CG News: "डबल फ्रेग्मेंटेशन" का शिकार हुए छत्तीसगढ़ के डॉक्टर्स, छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स फेडरेशन ने पूछा-क्या गलत गणित ने छीना हक?
CG News: छत्तीसगढ़ में नीट-पीजी 2025 की काउंसलिंग प्रक्रिया एक गहरे कानूनी संकट में फंस गई है...

CG News: रायपुरः छत्तीसगढ़ में नीट-पीजी 2025 की काउंसलिंग प्रक्रिया एक गहरे कानूनी संकट में फंस गई है। हाल ही में उच्च न्यायालय द्वारा राज्य कोटे में "संस्थागत प्राथमिकता" (Institutional Preference) को रद्द किए जाने के बाद, राज्य के मेडिकल कॉलेजों से एमबीबीएस करने वाले हजारों डॉक्टर्स खुद को "बेघर" महसूस कर रहे हैं। वे न तो अपने जन्म के राज्य में कोटे के पात्र हैं और न ही अब छत्तीसगढ़ में, जहाँ उन्होंने पढ़ाई और सेवा की। छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स फेडरेशन और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि उच्च न्यायालय का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के सौरभ चौधरी (2003) के ऐतिहासिक फैसले की "गणितीय गलत व्याख्या" पर आधारित है।
50% की सीमाः कुल सीटें या राज्य कोटा ?
विवाद की जड़ "आरक्षण की गणना" में छिपी है। उच्च न्यायालय ने राज्य के नियम 11 को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि यह राज्य कोटे की 100% सीटों को संस्थागत छात्रों के लिए आरक्षित करता था, जिसे कोर्ट ने मेरिट का उल्लंघन माना।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सौरभ चौधरी बनाम भारत संघ (निष्कर्ष 4) में स्पष्ट आदेश दिया है:
"संस्थागत प्राथमिकता 50% तक सीमित होनी चाहिए और शेष सीटें अखिल भारतीय आधार पर खुली योग्यता (Open Competition) के लिए छोड़ी जानी चाहिए।"
"ऑप्टिकल इल्यूजन" (भ्रम) जिसने बिगाड़ा खेल
विशेषज्ञों के अनुसार, यहाँ एक बड़ा "ऑप्टिकल इल्यूजन" या भ्रम हुआ हैः
सही कानूनी तर्कः यदि किसी कॉलेज में 100 सीटें हैं, तो सुप्रीम कोर्ट के अनुसार 50 सीटें (50%) 'ओपन मेरिट' के लिए होनी चाहिए। यह शर्त 'अखिल भारतीय कोटा' (AIQ) द्वारा पहले ही पूरी की जा रही है, जो ठीक 50% सीटें लेता है। अतः, बची हुई 50% सीटें (जो कि पूरा राज्य कोटा है) बिना संविधान का उल्लंघन किए 'संस्थागत प्राथमिकता' के लिए आरक्षित की जा सकती हैं।
उच्च न्यायालय की त्रुटि: उच्च न्यायालय ने 'कुल सीटों' (100) को देखने के बजाय केवल 'राज्य कोटे' (50) को एक अलग पूल (Standalone Pool) के रूप में देखा। कोर्ट ने माना कि राज्य कोटे के भीतर भी बाहरी
छात्रों को मौका मिलना चाहिए
छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स फेडरेशन के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, "यह फैसला सौरभ चौधरी केस के गणित का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने यह अनदेखा कर दिया कि 50% सीटें पहले ही AIQ को दी जा चुकी हैं। हम 100% आरक्षण नहीं मांग रहे, हम कुल सीटों का केवल वही 50% मांग रहे हैं जिसकी अनुमति संविधान पीठ ने दी है।"
छात्रों पर दोहरी मार (Double Fragmentation)
इस व्याख्या के कारण छात्रों का समुदाय दो टुकड़ों में बंट गया है:
1. गृह राज्य का नुकसानः डोमिसाइल नियमों के कारण वे अपने जन्म के राज्य में पीजी सीट का दावा नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने वहां से एमबीबीएस नहीं किया।
2. अध्ययन राज्य का नुकसानः अब वे छत्तीसगढ़ में भी प्राथमिकता का दावा नहीं कर सकते क्योंकि हाई कोर्ट ने इन सीटों को 'ओपन मेरिट' कर दिया है।
आगे की राहः नियम संशोधन
चिकित्सा शिक्षा विभाग (DME) पर अब दबाव है कि काउंसलिंग बंद होने से पहले नियमों में सुधार किया जाए। समाधान यह है कि नियम 11 को हटाए नहीं, बल्कि स्पष्ट किया जाए।
यदि राज्य सरकार यह अधिसूचित करती है कि "राज्य कोटा ही संस्थागत प्राथमिकता कोटा है (कुल सीटों का 50%)" और "अखिल भारतीय कोटा (कुल सीटों का 50%)" मेरिट की शर्त को पूरा करता है, तो यह हाई कोर्ट की चिंता और सुप्रीम कोर्ट के आदेश, दोनों को संतुष्ट कर सकता है।
अब देखना यह है कि क्या प्रशासन इस "गणितीय सुधार" को समय रहते लागू कर पाता है या छत्तीसगढ़ के युवा डॉक्टर्स अपने ही घर में अजनबी बनकर रह जाएंगे।
