CG Government Press Scam: नाम सरकारी प्रेस, काम कर रहे प्रायवेट प्रिंटर्स, मालामाल हो रहे समग्र शिक्षा के अफसर, हिंग लगे न फिटकिरी वाला...छत्तीसगढ़ में चल रहा गजब खेला...
CG Government Press Scam: छत्तीसगढ़ का सरकारी प्रेस पाठ्य पुस्तक निगम से भी आगे निकल गया। नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए पिछले चार साल से बिना टेंडर खास प्रिंटर्स से करोड़ों की पुस्तकें छपवाई जा रही। समग्र शिक्षा के अफसर बहती गंगा में जमकर हाथ धो रहे हैं। हर साल 50 से 60 करोड़ की पुस्तकों की छपाई सरकारी प्रेस से इसलिए कराई जा रही, ताकि बिना किसी रिस्क के मोटा कमीशन मिल सके। जाहिर है, ये छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा जहां सरकारी प्रेस के अफसर पैसे कमाने के लिए प्रायवेट प्रेस से काम करा रहे हैं।

CG Government Press Scam
CG Government Press Scam: रायपुर। किसी भी राज्य के सरकारी प्रेस में सरकारी दस्तावेजों मसलन कैलेंडर, डायरी और राजपत्रों का प्रकाशन किया जाता है। विशेषकर राजपत्रों का प्रकाशन सरकारी प्रेसों से कराया जाता है ताकि उसकी गोपनीयता बनी रहे।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2020 तक सरकारी प्रेसों का इसी काम के लिए उपयोग किया जाता था। मगर इसके बाद समग्र शिक्षा और ओपन स्कूलों की किताबें भी सरकारी प्रेसों से छपने लगी। खेल यही से शुरू हुआ।
दरअसल, रायपुर के प्रिंटरों ने पाठ्य पुस्तक निगम के समानांतर प्र्रिंटिंग का धंधा फलने-फूलाने के लिए सरकारी प्रेस के अधिकारियों से मिलकर व्यवस्था बनाई कि पुस्तकों का प्रकाशन यहां से भी कराया जाए।
चार साल से एक टेंडर
छत्तीसगढ़ सरकारी प्रेस ने किताबों की छपाई के लिए 2020-21 में टेंडर किया था। इसके बाद पिछले चार साल से कोई टेंडर नहीं हुआ है। 2021 में जिन प्रिंटरों को काम दिया गया था, उन्हीं से पिछले चार साल से किताबों की छपाई कराई जा रही है।
गत 4 वर्षों से पुराने निविदा पर ही सिर्फ 4-5 प्रिटर्स द्वारा संपुर्ण कार्य काफी ऊचें दर पर आपस में बांटकर प्रिंटिंग कार्य किया जा रहा है।
भंडार क्रय नियम का उल्लंघन
छत्तीसगढ़ शासन के भंडार क्रय नियम 2022 के अनुसार कंडिका 73 (5) के अनुसार किसी भी निविदा दर अनुबंध की वैधता अवधि को 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। नियम 4/14 (2) के अनुसार किसी भी दर अनुबंध को एक वर्ष $6 माह से अधिक हो जाने की स्थिति में पुनरावृत्ति आदेश नहीं दिया जा सकता है।
सरकारी प्रेस क्यों?
छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम, जहां पेपर की क्वालिटी से लेकर प्रिटिंग की जांच के लिए प्रिंटिंग टेक्नालॉजी के एक्सपर्ट बैठे हैं, जब वहां बडे़-बड़े खेला हो जा रहे तो फिर सरकारी प्रेस में ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं। असल में, सरकारी प्रेस में सरकारी चीजें छपती है, बाहरी किसी प्रिटरों से छपवाने का प्रावधान नहीं। इसलिए क्वालिटी चेकिंग की आवश्यकता भी नहीं। मगर पिछले चार साल से सरकारी प्रेस में 50 करोड़ के उपर का बाहरी प्रिंटरों से किताबों छपवाई जा रही है।
बड़े स्तर पर स्कैम
पाठ्य पुस्तक निगम के निविदा शर्तों में 80 फीसदी राशि के भुगतान के उपरांत पेपर की जांच के लिए भारत सरकार के संस्थान में भेजी जाती है। उसके उपरांत 20 प्रतिशत राशि का भुगतान 6 महीने के बाद किया जाता है। निविदा शर्तों में मुद्रण कार्य के कुल राशि का 10 फीसदी राशि अनुबंध के समय मुद्रकों से जमा कराया जाता है। ताकि किसी भी तरह की कमी पाए जाने पर उससे कटौती की जा सके।
पाठ्य पुस्तक निगम में इतने कड़े नियमों और व्यवस्थाओं के बाद भी वहां के खटराल अफसर गुल खिला देते हैं तो सरकारी मुद्रणालय में ऐसा कोई नियम नहीं है। सरकारी प्रेस के अफसरों द्वारा बिना किसी जांच के पूरी राशि प्रदान कर दी जा रही है।
बहती गंगा में अफसरों की डूबकी
समग्र शिक्षा हर साल करीब 50 से 60 करोड़ की पुस्तकें छपवाता है। वह पहले पाठ्य पुस्तक निगम से किताबें प्रकाशित कराता था। मगर चार साल से प्रिंटिंग का कंप्लीट वर्क सरकारी प्रेस से कराया जा रहा है।
इसमें समग्र शिक्षा के साथ सरकारी प्रेस और प्रिंटर्स, तीनों के अपने फायदे हैं। समग्र शिक्षा सरकारी प्रेस से किताबों को छपवाने में सहूलियत यह है कि किसी गड़बड़ की जिम्मेदारी उसके उपर नहीं आएगी। समग्र शिक्षा के अफसर बोल देंगे, हमने सरकारी प्रेस से किताबें छपवाई। समग्र शिक्षा के अफसरों को बिना किसी रिस्क के पैसा मिल जाता है। 50 करोड़ की पुस्तकों में अगर दो परसेंट भी लिए तो सीधे 10 करोड़ बन जाएगा।
सरकारी प्रेस के पास बड़़े पैमाने पर किताबें छापने के लिए मैनपावर नहीं है। इसलिए चतुराई करते हुए उसने 2020 से इसे बाहरी प्रिंटरों से किताबें छपवाना प्रारंभ कर दिया। इसके एवज में सरकारी प्रेस के अफसरों को अच्छा खासा कमीशन मिल जाता है। अच्छा खासा कमीशन इसलिए क्योंकि प्रिंटर्स क्या छाप कर दे रहे हैं, निर्धारित जीएसएम का पेपर इस्तेमाल कर रहे हैं कि नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं है। इस चक्कर में सरकारी प्रेस के अफसरों की लाटरी निकल गई है।
अफसरों पर उठते सवाल
समग्र शिक्षा जब करोड़ों के फर्नीचर से लेकर स्कूलों में सप्लाई की जाने वाली चीजों का जेम से टेंडर करता है तो फिर किताबों के लिए टेंडर क्यों नहीं कर रहा है, ये सवाल तो उठते हैं। इस बार 60 करोड़ की किताब छपाई का काम होने वाला है। जानकारों का कहना है कि अगर समग्र शिक्षा खुद टेंडर करेगा तो कंपीटिशन के चलते कम पैसे में ज्यादा अच्छी किताबों बच्चों को उपलब्ध होगी। मगर अभी बिना किसी जोखिम के जब लिमिट से अधिक पैसे मिल जा रहे तो फिर समग्र शिक्षा खुद से टेंंडर कर लफड़ा क्यों मोल लें।