CG IAS News: जब छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री ने बैचमेट दोस्त को चीफ सिकरेट्री बना अपनी कुर्सी पर बिठाया
CG IAS News: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में एक बार ऐसा भी हुआ जब एक चीफ सिकरेट्री ने अपने सबसे करीबी बैचमेट को अपनी कुर्सी पर बिठाया। आमतौर पर प्रभारी चीफ सिकरेट्री कभी सीएस की कुर्सी पर नहीं बैठते। मगर दोस्त को उन्होंने खास मौका दिया। ब्यूरोक्रेसी में ऐसे खूबसूरत लम्हे कम देखने को मिलते हैं।
CG IAS News: रायपुर। आईएएस, आईपीएस में बैचमेट का बड़ा महत्व होता है। कुछ मामलों में आपस में पटरी नहीं बैठती बावजूद इसके एक-दूसरे के सुख-दुख के अवसरों पर मौजूद रहने का वे मौका नहीं छोड़ते। इसकी वजह यह है कि यूपीएससी में सलेक्ट होने के बाद मसूरी में एक साथ ट्रेनिंग होती है। उसके बाद मिड टर्म ट्रेनिंग होते रहती है। इस दरम्यान विदेशांं का भी विजिट होता है। बैचमेट एक-दूसरे से इसलिए भी कनेक्ट रहते हैं कि किसी राज्य में कोई काम पड़े, तो कोई दिक्कत नहीं हो।
आईएएस के कुछ बैचों में इतनी तगड़ी बॉंडिंग होती है कि सिर्फ शरीर अलग होता है। बाकी आत्मा एक होती है। मसलन, छत्तीसग़ढ़ में आईएएस का 2005 बैच। इस बैच के ओपी चौधरी आईएएस की नौकरी छोड़ मंत्री बन चुके हैं। उनके अलावे मुकेश बंसल, रजत कुमार, आर संगीता, राजेश टोप्पो और एस प्रकाश में अभी भी गहरी घनिष्टता है।
मगर इससे भी अधिक घनिष्टता 1979 बैच के दो आईएएस अधिकारियों में रही है। इतनी ज्यादा कि एक चीफ सिकरेट्री बना तो वे दूसरे को थोड़े दिन के लिए ही सही उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठा गए। आमतौर पर प्रभारी मुख्य सचिव सीएस की कुर्सी पर बैठकर काम नहीं करते।
एक तो कोई विकेट चटखा न दें, इसलिए कोई चीफ सिकरेट्री छुट्टी पर जाता है तो प्रभार देने से बचता है। देता भी है तो प्रभारी अपने कक्ष में बैठकर ही आवश्यक फाइलों को निबटाते हैं।
अब बात 1979 बैच की। इस बैच में छत्तीसगढ़ कैडर में दो अफसर थे। सुनिल कुमार और डॉ0 एसवी प्रभात। सुनिल कुमार बैच में सीनियर थे और प्रभात जूनियर। खैर प्रभात सीनियर भी होते तो चीफ सिकरेट्री बनने वाला मामला उनके साथ नहीं था।
मगर सुनिल कुमार ने अपनी दोस्ती निभाई। बता दें, सुनिल कुमार प्रभात को बेहद पसंद करते थे। उनके मन में कसक रही कि दोस्त चीफ सिकरेट्री नहीं बना तो क्या हुआ, एक बार उसे सीएस की कुर्सी पर बैठने का मौका मिलना चाहिए।
आईएएस एसवी प्रभात का 2012 के लास्ट में रिटायरमेंट था। इसके पहले सुनिल कुमार सात दिन की छुट्टी पर गए। अब यकीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि सुनिल कुमार को वाकई कोई काम था या बैचमेट को सीएस बनाने के लिए अवकाश लिया।
दरअसल, सुनिल कुमार इतनी लंबी छुट्टी कभी लेते नहीं थे। उनकी मां जब रायपुर के आंबेडकर अस्पताल में भर्ती थीं, तब वे अस्तपाल में ही फाइल निबटाते रहे। यही वजह है कि लंबी छुट्टी लेने पर ब्यूरोक्रेसी में कानाफूसी हुई कि कहीं प्रभात जैसे दोस्त के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं। खैर, ऐसी बातों की न पुष्टि होती है और न ही अधिकारिक तौर पर कोई बताता है।
सुनिल कुमार जब अवकाश पर गए तो परंपरा के अनुसार वे दूसरे नंबर के सीनियर अफसर एसवी प्रभात को प्रभार दे गए। जीएडी से बकायदा इसका आदेश भी निकला। उनके जाने के बाद अगले दिन एसवी प्रभात उनकी कुर्सी पर बैठ गए। बोर्ड में प्रभारी मुख्य सचिव का नाम भी लिखा गया। यह देखकर लोग आवाक रह गए। बताते हैं, सुनिल कुमार खुद जिद करके प्रभात को अपनी कुर्सी पर बिठाया। अवकाश से लौटने पर उन्होंने खुद भी इस बात को अपने करीबी लोगों से शेयर किया था।
प्रभात से जोगी हुए नाराज
र्छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद एसवी प्रभात मध्यप्रदेश से नए राज्य में आना नहीं चाहते थे। बड़ी हीलाहवाला के बाद करीब एक साल बाद रायपुर आए। मुख्यमंत्री अजीत जोगी इसको लेकर इतने खफा थे कि प्रभात से मिलने से इंकार कर दिए। जबकि, तब सुनिल कुमार सिकरेट्री टू सीएम थे। बाद में राज्य सरकार ने दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर की पोस्टिंग दे दी। इसके लिए भी कहा जाता है कि सुनिल कुमार को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। क्योंकि, अजीत जोगी एक बार नाराज हो जाते थे, तो फिर किसी की सुनते नहीं थे।