CG News: CG की राजधानी का सस्पेंस इस तरह हुआ था खत्म, पढ़िये छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की गाथा
CG News: मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को अलग कर नया राज्य बनाने का फैसला होने के बाद राजधानी के फैसले पर जंग छिड़ गई थी। मुख्य रूप से दो शहर, रायपुर और बिलासपुर ही दावेदार थे।

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रायपुर। राजधानी के लिए खींचतान के बीच उस वक्त कई घटनाएं हुई थीं। कभी रायपुर के लिए हल्ला होता तो कभी पक्की खबर बताई जाती कि बिलासपुर का नाम तय हो गया है। इस बीच यह भी बात आयी कि रायपुर और बिलासपुर के झगड़े के बीच नांदघाट को राजधानी बनाया जा रहा है। इसके लिए तर्क दिया गया कि दो बड़े शहरों के बीच है और सबसे बड़ा तर्क कि यहां पर बड़े पैमाने पर सरकारी जमीन खाली है, साथ ही शिवनाथ नदी का किनारा है, इसलिए पानी की दिक्कत नहीं होगी।
रायपुर के इस कलेक्टर ने संभाली थी कमान
राज्य निर्माण के बाद आईएएस कैडर के अफसरों का भी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच बंटवारा हो गया था। राज्य निर्माण के वक्त रायपुर जिले के कलेक्टर थे वरिष्ठ रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एमके राउत। उन्हें स्थानीय स्तर पर समन्वय और भवनों के बंदोबस्त के लिए ओएसडी बना दिया गया था। उनके बाद तत्कालीन मध्यप्रदेश में रायपुर जिले के अंतिम कलेक्टर थे अजय तिर्की। श्री राउत के बाद श्री तिर्की रायपुर के कलेक्टर बने रहे, बाद में उन्हें मध्यप्रदेश कैडर मिला और वे चले गए।
18 मार्च 1998 से रायपुर जिले के कलेक्टर की कमान संभाल रहे एमके राउत को 29 जून 2000 से ओएसडी का जिम्मा दे दिया गया था। श्री राउत को ही राजधानी में मंत्रालय, विधानसभा, सीएम हाउस, राजभवन और मंत्रियों के बंगले का बंदोबस्त करने का जिम्मा मिला था। उनके बाद 29 जून 2000 से 18 दिसंबर 2000 तक अजय तिर्की रायपुर कलेक्टर रहे।
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच समन्वय के लिए एक अपर मुख्य सचिव रैंक के आईएएस पीके मेहरोत्रा को ओएसडी बनाया गया था। वे भोपाल में बैठते थे, मगर दस- पंद्रह दिनों में आकर सरकारी कार्यालयों की तैयारियों का जायजा लेते थे। ऐसा माना जाता है कि ओएसडी को ही अहम जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन श्री मेहरोत्रा को छत्तीसगढ़ का मुख्य सचिव नहीं बनाया गया, बल्कि राज्य पुनर्गठन के बाद वे मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव बनाए गए।
इधर आईएएस अधिकारियों का भी दोनों राज्यों के बीच बंटवारा होने के बाद वरिष्ठता के हिसाब से आईएएस अरुण कुमार को छत्तीसगढ़ का पहला मुख्य सचिव बनाया गया। उन्होंने 30 अक्टूबर 2000 को ही रायपुर आकर मुख्य सचिव का प्रभार संभाल लिया था। वे 31 जनवरी 2003 तक मुख्य सचिव बने रहे, रिटायरमेंट के वक्त अंतिम समय में उन्होंने सेवा वृद्धि का प्रयास किया था, पर सफल नहीं हो सके थे।
राजधानी का सस्पेंस ऐसे हुआ खत्म
रायपुर और बिलासपुर को लेकर अटकलों का दौर तेज था, साथ ही दोनों ही शहर के नेता जोर लगा रहे थे। बिलासपुर के नेताओं का प्रयास था कि राजधानी नांदघाट के आसपास बनाई जाए, इससे दोनों बड़े शहरों को लाभ मिलेगा। हाल यह था कि नांदघाट की कुछ दुकानों के बाहर हाथ से लिखे पोस्टर लग गए थे, जिसमें लिखा होता था- मुस्कराइए, आप राजधानी में हैं। उधर भोपाल से जो सूचना आती, वह मीडिया में खबर बन कर छप रही थी। इसी बीच रायपुर कलेक्टर अजय तिर्की की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई थी। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से आने वाला हर पत्र उन्हें मिलता था।
इधर राजधानी को लेकर चल रहे सस्पेंस के बीच खबर आयी कि अगले दिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह रायपुर आ रहे हैं। यह भी जानकारी आयी कि वे आकर राजधानी का फैसला सुना सकते हैं, साथ ही राजधानी के सरकारी भवनों की तैयारियों का जायजा लेंगे। इस चर्चा के बीच रायपुर कलेक्टर श्री तिर्की को आधी रात से पहले भोपाल से एक पत्र मिल गया, जिसमें उन्हें कहा गया कि वे रायपुर में मंत्रालय और विधानसभा भवन सहित सभी संभावित भवनों की जानकारी एकत्रित कर लें। चूंकि इस संदर्भ में बिलासपुर कलेक्टर को कोई पत्र भोपाल से नहीं भेजा गया था, इससे स्पष्ट हो गया कि अब रायपुर ही राजधानी बनने जा रहा है। अगले दिन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह आए और आते ही उन्होंने मीडिया से बातचीत में रायपुर को राजधानी बनाने की पुष्टि कर दी, फिर तत्काल ही मंत्रालय, विधानसभा, राजभवन, सीएम हाउस आदि की तैयारियों के सिलसिले में अफसरों की बैठक लेने निकल गए।
