Bilaspur Highcourt News: बेटी को पालना पिता का कर्तव्य’: हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की दलीलें की खारिज
Bilaspur Highcourt News: 6 वर्षीय नाबालिग बेटी को पांच हजार रुपये प्रतिमाह भरण पोषण देने का आदेश फैमिली कोर्ट ने आरक्षक पिता को दिया था। आरक्षक पिता ने खुद को एचआईवी पीड़ित बता हाईकोर्ट में आदेश के खिलाफ अपील करते हुए कहा, बच्ची उसकी जैविक संतान नहीं है. इलाज में काफी खर्च हो जा रहा है। लिहाजा वह भरण पोषण नहीं दे सकता। हाईकोर्ट ने तर्कों को नकारते हुए कहा कि पिता अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते इसके साथ ही आरक्षक की याचिका खारिज करदी गई।

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Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक कांस्टेबल की उस पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने फैमिली कोर्ट द्वारा बेटी के पक्ष में दिए गए भरण-पोषण आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने यह दावा किया था कि बच्ची उसकी पुत्री नहीं है और वह स्वयं एचआईवी संक्रमित है, जिसके इलाज में अत्यधिक खर्च आता है। इसके चलते वह भरण-पोषण देने में असमर्थ है।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने इन दलीलों को खारिज करते हुए दो टूक कहा कि “बेटी को भरण-पोषण देना पिता की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है।” अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित है, जिसमें किसी प्रकार की कानूनी त्रुटि नहीं है। अतः इसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
क्या है पूरा मामला
कोण्डागांव जिले में पदस्थ एक कांस्टेबल की पत्नी ने फैमिली कोर्ट, अंबिकापुर में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत 30,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है, बेटी की देखरेख से मुंह मोड़ चुका है, और कई वर्षों से अलग रह रहा है।
फैमिली कोर्ट का आदेश
9 जून 2025 को अंबिकापुर की फैमिली कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया था। फैसले का तहत फैमिली कोर्ट ने पत्नी की भरण-पोषण की मांग को अस्वीकार कर दिया। लेकिन 6 वर्षीय नाबालिग बेटी के पक्ष में 5,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण की स्वीकृति दी।कोर्ट ने कहा था कि बच्ची की परवरिश, शिक्षा और देखभाल के लिए यह सहायता जरूरी है।
कांस्टेबल की याचिका और दलीलें
फैमिली कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ कांस्टेबल ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। याचिका में तर्क प्रस्तुत किया गया कि बच्ची उसकी जैविक संतान नहीं है। इसके अलावा वह एचआईवी पॉजिटिव है, इलाज में भारी खर्च हो रहा है। इसलिए आर्थिक संकट के चलते भरण-पोषण देना संभव नहीं।
हाईकोर्ट का फैसला: जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते पिता
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के सभी तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा फैमिली कोर्ट ने सभी साक्ष्यों का समुचित परीक्षण कर आदेश पारित किया है। याचिकाकर्ता का यह दावा कि बच्ची उसकी नहीं है, अप्रमाणित है। पिता होने के नाते बच्ची को भरण-पोषण देना उसका कानूनी और नैतिक कर्तव्य है। अंततः, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को वैध और न्यायोचित ठहराते हुए कांस्टेबल की याचिका को खारिज कर दिया।
