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Bilaspur High Court News: दुष्कर्म पीड़िता गर्भवती को प्रेग्नेंसी खत्म करने हाईकोर्ट ने दिया आदेश, 21 सप्ताह का है गर्भ: कोर्ट ने कहा...

Bilaspur High Court News: हाई कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग को प्रेग्नेंसी खत्म करने की अनुमति दे दी है। पीड़िता को 21 सप्ताह का गर्भ है। आदेश देने से पहले हाई कोर्ट ने सीएमएचओ और चिकित्सा विशेषज्ञों से रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट में अर्बाशन की सहमति देने के बाद हाई कोर्ट ने विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में नाबालिग पीड़िता का अर्बाशन कराने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ऐसा न करने देना पीड़िता के शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के अधिकार का उल्लंघन होगा। उसके मानसिक ट्रॉमा को बढ़ाएगा और उसकी शारीरिक, साइकोलॉजिकल और मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा असर डालेगा।

Bilaspur High Court News: दुष्कर्म पीड़िता गर्भवती को प्रेग्नेंसी खत्म करने हाईकोर्ट ने दिया आदेश, 21 सप्ताह का है गर्भ: कोर्ट ने कहा...
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court News: बिलासपुर। हाई कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग को प्रेग्नेंसी खत्म करने की अनुमति दे दी है। पीड़िता को 21 सप्ताह का गर्भ है। आदेश देने से पहले हाई कोर्ट ने सीएमएचओ और चिकित्सा विशेषज्ञों से रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट में अर्बाशन की सहमति देने के बाद हाई कोर्ट ने विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में नाबालिग पीड़िता का अर्बाशन कराने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ऐसा न करने देना पीड़िता के शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के अधिकार का उल्लंघन होगा। उसके मानसिक ट्रॉमा को बढ़ाएगा और उसकी शारीरिक, साइकोलॉजिकल और मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा असर डालेगा।

दुष्कर्म पीड़िता ने अनचाहे गर्भ को गिराने की अनुमति मांगते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस साहू ने कहा, इसमें कोई शक नहीं कि याचिकाकर्ता पीड़िता ज़बरदस्ती सेक्सुअल इंटरकोर्स, रेप की विक्टिम है। वह प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करना चाहती है, क्योंकि वह दुष्कर्मी के बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती। गर्भपात कराना उनकी व्यक्तिगत इच्छा है, जिसका कोर्ट को सम्मान करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक हिस्सा है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुचिता श्रीवास्तव (ऊपर) के मामले में कहा है। प्रेग्नेंसी जारी रखने से उसकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बहुत ज़्यादा खतरा हो सकता है। यह गर्भ में पल रहे अजन्मे बच्चे के लिए और भी खतरनाक हो सकता है। समाज याचिकाकर्ता पीड़िता और उसके बच्चे को ठीक से और सम्मान के साथ नहीं अपनाएगा।

सिंगल बेंच ने कहा कि इस तरह की परिस्थिति में पीड़िता को अनचाहे गर्भ का अर्बाशन कराने की अनुमति ना देना, उसे पूरी प्रेग्नेंसी सहने और बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर करने जैसा होगा, जो उसके शरीर के साथ खिलवाड़ होगा। इससे न केवल उसका मानसिक परेशानी बढ़ेगी बल्कि पूरे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है। सिंगल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने अपनी अनचाहे गर्भ को समाप्त करने की मांग करती हुई हाई कोर्ट मेे याचिका दायर की थी। सिंगल बेंच ने संबंधित चीफ मेडिकल हेल्थ ऑफिसर CMHO को यह पता लगाने के लिए मेडिकल जांच करने का निर्देश दिया था कि क्या इन परिस्थितियों में गर्भपात किया जा सकता है। याचिकाकर्ता की प्रेग्नेंसी की उम्र 21 हफ़्ते की थी, लिहाजा डॉक्टरों ने कोर्ट को सुझाव दिया कि मेडिकल टर्मिनेशन किया जा सकता है।

विशेष चिकित्सकों की देखरेख में होगा मेडिकल टर्मिनेशन

सीएमएचओ और विशेषज्ञ चिकित्सकों की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 के तहत मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति याचिकाकर्ता को दी है। विशिषज्ञ चिकित्सकों की उपस्थिति में याचिकाकर्ता पीड़िता का मेडिकल टर्मिनेशन किया जाएगा।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 में है ये प्रावधान

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3, रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन की इजाज़त देता है अगर यह 24 हफ़्ते से ज़्यादा न हो, अगर प्रेग्नेंसी जारी रहने से प्रेग्नेंट महिला की जान को खतरा हो या उसकी शारीरिक या मानसिक सेहत को गंभीर नुकसान हो, या अगर इस बात का काफ़ी खतरा हो कि अगर बच्चा पैदा होता है तो उसे ऐसी शारीरिक या मानसिक दिक्कतें होंगी, जिससे वह गंभीर रूप से विकलांग हो जाएगा।

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