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Bilaspur Highcourt News: दुष्कर्म मामले में 19 साल बाद आया फैसला: ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट ने किया रद्द, पढ़िए आरोपी किस आधार पर हुआ दोषमुक्त

Bilaspur Highcourt News: दोनों पैरों से पोलियो के चलते दिव्यांग युवती से रेप के मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को सात साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।

Bilaspur Highcourt News: दुष्कर्म मामले में 19 साल बाद आया फैसला: ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट ने किया रद्द, पढ़िए आरोपी किस आधार पर हुआ दोषमुक्त
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर। दुष्कर्म के आरोप में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाए गए सात साल की सजा को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस सचिन सिंह राजपूत के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है, अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप को सिद्ध नहीं कर पाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया है।

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है, पीड़िता की गवाही में विरोधाभास भी नजर आ रहा है। पीड़िता की शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपी युवक द्वारा पीड़िता के साथ कई बार दुष्कर्म करने का जिक्र किया है। पीड़िता ने अपनी गवाही में एक बार दुष्कर्म की बात कही है। चिकित्सकीय रिपोर्ट में अबार्शन का भी प्रमाण नहीं मिल पाया है। दुष्कर्म की घटना के तकरीबन सात महीने बाद पीड़िता ने परिजनों के साथ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है। सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई है कि पीड़िता के पिता और याचिकाकर्ता युवक के बीच गवाही देने को लेकर पुरानी दुश्मनी चल रही है। दरअसल याचिकाकर्ता युवक ने पीड़िता के पिता के खिलाफ पत्नी की हत्या करने की गवाही दी थी। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य लाभ याचिकाकर्ता को मिलनी चाहिए। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता आरोपी युवक को दुष्कर्म के आरोप से दोषमुक्त कर दिया है।

घटना जनवरी 2005 से लगभग छह महीने पहले की है। तब याचिकाकर्ता आरोपी युवक 18 साल की युवती जिसके दोनों पैर बचपन से ही नहीं चलते और वह दिव्यांग है, घर पर अकेली थी। इसका फायदा उठाते हुए आरेपी युवक मालसिंह ने उसके साथ दुष्कर्म किया। रेप करने के बाद किसी को नहीं बताने कहा, बताने पर जान से मारने की धमकी दी। पीड़िता ने थाने में आरोप लगाई कि जब-जब वह घर पर अकेली होती थी, आरोपी युवक उसे धमकाकर जबरिया रेप करता था। इससे वह गर्भवती हो गई। घटना के सात महीने बाद पीड़िता ने पूरा वाकया अपने पिता को बताया। पीड़िता की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी युवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया और कोर्ट में चालान पेश किया। मामले की सुनवाई के बाद ट्रायल काेर्ट ने आरोपी युवक को धारा 376 (दुष्कर्म) में 7 साल सश्रम कारावास और 500 रुपये जुर्माना (जुर्माना न देने पर एक माह अतिरिक्त कारावास) और धारा 506-बी (आपराधिक धमकी) में 3 साल सजा सुनाई।

ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए युवक ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि घटना के वक्त पीड़िता बालिग थी, हो सकता है उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए गए हो। पीड़िता ने सात महीने बाद दुष्कर्म का आरोप लगाती हुई एफआईआर दर्ज कराई है। यह संदेह पैदा करता है। अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि पीड़िता के पिता और याचिकाकर्ता के बीच पुरानी दुश्मनी है। हो सकता है दुश्मनी निकालने के लिए यह आरोप लगाए गए हों। पीड़िता की ओर से पैरवी करते हुए शासकीय अधिवक्ता ने कहा, पीड़िता दिव्यांग और असहाय थी। आरोपी ने धमकाकर चुप रहने को मजबूर किया।

मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को धारा 376 और 506-बी दोनों आरोपों से बरी करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की जमानत की शर्तें भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 481 के तहत छह महीने तक प्रभावी रहेगी।

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