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CG Ayushman Yojna: छत्तीसगढ़ में अस्पताल मालिकों की लूट! बजट 800 करोड़ और क्लेम कर दिया 2200 करोड़, किराये पर मजदूरों को भर्ती कर आयुष्मान योजना में डाला डाका

CG Ayushman Yojna: छत्तीसगढ़ में सरकार की आयुष्मान योजना नर्सिंग होम और अस्पताल मालिकों का लूटपाट का जरिया बन गया है। सामान्य मरीजों को सीरियस बनाकर तब तक अस्पताल में भर्ती रखा जाता है, जब तक आयुष्मान योजना की निर्धारित अवधि पूरी न हो जाए। मगर पिछले साल पराकाष्ठा हो गया। डाका डालने की होड़ में बजट था लगभग 800 करोड़ और अस्पताल मालिकों ने क्लेम कर दिया 2200 करोड़। अब सरकार ऑडिट कराने का बात कर रही तो अस्पताल और नर्सिंग होम संचालक विधवा विलाप कर रहे हैं...स्टाफ को वेतन नहीं दे पाने का घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं।

CG Ayushman Yojna: छत्तीसगढ़ में अस्पताल मालिकों की लूट! बजट 800 करोड़ और क्लेम कर दिया 2200 करोड़, किराये पर मजदूरों को भर्ती कर आयुष्मान योजना में डाला डाका
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By Sandeep Kumar Kadukar

CG Ayushman Yojna: रायपुर। पिछली सरकार में अस्पताल मालिकों के सिंडिकेट को आयुष्मान योजना में लूट का लायसेंस मिल गया था। तब, जितना लूट सको तो लूट लो...कि ऐसी होड़ मची कि छोटे से लेकर बड़े अस्पताल मालिक ईमान-धरम भूल गए। अब सरकार ने पेमेंट रोक दिया है तो अस्पताल संचालक बिन पानी की मछलियों की तरह छटपटा रहे हैं। क्योंकि, गड़बड़झाला तो किए ही हैं। अगर इसकी ऑडिट हो जाए, तो अधिकांश अस्पतालों के मालिक जेल में होंगे।

बहरहाल, छत्तीसगढ़ में कुछ पुराने डॉक्टरों में इंसानियत जिंदा है, जमीर अभी बची हुई है। छत्तीसगढ़ के नंबर वन न्यूज वेबसाइट एनपीजी न्यूज को प्रदेश के एक ऐसे जमीर वाले डॉक्टर ने पत्र लिखकर अस्पताल मालिकों की करतूतों का पर्दाफाश किया है। उन्होंने आग्रह किया है कि छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के लोगों को लूटने से बचाने के लिए कुछ करना होगा। क्योंकि, पैसा सरकार देती है मगर वह है तो आम आदमी का ही। एनपीजी ने डॉक्टर के पत्र को बिना एडिट प्रकाशित कर रहा है। आप भी पढ़िये...उनकी पीड़ा...

मैं स्वयं एक डॉक्टर हूं और मैं आज आयुष्मान भारत में पूरे छत्तीसगढ़ में और शायद पूरे भारत में होने वाले घिनौनापन का सत्य उजागर करना चाहता हूं जो सचमुच बहुत ही घिनौना है और पैसे के लिए आदमी और डॉक्टर कहां से कहां पहुंच जाता है,स क्या से क्या कर सकते हैं इसका इससे बड़ा और दूसरा कोई उदाहरण नहीं हो सकतास मैं एक बच्चों का डॉक्टर हूं और इस स्पेशलिटी में होने वाले घिनौनापन का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता हूंस गांव में और छोटे छोटे शहरों में बैठने वाले लगभग हर झसला छाप डॉक्टर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता गांव की दाइयां और न जाने कितने लोग इन बड़े-बड़े अस्पतालों के एवं कारपोरेट अस्पतालों के दलाल बन गए हैं। जैसे कोई भी प्रेग्नेंट लेडी डिलीवरी के लिए उनके पास पहुंचती है या कोई भी मरीज इनके पास पहुंचता है वह इनको लेकर अपने गंतव्य हॉस्पिटल में पहुंचता है जहां उसकी बिना जरुरत के ऑपरेशन या क्रिटिकल केयर में डाला जाता है।

डिलीवरी के बाद जो भी शिशु रोग विशेषज्ञ अस्पताल में डिलीवरी अटेंड करने जाता है उसके देखते ही बच्चों को किसी न किसी प्रकार का सीरियस प्रॉब्लम चालू हो जाता है और उसको तुरंत, बिना मरीज के अटेंडेंट रिश्तेदार लोगों को बताएं बिना उनके पीडियाट्रिक अस्पताल में भरती कर दिया जाता है, फिर चालू होता है उसका सीरियस होने का खेल, उस मरीज को नहीं नहीं करते-करते कुछ एक महीने डेढ़ महीने जब तक उसका आयुष्मान से रिलीज होने वाला पूरा पैसा या लगभग पूरा पैसा खत्म नहीं हो जाता या जब तक मरीज संबंधित अस्पताल से लड़ाई झगड़ा करके छुट्टी नहीं कर। पाता तब तक उस मरीज को भर्ती करके रखा जाता है इनमें कुछ मरीज बिना मतलब के भर्ती वाले होते हैं और कुछ मरीज ऐसे होते हैं जिनको एक दो महीने भर्ती करने के बाद भी बात भी मरीज को कोई फायदा नहीं होता, नर्सिंग होम अपना बिल वसूलते हैं और मरीज के रिश्तेदार अपना विकलांग बच्चा या बिना किसी काम के बच्चे को लेकर घर पहुंचता है और कुछ दिन बाद फिर से किसी दूसरे तीसरे चौथे अस्पताल में बच्चों को लेकर बेचारा घूमता रहता है। अगर इन मरीजों को अपने पेमेंट पर अस्पताल में रहना पड़े तो यह दो दिन से ज्यादा अस्पताल में नहीं रुकते। लेकिन आयुष्मान का पैसा सरकार दे रही है यह अस्पताल में पड़े रहते हैं। आंख और दांतों के अस्पताल के बाद सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा किसी भी स्पेशलिटी में हो रहा है तो वह है नवजात शिशु अस्पताल में।

हर एक नवजात शिशु को जो हॉस्पिटल में डिलीवर होता है बिना मतलब का भर्ती किया जाता है और 2 लाख 3 लाख 4 लाख तक उनका पेमेंट होता है सरकार को चाहिए की इन सब नवजात शिशुओं के अस्पतालों होने वाले एडमिशन एवं इलाज का संज्ञान लेकर इस मामले में इस मामले में आवश्यक कार्यवाही करें अन्यथा यह जो घपला चल रहा है यह किसी दिन सरकार के लिए ही घातक हो जाएगा और और जो सचमुच आवश्यक बीमारियों के उपचार में जो सरकार का सहयोग मिलता है वह भी उचित लोगों तक पहुंचने में सरकार को प्रॉब्लम होगा। अक्सर जिन अस्पतालों में डिलीवरी होती है उस जगह में शिशु रोग विशेषज्ञ ना रहने के बावजूद भी नवजात शिशुओं को कोई ना कोई कारण बात कर भारती कर लिया जाता है और आयुष्मान से इलाज करने का नाटक किया जाता है कई बार ऐसा भी होता है मरीज जब ज्यादा सीरियस होता है या बाद में कुछ और प्रॉब्लम होता है तो ऐसे मरीजों को दूसरे बड़े अस्पतालों में भेजा जाता है। लगभग लगभग हर प्रसूति गृह के अपने फिक्स पीडियाट्रिशियन है जो डिलीवरी में कॉल करके बुलाए जाते हैं और बच्चों को डिलीवरी के बाद जरूरत ना होते हुए भी तुरंत अपने हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया जाता है इनका क्या गणित है यह तो यह लोग ही जाने।

नॉन मेडिकल वाले खोल रहे अस्पताल

आजकल तो शहरों में ऐसे अस्पताल भी खुल गए हैं बहुत सारी संख्या में जहां कोई भी डॉक्टर नहीं है कोई मैनेजमेंट वाला या कोई मेडिकल स्टोर वाला अस्पताल या मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल खोल दे रहा और उनके यहां रोज 20-25 मरीज, जो सचमुच मरीज नहीं होते रात में भर्ती होते हैं दो दिन रहते हैं उनको प्रतिदिन नर्सिंग होम कुछ पैसा और खाने का सामान मुहैया कराते हैं। उनके नाम से अस्पताल का बिल मेडिसिन का बिल सब चीज क्लेम कर दिया जाता है। आयुष्मान पर और चौथे पांचवें दिन सारे के सारे यही मरीज फिर से किसी दूसरे ऐसे ही अस्पताल में फिर भर्ती हो जाते हैं और यह कब से चल रहा है नहीं मालूम और यह चलता रहेगा अगर सरकार से जुड़े लोग और एडमिनिस्ट्रेशन के सभी लोगों को इन सभी चीजों पर संज्ञान देने की जरूरत है अन्यथा ऐसी सभी चीज जो सरकार लोगों के भले के लिए करती हैं मिट्टी पलीत होने में समय नहीं लगता। अभी छत्तीसगढ़ में लगभग पिछले 6- 8 महीने से आयुष्मान के होने वाले इलाज का डॉक्टर एवं नर्सिंग होम में भुगतान नहीं हो रहा है अस्पताल एवं प्रबंधन सदमे में है कैसे ऐसे में अस्पताल चलेगा लेकिन सरकार को इससे बहुत ज्यादा चिंता नहीं है।

फर्जी अस्पताल, फर्जी क्लेम

पता करने पर यह मालूम हुआ कि पूरे छत्तीसगढ़ में साल भर का आयुष्मान का बजट लगभग 600 से 800 करोड़ का होता है जो इसी साल लगभग 2200 करोड़ का हो गया है बाकी पूरे देश का क्या हाल होगा यह मालूम नहीं और इनमें से आधे से ज्यादा क्लेम फर्जी तरीके से एवं फर्जी अस्पतालों के द्वारा किए गए हैं जिसके कारण मरीज एवं छोटे लेवल के अस्पताल अपना काम सुचारू रूप से नहीं कर पाती। तथा इन योजनाओं का जो लाभ जनता को मिलना चाहिए वह नहीं दे पाते। संबंधित अधिकारियों एवं राजनेताओं से अनुरोध है इस संबंध में संज्ञान लें एवं आवश्यक कार्यवाही करें।

Sandeep Kumar Kadukar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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