Bilaspur High Court News: प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण: हाई कोर्ट ने कहा-यह गंभीर सामाजिक संकट, आदिवासी गांवों में पादरियों के प्रवेश पर लगी रोक को बताया सही
Bilaspur High Court News: दूरस्थ वनांचलों,आदिवासी इलाकों के साथ ही मैदानी इलाकों में सेवा, पढ़ाई और इलाज के बहाने धर्मांतरण का खेल चल रहा है। अदालत ने कहा कि संविधान सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता देता है लेकिन इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग बल, प्रलोभन या धोखे के माध्यम से करना गंभीर चिंता का विषय है।

BILASPUR HIGH COURT
Bilaspur High Court News: बिलासपुर। दूरस्थ वनांचलों,आदिवासी इलाकों के साथ ही मैदानी इलाकों में सेवा, पढ़ाई और इलाज के बहाने धर्मांतरण का खेल चल रहा है। अदालत ने कहा कि संविधान सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता देता है लेकिन इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग बल, प्रलोभन या धोखे के माध्यम से करना गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे धर्मांतरण से जनजातीय समुदायों के भीतर गहरे सामाजिक विभाजन पैदा होते हैं और उनकी पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ जाती है। आदिवासी गांवों में पादरियों के प्रवेश पर लगी रोक के विरोध में पादरियों की याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हो रही थी। ग्रामीणों के निर्णय को सही ठहराते हुए हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी के साथ याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा, ऐसे धर्मांतरण से जनजातीय समुदायों के भीतर गहरे सामाजिक विभाजन पैदा होते हैं और उनकी पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ जाती है।
बिलासपुर हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा किआदिवासी बहुल क्षेत्रों में प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण की प्रथा बेहद चिंताजनक है। इससे सामाजिक संकट खड़ा हो जाएगा। हाई कोर्ट ने ग्राम सभाओं द्वारा पादरियों के गांव में प्रवेश पर लगाई रोक को संवैधानिक रूप से सही ठहराया है। यह मामला कांकेर जिले के भानुप्रतापुर क्षेत्र के ग्राम घोटिया का है। ग्रामसभा की बैठक के बाद घोटिया सहित आसपास के आदिवासी गांवों में गांव के प्रवेश द्वार पर ईसाई पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश को रोकने वाले होर्डिंग लगाए गए हैं। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि धर्मांतरण तब एक गंभीर समस्या बन जाता है, जब यह व्यक्तिगत आस्था के बजाय प्रलोभन, हेरफेर, या कमजोरियों के शोषण का परिणाम होता है।
डिवीजन बेंच ने कहा कि संविधान सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता देता है। स्वतंत्रता का दुरुपयोग बल, प्रलोभन या धोखे के माध्यम से करना गंभीर चिंता का विषय है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जब आर्थिक रूप से वंचित समुदायों को बेहतर जीवन या शिक्षा के वादे पर धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जाता है तो यह सेवा के बजाय धार्मिक विस्तार का साधन बन जाता है। कोर्ट ने यह भी पाया कि ऐसे धर्मांतरण से जनजातीय समुदायों के भीतर गहरे सामाजिक विभाजन पैदा होते हैं और उनकी पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ जाती है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि प्रवेश प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 19(1)(घ) (आवागमन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते हैं। राज्य सरकार की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के लॉ अफसरों ने पेसा अधिनियम, 1996 का हवाला देते हुए कहा, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को उनके सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक पहचान की रक्षा करने का अधिकार देता है। राज्य शासन के जवाब के बाद कोर्ट ने कहा, ग्राम सभा एक संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त निकाय है। इसलिए अवैध धर्मांतरण गतिविधियों को रोकने के लिए लगाया गया सामान्य चेतावनीपूर्ण होर्डिंग अपने आप में असंवैधानिक नहीं माना जा सकता।
डिवीजन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के रेव. स्टेनिसलॉस मामले का हवाला देते हुए कहा कि जबरन या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण को रोकने वाले कानून संवैधानिक वैधता रखते हैं। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ताओं को यह स्वतंत्रता दी कि यदि वे ग्राम सभा के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो वे 'पेसा नियमों' के तहत उपलब्ध वैकल्पिक उपचार का उपयोग कर सकते हैं। डिवीजन बेंच कहा, यदि याचिकाकर्ता को अपने जीवन स्वतंत्रता या आवागमन के लिए कोई खतरा महसूस होता है तो वे पुलिस से सुरक्षा की मांग कर सकते हैं, जिस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा। डिवीजन बेंच ने जनजातीय हितों की रक्षा के लिए ग्राम सभाओं के कदम को उचित ठहरायते हुए याचिका खारिज कर दी है।
