होकर नए सिरे से आरक्षण दिया जाएगा। उसमें अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी की आबादी का परसेंटेज देखा जाएगा।

मैदानी इलाकों में प्रभाव नहीं

चूकि बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग जैसे मैदानी इलाकों में अनुसूचित जाति और जनजाति की संख्या काफी कम है और ओबीसी की ज्यादा। इसलिए इन इलाकों में ओबीसी के आरक्षण पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अनुसूचित जाति के प्रभाव वाले इलाकों में भी ओबीसी को फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि, उन इलाकों में अनूसचित जनजाति की आबादी कम होगी। जानकारों का कहना है, बस्तर और सरगुजा संभाग में जहां 30 प्रतिशत तक आदिवासी रहते हैं, वहां ओबीसी का समीकरण गड़बड़ाएगा। इसको ऐसा समझिए...मान लीजिए दंतेवाड़ा में 30 प्रतिशत आदिवासी आबादी है और 5 परसेंट अनुसूचित जाति की। याने दोनों मिलाकर 35 परसेंट हो गया। सुप्रीम कोर्ट की तय सीमा 50 प्रतिशत में से 35 फीसदी निकल गया। बचा 15 प्रतिशत। ओबीसी को यही 15 परसेंट मिलेगा। बाकी सीटें अनारक्षित रहेगी। मतलब इन सीटों पर किसी भी वर्ग का उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है।

जानिये आयोग के दायित्व

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि नगरीय निकायों के चुनावों से पहले ओबीसी का कंप्लीट सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अध्ययन कराया जाए। इसी के आधार पर फिर ओबीसी का आरक्षण निर्धारित किया जाए। मध्यप्रदेश समेत कुछ राज्यों में ओबीसी के व्यापक अध्ययन के बाद ही नगरीय निकाय चुनाव कराए गए। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में यह फैसला दिया था। कायदे से दो साल पहले इस आयोग का गठन हो जाना था। मगर अब मात्र तीन महीने का समय बच गया है। छत्तीसगढ़ में नवंबर में नगरीय निकाय और मार्च में पंचायत चुनाव हैं।

मूल काम आरक्षण

वैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने अधिसूचना जारी की है, उसके अनुसार आयोग निम्न काम करेगा।

1. प्रदेश में पिछड़े वर्गो की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थितियों का अध्ययन।

2. सरकार की विभिन्न विभागों और योजनाओं में पिछड़े वर्ग की भागीदारी।

3. राज्य के विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं में ओबीसी को मिल रहे लाभों का अध्ययन।

4. राज्य में ओबीसी के युवाओं को रोजगार में मिल रहे अवसरों का अध्ययन।

5. राज्य में ओबीसी के युवाओं को कौशल उन्नयन और ट्रेनिंग में मिल रहे अवसर।

6. ओबीसी को नगरीय निकाय औ पंचायत चुनाव में मिल रहे आरक्षण का अध्ययन।

दरअसल, आखिरी प्वाइंट ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी की जनसंख्या के आधार पर नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों में आरक्षण देने कहा है।

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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