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CG BJP News: पुराने कांग्रेसी मंत्री और बोर्ड चेयरमैन बनेंगे तो फिर पसीना बहाने वाले नेताओं का क्या? भाजपा के भीतर इसको लेकर काफी असंतोष

CG BJP News: भाजपा के अंदरखाने में इस बात को लेकरे असंतोष तेज हो रहा है कि पुराने कांग्रेसियों को पार्टी और सरकार में खूब महत्व मिल रहा है। प्रदेश पदाधिकारियों की सूची में शामिल कुछ नामों पर चटखारे लिए जा रहे हैं, तो मंत्रिमंडल में दो पूर्व कांग्रेसियों को शामिल करने पर बीजेपी नेताओं में खासी बेचैनी है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि बाहर से आए या बगावत करने वाले नेताओं को बड़े पद देने से पार्टी के निष्ठावान नेताओं और कार्यकर्ताओं में मायूसी आ रही है। पार्टी के भीतर इस बात पर भी असंतोष गहरा हो रहा है कि पैदाइशी भाजपाई या पूरी तरह समर्पित भाजपा विधायकों को छोड़ कांग्रेस से आए नेताओं को पार्टी काफी तरजीह दे रही है, इसका प्रभाव अगले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।

CG BJP News: पुराने कांग्रेसी मंत्री और बोर्ड चेयरमैन बनेंगे तो फिर पसीना बहाने वाले नेताओं का क्या? भाजपा के भीतर इसको लेकर काफी असंतोष
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By Supriya Pandey

CG BJP News: रायपुर। भाजपा को अनुशासित राजनीतिक दल माना जाता है और पार्टी के सिद्धांत पर चलने वालों को ही पार्टी का झंडा दिया जाता रहा है। पार्टी में पुराने कार्यकर्ताओं का अपना अलग ही महत्व होता है और दूसरी पार्टी से आने वालों को ऐसा महत्व पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। अब परिस्थिति बदल रही है। पार्टी के भीतर इस पर चर्चा भी चल पड़ी है।

अभी मंत्री मंडल का मामला ताजा है। मंत्री मंडल का विस्तार अभी हो या बाद में, लेकिन जिन नामों की चर्चा चल रही है, उस पर एक नजर डाल लें तो लगता है कि कुछ पार्टी नेताओं की चिंता बेवजह नहीं है। अंबिकापुर में पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को विधानसभा चुनाव हराने वाले राजेश अग्रवाल का नाम भी नए मंत्री के रूप में लिया जा रहा है। अग्रवाल मूलतः कांग्रेसी हैं और 2018 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा की सदस्यता ली थी। बसना विधायक संपत अग्रवाल ने 2018 में भाजपा से विधानसभा का टिकट मांगा था, टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बगावत कर चुनाव लड़ा। चुनाव में संपत को 50 हजार वोट मिल गए। कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हो गई थी और भाजपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर चला गया था; संपत खुद दूसरे नंबर पर रहे। निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण भाजपा ने संपत को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया था। प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी, इसके कुछ समय बाद ही संपत की वापसी हो गई। जबकि गुरु खुशवंत साहेब ने विधानसभा चुनाव के तीन माह पहले कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थामा था।

दिलचस्प ये भी है-

अब बात करें निगम मंडलों की। कुछ निगम मंडल के अध्यक्षों की पृष्ठभूमि कांग्रेस परिवार वाली है। इसके लिए तर्क दिया जा सकता है कि परिवार किसी भी पार्टी से जुड़ा हो सकता है, व्यक्ति की आस्था भाजपा से जुड़ी हो तो फिर संदेह नहीं किया जा सकता। जबकि सौरभ सिंह की व्यक्तिगत पृष्ठभूमि ही दिलचस्प है। उन्हें खनिज विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया है, यह निगम राजस्व और काम के मामले में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सौरभ का परिवार कांग्रेस से नाता रखता है। वे खुद कांग्रेस से 2018 में बहुजन समाज पार्टी में गए और चुनाव जीत कर विधायक बने। इसके बाद 2013 में सौरभ बसपा छोड़ कर कांग्रेस में लौट गए थे। वहां से लौट कर फिर कांग्रेस में आ गए थे। अगले ही साल 2014 में सौरभ भाजपा में शामिल हो गए और 2018 में अकलतरा में पूर्व सीएम अजीत जोगी की बहू ऋचा जोगी को हरा कर अकलतरा से विधायक बने थे।

चुनाव में जिनके खिलाफ शिकायत, अब वे प्रदेश पदाधिकारी-

भाजपा ने हाल ही में प्रदेश पदाधिकारियों की सूची जारी की है। इनमें से कुछ नामों पर पार्टी के भीतरखाने में चर्चा चल पड़ी है। बिलासपुर संभाग के एक नेताजी के खिलाफ दो विधानसभा चुनावों में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी ने लिखित शिकायत की थी कि वे कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में काम कर रहे हैं, साथ ही जांच की भी मांग की थी। लोकसभा चुनाव में वक्त भी यही नजारा दिखा और तब भी शिकायत हुई। इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा और आखिरकार उन्हें प्रदेश भाजपा की टीम में शामिल कर लिया गया है।

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