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Bilaspur High Court News: कर्मचारियों की सेवा को लेकर हाई कोर्ट का निर्णय: नौकरी से निकाले गए कर्मियों के लिए निश्चित फार्मूला नहीं किया जा सकता तय

Bilaspur High Court News: नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों के मामले में अलग-अलग बेंच के द्वारा अलग-अलग फैसला दिया गया था। कर्मचारियों की बर्खास्तगी के बाद राहत को लेकर संवैधानिक सवाल उठा था। जिस पर चीफ जस्टिस समेत तीन जजों की फुल कोर्ट बैठी थी। फुल बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि नौकरी से निकाले गए कर्मचारी बहाल हो या सिर्फ मुआवजा मिले, इसके लिए कोई निश्चित फार्मूला नहीं बनाया जा सकता। सभी प्रकरण की परिस्थितियां अलग है। हर मामले का फैसला मौजूदा परिस्थितियों और तथ्यों के आधार पर होगा।

Bilaspur High Court News: कर्मचारियों की सेवा को लेकर हाई कोर्ट  का निर्णय: नौकरी से निकाले गए कर्मियों के लिए निश्चित फार्मूला नहीं किया जा सकता तय
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court News: बिलासपुर। हाई कोर्ट की फुल बेंच ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों के मामले में यह तय करने के लिए कोई निश्चित फॉर्मूला नहीं बनाया जा सकता, उन्हें बहाली दी जाए या केवल मुआवजा। फुल बेंच ने कहा, हर मामले की परिस्थितियां अलग होती हैं और राहत उसी के अनुसार तय की जाएगी।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की फुल बेंच ने मामले को निर्णय के लिए रोस्टर के अनुसार डिवीजन बेंच को भेजने का आदेश दिया है। सुनवाई के बाद फुल कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसे अब जारी किया है।

विवाद की पृष्ठभूमि

वर्ष 2015 में कर्मचारियों की बर्खास्तगी से जुड़ा मामला अदालत में आया। दो अलग-अलग बेंच के विरोधाभासी आदेश के कारण कानूनी स्थिति बन गई। सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि 10 वर्ष या उससे अधिक सेवा देने वालों को बहाल किया जाए और कम सेवा अवधि वालों को केवल मुआवजा दिया जाए। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच का आदेश पलटते हुए कहा कि यदि छंटनी औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ के तहत अवैध है, तो 240 दिन सेवा देने वाले कर्मचारियों में भेदभाव नहीं हो सकता। बहाली जैसे मामलों में समानता का सिद्धांत सर्वोपरि रहेगा। इसी मतभेद के चलते मामला 2016 में फुल बेंच को रेफर किया गया।

क्या है पूरा मामला

मूल याचिकाकर्ता को 1 मार्च 1985 को श्रमिक के पद पर नियुक्त किया गया। 1 अगस्त 1994 को मौखिक आदेश से सेवा समाप्त कर दी गई। तुलाराम, बड़कू, धनीराम, खेलाफ, भरत, रामनारायण, हरिशंकर, दुकालू, श्यामू और कुशुराम जैसे कई श्रमिकों को भी नौकरी से निकाल दिया गया। सभी ने 1995 में रायपुर लेबर कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद श्रम न्यायालय ने श्रमिकों की याचिका को खारिज कर दिया।

श्रम न्यायालय के फैसले के खिलाफ औद्योगिक न्यायालय में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद वर्ष 2017 में औद्योगिक न्यायालय ने श्रम न्यायालय के फैसले को पलटते हुए बहाली का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद सभी की नौकरी लग गई और सेवा पुस्तिका भी बन गई। इसी बीच वर्ष 2008 में राज्य सरकार ने परिपत्र जारी कर 1988 से 1997 तक काम करने वाले दैनिक वेतनभोगियों को नियमितीकरण का पात्र माना। अपील लंबित होने से अपीलकर्ताओं को शासन के इस आदेश का लाभ नहीं मिला। 12 अगस्त 2014 को हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने सरकार के पक्ष में फैसला देकर बहाली रद्द कर दी और एक लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया।

डिवीजन बेंच ने तय किए थे ये पांच सवाल:

1. क्या हाई कोर्ट श्रम न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है?

2. छंटनी अवैध होने पर कर्मचारी को बहाली मिलनी चाहिए या मुआवजा दिया जा सकता है?

3. किन परिस्थितियों में बहाली और किन परिस्थितियों में मुआवजा उचित होगा?

4. पिछला वेतन (Back Wages) देने के मानदंड क्या होंगे?

5. देरी से अपील करने का प्रभाव क्या होगा?

फुल बेंच का निष्कर्ष

फुल बेंच ने कहा कि बहाली और मुआवजा जैसे संवेदनशील मामलों में कोई समान मानक लागू नहीं किया जा सकता। प्रत्येक मामले का निर्णय तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर ही किया जाएगा।

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