Bilaspur Highcourt News: धर्मांतरण के खिलाफ होर्डिंग्स लगाना असंवैधानिक नहीं, हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका
Bilaspur Highcourt News: ईसाई मिशनरियों के गांव में प्रवेश करने पर रोक हेतु लगाए गए होर्डिंगस को असंवैधानिक बता हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने इसे सुनवाई के बाद खारिज कर दिया है।

Chhattisgarh High Court (NPG FILE PHOTO)
Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर। बिलासपुर हाईकोर्ट ने जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखे के ज़रिए किए जाने वाले धर्मांतरण को लेकर कड़ी चिंता जताई है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की डिवीजन बेंच ने एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि इस प्रकार का धर्मांतरण केवल धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग ही नहीं, बल्कि सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक विविधता के लिए गहरा खतरा है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और टिप्पणियों का उल्लेख भी किया।
पीठ ने कहा कि भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है, लेकिन जब यह स्वतंत्रता जबरदस्ती, छल या प्रलोभन के माध्यम से प्रयोग की जाती है, तो यह संविधान की भावना और सामाजिक नैतिकता के विपरीत है। कोर्ट ने कहा कि “सामूहिक या प्रेरित धर्मांतरण की घटनाएं न केवल समाज में तनाव और अविश्वास बढ़ाती हैं, बल्कि स्वदेशी और जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का प्रयास भी करती हैं।
कांकेर जिले का है मामला
यह मामला कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर क्षेत्र के ग्राम घोटिया से जुड़ा है, जहां ग्रामसभा ने पेसा कानून के तहत अपनी सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा के उद्देश्य से ईसाई धर्म प्रचारकों और बाहरी धर्मांतरित लोगों के प्रवेश पर रोक लगाने वाले होर्डिंग्स लगाए थे। इन बैनरों में लिखा था —“ग्रामसभा को अपनी संस्कृति और परंपराओं की रक्षा का अधिकार है, इसलिए बाहरी पादरी, धर्म प्रचारक या धर्मांतरित व्यक्ति गांव में प्रवेश नहीं कर सकते।” इसी कार्रवाई को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें तर्क दिया गया कि ऐसे होर्डिंग्स धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।
कोर्ट ने कहा — “विकल्प मौजूद, धर्मांतरण में प्रलोभन या धोखा अस्वीकार्य”
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि वे चाहें तो ग्रामसभा, एसडीएम (राजस्व) या पुलिस प्रशासन के समक्ष वैधानिक उपाय तलाश सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “किसी व्यक्ति को उसके धर्म का पालन करने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन यदि धर्मांतरण जबरदस्ती, धोखे या आर्थिक लालच के ज़रिए कराया जा रहा है, तो यह गंभीर संवैधानिक चिंता का विषय है।”
निचले तबके के गरीबों और असाक्षरों को किया जा रहा टारगेट
निर्णय में कहा गया है कि राज्य के दूरस्थ आदिवासी इलाकों में अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि कुछ मिशनरी संगठन गरीब, अशिक्षित और वंचित परिवारों को आर्थिक सहायता, मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा या रोजगार के नाम पर धर्मांतरण के लिए प्रेरित करते हैं। कोर्ट ने कहा —“ऐसी प्रथाएं आस्था की स्वतंत्रता को नहीं, बल्कि निर्बल वर्ग की विवशता को दर्शाती हैं। यह धीरे-धीरे सांस्कृतिक उपनिवेशवाद का रूप ले लेती हैं।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत में मिशनरी गतिविधियां औपनिवेशिक काल से चली आ रही हैं। प्रारंभ में उनका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार था, लेकिन समय के साथ कुछ संगठनों ने इन माध्यमों को धर्मांतरण के साधन में बदल दिया। कोर्ट के अनुसार —“आजीविका, समानता और शिक्षा के वादों के ज़रिए धीरे-धीरे धर्मांतरण की प्रक्रिया समाज के वंचित वर्गों में जड़ें जमा रही है, जो चिंताजनक है।”
संस्कृति और अपने धर्म की रक्षा असंवैधानिक नहीं
हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि ग्रामसभा द्वारा लगाए गए होर्डिंग्स सांस्कृतिक सुरक्षा और सामुदायिक एकता के उद्देश्य से लगाए गए हैं और वे किसी धर्म के प्रति घृणा या भेदभाव नहीं फैलाते, तो उन्हें असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।
“धर्मांतरण व्यक्तिगत आस्था का विषय है, परंतु जब यह प्रलोभन, भय या छल से किया जाता है, तब यह सामाजिक संतुलन को तोड़ देता है। यह खतरा तब पैदा होता है जब धर्मांतरण व्यक्तिगत आस्था का विषय न रहकर प्रलोभन छल कपट के शोषण का परिणाम बन जाता है। इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी गई।
