CG के सरकारी अस्पतालों में क्लेम के नाम पर बड़ा खेल, पीएम रिपोर्ट बनवाने से लेकर क्लेम की राशि दिलाने संगठित गिरोह कर रहा काम
जांच हो तो सेंड और कोल से भी बड़ा स्कैम आएगा सामने... सरकारी अस्पतालों में बड़ा खेल...
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में सरकारी खजाने को लुटने के लिए क्लेम के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। यह एक या फिर दो लोगों का काम नहीं है। पूरा चेन काम कर रहा है। या यूं कहें कि सरकारी खजाने पर डाका डालने संगठित अपराध को अंजाम दिया जा रहा है। पीएम रिपोर्ट से लेकर मौका मुआयना,राजस्व विभाग की ओर से जाने वाली रिपोर्ट और फिर क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान। सरकार की तरफ से हर एक विभाग में बेरियर है। अफसोस इस बात का कि बेरियर तोड़ने वाले इसका तोड़ ना केवल निकाल रहे हैं पर सरकारी खजाने को लुटने के बाद हिस्सेदारी भी उसी अंदाज में कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में ऐसा रेकेट काम कर रहा है जिसे पढ़कर और सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे। जी हां। प्राकृतिक मौत को दुर्घटना बताने का काम हो रहा है। प्रदेश के शहरी इलाकों के अलावा दूरस्थ वनांचलों में रेकेट सुनियोजित तरीके से काम को अंजाम दे रहे हैं। हर एक काम के लिए लोगों की तैनाती और जिम्मेदारी भी। जिस काम के जो विशेषज्ञ हैं उनको वहीं जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। एनपीजी के उपलब्ध दस्तावेजों में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में आमतौर पर लोग इलाज कराने जाते हैं। साथ में परिजन या जान पहचान वाले। रेकेट का काम कुछ अलग तरह से होता है। ये इलाज कराने नहीं इलाज कराने आने वाले और मौत के बाद पीएम कराने आने वालों पर इनकी नजरें रहती है। मृतक के परिजनों से संपर्क साधना,सरकार की तरफ से मिलने वाली राशि को बताना और लालच देना। लालच के फेर में जब परिजन अपना ईमान बेचने को तैयार हो जाते हैं तब इनका असली खेल शुरू हो जाता है।
पहला टारगेट पीएम वाला स्टाफ और चिकित्सक
रेकेट का पहला टारगेट मेडिकल स्टाफ होता है। वह भी पीएम करने वाला स्टाफ। इसमें चिकित्सक को भी अपने टारगेट में रखते हैं। फर्जीवाड़ा का यही सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। शुरुआत यहीं से होता है और अंजाम तक पहुंच जाता है। नेचरल डेथ को असमान्य बनाने का खेल। सांप काटने से मौत,पागल कुत्ता के काटने से मौत। घर की दीवार गिरी और दबने से मौत हो गई। खेत गया था। तेज हवा चली पेड़ गिरा और मौत हो गई। इससे भी थोड़ा आगे बिच्छू के काटने से मौत हो गई। कुछ इस तरह का पीएम रिपोर्ट हासिल करने के बाद आपदा एवं प्रबंधन विभाग में क्षतिपूर्ति के लिए प्रकरण जमा करा दिया जाता है। कलेक्टोरेट के इस महत्वपूर्ण विभाग से परीक्षण के लिए राजस्व विभाग में प्रकरण भेजा जाता है।
राजस्व अफसरों की रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण
राजस्व विभाग के मैदानी अमले की यह जिम्मेदारी बनती है कि मौके पर जाएं और प्रकरण का वास्तविक परीक्षण करें और शासन को रिपोर्ट पेश करें। इसी रिपोर्ट के आधार पर क्लेम का सेटलमेंट होता है।
NPG को ये मिली जानकारी
राजस्व विभाग के एक आला अफसर के पास कुछ इसी तरह के दस्तावेज परीक्षण के लिए आए। राजस्व अमले से परीक्षण कराया। सर्वे के दौरान यह बात सामने आई कि जिन तीन लोगों की मौत सांप काटने से बताया गया है,मृतक के पड़ोसियों को भी पता नहीं कि कब मृतक के घर सांप निकला और सांप काटने से उसकी मौत हो गई। एक प्रकरण ऐसे भी आया कि घर के एक कमरे का दीवार गिरने से दबकर मौत हो गई।मौके पर जब अमला पहुंचा तो सबकुछ ठीक मिला।
जानिए किस घटना में क्षतिपूर्ति मिलती है और नियम क्या है
सहायता राशि के प्रत्येक प्रकरण की जानकारी तहसील कार्यालय में संलग्न फॉर्म दो में संधारित पंजी में अद्यतन रखा जाएगा। प्रत्येक माह में सहायता राशि के रुप में होने वाले व्यय का विवरण अगले माह की 05 तारीख के पूर्व NDMIS पोर्टल पर दर्ज किया जाना अनिवार्य होगा। लेखा मिलान में अंतर के लिए तहसीलदार व्यक्तिशः उत्तरदायी होगा।
प्रत्येक मामले में प्राकृतिक आपदा से पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार को आर्थिक सहायता स्वीकृत करने के वित्तीय अधिकार ये है।
संभागीय आयुक्त- 15 लाख रूपये से अधिक
कलेक्टर- 15 लाख रूपये तक
अनुविभागीय अधिकारी- 4 लाख रूपये तक
तहसीलदार- 2 लाख रूपये तक
अफसरों के क्षेत्राधिकार है तय
इस परिपत्र के प्रयोजनों के लिए, 'राजस्व अधिकारी' से आशय किसी ऐसे संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, अनुविभागीय अधिकारी (रा.), तहसीलदार या नायब तहसीलदार से है, जिसका क्षेत्राधिकार ऐसे क्षेत्र में हो, जहां प्राकृतिक प्रकोप से क्षति हुई है। ऐसे मामले, जिनमें पीड़ित व्यक्ति, जिसकी झोपड़ी, मकान या पशुशाला नष्ट हो गई है, उसे झोपड़ी, मकान या पशुशाला बनाने के लिये निःशुल्क बांस एवं बल्ली 15 दिनों के भीतर उपलब्ध कराई जायेंगी। इस हेतु तहसीलदार निकटतम वन डिपो के रेंजर को इस आशय की सूचना देंगे, कि संबंधित पीड़ित को कितने बांस एवं कितनी बल्लियां दी जाएं। संबंधित वन डिपो प्रभारी का यह कर्तव्य होगा, कि वह तत्काल समुचित मात्रा में बांस बल्लियां पीड़ित व्यक्ति को प्रदान करें। ऐसे मामलों में अधिकतम मात्रा 50 बांस एवं 30 बल्ली प्रति मकान (पशुशाला सहित) दी जा सकेंगी। बांस बल्ली की डिपो से गन्तव्य स्थान तक ढुलाई व्यय की प्रतिपूर्ति पीड़ित व्यक्ति को अलग से की जावेगी, जो कि वास्तविक दुलाई व्यय के अनुसार होगी, किन्तु अधिकतम राशि रू. 1,000 (रूपये एक हजार) मात्र से अधिक नहीं होगी।
आर्थिक सहायता प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित सभी पात्र व्यक्तियों को, चाहे वे राजस्व ग्रामों के निवासी हों या वनग्रामों के निवासी हों, देय होगी। वनग्रामों में भी क्षति का सर्वेक्षण एवं आर्थिक सहायता के वितरण का दायित्व संबंधित राजस्व अधिकारी का होगा, जिसका निर्वहन वह संबंधित वन अधिकारी के सहयोग से करेगा ।
लिमिट तय
.प्राकृतिक प्रकोपों से हुई हानि के लिये मांग संख्या-58 मुख्य शीर्ष-2245 में यदि आबंटन उपलब्ध न हो, तो कलेक्टर शासन से आबंटन प्राप्त होने की प्रत्याशा में पीड़ितों को तत्काल राहत उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आवश्यक राशि उक्त शीर्ष से आहरित करने के आदेश दे सकेंगे। परंतु उक्त राशि रुपये 1.00 करोड़ से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा शासन को आबंटन उपलब्ध कराने हेतु तत्काल मांग पत्र भेजेंगे ।
क्षतिपूर्ति राशि के भुगतान के लिए तय है लिमिट
यदि सहायता की राशि तहसीलदार के वित्तीय अधिकार की सीमा में है, तो 10 दिन के भीतर सहायता उपलब्ध कराई जायेगी और यदि प्रकरण तहसीलदार के वित्तीय अधिकार की सीमा से अधिक राशि का है, तो यथास्थिति प्रकरण में अनुविभागीय अधिकारी / कलेक्टर / संभागीय आयुक्त या शासन की स्वीकृति प्राप्त की जायेगी। पीडितों को सहायता राशि आवेदन / प्रतिवेदन के 15 दिन के अन्दर अनिवार्य रूप से उपलब्ध हो जाए, इसका पूरा ध्यान रखा जाए। विलंब की स्थिति में संबंधित राजस्व अधिकारी व्यक्तिशः उत्तरदायी होंगे। 01 माह से अधिक समय तक लंबित प्रकरणों में शासन दोषी राजस्व अधिकारियों पर रुपये 100 प्रति विलंब दिवस की दर से रुपये 25,000 से अनधिक शास्ति अधिरोपित कर सकेगा।
आर्थिक सहायता आदेश का पुनर्विलोकन (Review) आदेश दिनांक से 30 दिवस के भीतर आदेश देने वाले राजस्व अधिकारी द्वारा किया जा सकेगा।
आर्थिक सहायता आदेश की अपील (Appeal) उचित वरिष्ठ न्यायालय में, आदेश दिनांक से 30 दिवस के भीतर की जा सकेगी। जिसमें समुचित सुनवाई पश्चात 30 दिवस में निर्णय लिया जाना अनिवार्य होगा। परंतु सहायता राशि के आदेश की द्वितीय अपील नहीं हो सकेगी।
आर्थिक सहायता आदेश के मामले में पुनरीक्षण (Revision) नहीं हो सकेगा।
पीड़ित को सहायता राशि उसके बैंक खाते में सीधे लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer) की विधि से प्रदान की जाएगी।