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CG Education News: स्कूलों में हर साल 40 करोड़ की अनुपयोगी किताबें भेजी जा रहीं मगर पढ़ाने के लिए नहीं, सिर्फ खजाने पर डाका डालने के लिए

CG Education News: स्कूली बच्चों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने, सिलेबस की किताबों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए भारत सरकार ने सर्पोटिंग किताबें भेजन की योजना बनाई है। समग्र शिक्षा हर साल औसतन 40 करोड़ रुपये इन किताबों में खर्च कर रहा है। नतीजा सिफर ही आ रहा है। कारण भी साफ है। समग्र शिक्षा को न इसके उपयोग की चिंता है, और न शिक्षकों को इन किताबों को बच्चों को पढ़ाने की फूर्सत है। कुल मिलाकर सिर्फ बिलिंग के लिए किताबें छपवाई जा रहीं।

CG Education News: स्कूलों में हर साल 40 करोड़ की अनुपयोगी किताबें भेजी जा रहीं मगर पढ़ाने के लिए नहीं, सिर्फ खजाने पर डाका डालने के लिए
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By Radhakishan Sharma

CG Education News: स्कूली बच्चों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने, सिलेबस की किताबों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए भारत सरकार ने सर्पोटिंग किताबें भेजने की योजना बनाई थी। इसे अमलीजामा पहनाया जा रहा है। राज्य सरकार हर साल औसतन 40 करोड़ रुपये इन किताबों में खर्च कर रही है। नतीजा सिफर ही आ रहा है। कारण भी साफ है। शिक्षकों को इन किताबों को बच्चों को पढ़ाने की फूर्सत ही नहीं है। NPG.NEWS के ग्राउंड रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।

सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरी सिस्टम को मजबूत करने और बच्चों के अकादमिक स्तर को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार लाइब्रेरी में सिलेबस के अलावा ऐसी किताबें भी भेज रही है जिसके अध्ययन से बच्चों का अकादमिक स्तर में सुधार आएगा। इसके लिए राज्य सरकार के निर्देश पर स्कूल शिक्षा विभाग हर साल तकरीबन 40 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसमें कहानी, किस्से वाली सर्पोर्टिंग किताबें है जो सिलेबस के रूप में लाइब्रेरी के लिए दी जा रही है। कामिक्स पैटर्न पर भी कुछ किताबें हैं। इस तरह की किताबें और मटेरियल रखने के पीछे बच्चों को खेल खेल और कामिक्स स्टाइल में पढ़कर सिलेबस याद हो जाए। साथ ही पढ़ने में भी यह रुचिकर लगे। प्रदेश में ऐसी स्कूलें भी हैं जहां इन किताबों की पैकिंग ही नहीं खुली है। मिडिल और प्राइमरी स्कूल के अलावा हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों में भी कमोबेश कुछ इसी तरह की स्थिति है। ऐसी किताबें या तो हेड मास्टर के आलमारी में या फिर शिक्षकों की आलमारी में जस का तस बंद पड़ी हुई है। अचरज की बात ये कि शिक्षकों ने इसे खोलकर नहीं देखा है कि आखिर इन किताबों में है क्या। बच्चों को इस पैटर्न में पढ़ाने से कितना लाभ मिलेगा।

बिलासपुर, रायगढ़,कोरबा, जशपुर के अलावा दुर्ग और धमतरी से मिल रही रिपोर्ट में कुछ इसी तरह की अव्यवस्था और लापरवाही का आलम नजर आ रहा है। शिक्षकों से सवाल करने पर कुछ अलग ही तरह का जवाब सामने आया। हेड मास्टर और प्रिंसिपल के अलावा शिक्षकों का साफ कहना है कि सिलेबस को पूरा कराएं या फिर इस तरह की किताबों में समय जाया करें।

पैकिंग ही नहीं खुली

बेपरवाही का आलम ये कि अब तक इन किताबों की पैकिंग ही नहीं खुल पाई है। बीते शैक्षणिक सत्र में राज्य सरकार ने जो किताबों भेजी थी वह उसी पैकिंग में आज भी मौजूद है। शिक्षकों के पास समय ही नहीं है कि पैकिंग खोलकर देखें कि आखिर पैकिंग में किस तरह की किताबों हैं।

प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए बांटी जाने वाली किताबों के मेन पेज से लेकर किताब के भीतर के पन्ने आकर्षक तो हैं साथ ही कलरफल होने के कारण यह और भी अच्छा बन पड़ा है। इन किताबों में छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति से जुड़ी छोटी-छोटी कहानियां है। इसे कामिक्स स्टाइल में छापा गया है। कुछ कॉमिक्स हिंदी के साथ अंग्रेजी में हैं, ताकि बच्चों को उसका ज्ञान कराया जा सके।

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