Begin typing your search above and press return to search.

Bilaspur Highcourt News: पहचान परेड में थी खामियां, पॉक्सो एक्ट में उम्र कैद की सजा को हाईकोर्ट ने किया रद्द

Bilaspur Highcourt News: पॉक्सो एक्ट के मामले में उम्र कैद की सजा को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि पहचान परेड में गंभीर खामियां बरती गई। इसके अलावा पीड़िता और उसके परिवार के बयानों में भी विरोधाभास पाए गए। घटना के समय जप्त किए गए वाहनों में भी विरोधाभास था। जिसके चलते हाईकोर्ट ने पॉक्सो की सजा को रद्द कर दिया है।

Bilaspur Highcourt News: पहचान परेड में थी खामियां, पॉक्सो एक्ट में उम्र कैद की सजा को हाईकोर्ट ने किया रद्द
X
By Radhakishan Sharma

Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर। बिलासपुर हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत उम्रकैद की सजा पाए एक दोषी को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस द्वारा पहचान परेड की प्रक्रिया में भारी खामियां थीं और अभियोजन पक्ष आरोपी को अपराध से जोड़ने वाली परिस्थितियों की कड़ी साबित करने में विफल रहा।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि भले ही यह साबित हो गया हो कि अपराध घटित हुआ है, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि अपराध अपीलकर्ता ने ही किया है।

यह है मामला

बलौदाबाजार जिला निवासी प्रसेन कुमार भार्गव को विशेष अदालत (पॉक्सो) ने 8 जुलाई 2022 को आईपीसी की धारा 450, 363,506-2 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अभियोजन पक्ष का मामला था कि 26 सितंबर 2019 की रात, एक 11 वर्षीय नाबालिग लड़की का उसके घर से सोते समय अपहरण कर लिया गया। पीड़िता का आरोप था कि उसे एक कैप्सूल-नुमा वाहन में ले जाया गया और उसके साथ दुष्कर्म किया गया। जांच के दौरान पुलिस ने अपीलकर्ता का एक वाहन जब्त किया और पहचान परेड के दौरान पीड़िता द्वारा आरोपी की पहचान कराई।

फॉरेंसिक रिपोर्ट में रेप की पुष्टि, लेकिन अपराधी की पहचान नहीं

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में कराई गई पहचान परेड को भरोसेमंद नहीं माना जा सकता। परेड से पहले गवाह को दिखा दिया जाता है तो पूरी प्रक्रिया का साक्ष्य मूल्य समाप्त हो जाता है। कोर्ट में की गई पहचान अर्थहीन हो जाती है। मेडिकल रिपोर्ट से यह साबित होता है कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म हुआ था।मेडिकल राय केवल अपराध की पुष्टि करती है, अपराधी की पहचान नहीं करती।

जांच प्रक्रिया दोषपूर्ण होने का दिया हवाला

अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पूरी जांच प्रक्रिया दोषपूर्ण थी। पीड़िता आरोपी को पहले से नहीं जानती थी, लेकिन औपचारिक पहचान परेड से पहले ही आरोपी को थाने में पीड़िता और गवाहों को दिखा दिया गया था। इसके अलावा, पहचान परेड जेल के बजाय सिंचाई विभाग के रेस्ट हाउस में आयोजित की गई, जो नियमों का उल्लंघन है। वाहन की बरामदगी और पीड़िता द्वारा आरोपी की पहचान करना अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त है।

पीड़िता-परिजन के बयान विरोधाभास

हाईकोर्ट ने पीड़िता और उसके परिवार के बयानों में भी विरोधाभास पाए। घटना के समय, वाहन के विवरण, कैप्सूल कार और जब्त किए गए वाहन को लेकर भी महत्वपूर्ण विरोधाभास थे। निचली अदालत ने बचाव पक्ष की दलीलों और जांच की खामियों को नजरअंदाज करते हुए केवल अनुमान के आधार पर फैसला सुनाया था। अपील स्वीकार करते हुए 8 जुलाई 2022 के दोषसिद्धि आदेश को रद्द कर आरोपी प्रसेन को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

Next Story