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Bilaspur High Court: लिव इन में पैदा हुए बच्चों को लेकर हाई कोर्ट का आदेश, बच्चों के दादा को देना होगा गुजारा भत्ता और भरण पोषण

Bilaspur High Court News: बिलासपुर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है, विवाह गैर कानूनी है। इसे मान्यता नहीं दी जा सकती, पर लिव इन के दौरान पैदा हुए बच्चों की भविष्य की चिंता करनी होगी। पढ़िए डिवीजन बेंच ने बच्चों की मां के बारे में क्या फैसला दिया है।

Bilaspur High Court: लिव इन में पैदा हुए बच्चों को लेकर हाई कोर्ट का आदेश, बच्चों के दादा को देना होगा गुजारा भत्ता और भरण पोषण
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court News: बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने लिव इन के दौरान पैदा हुए तीन बच्चों की परवरिश का जिम्मा बच्चों के दादा को दिया है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती। यह पूरी तरह गैर कानूनी है। लिव इन के दौरान पैदा हुए बच्चों की भविष्य की चिंता भी करनी होगी। फैमिली कोर्ट के फैसले को यथावत रखते हुए डिवीजन बेंच ने बच्चों के दादा को तीनों बच्चों को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया है। इसके लिए डिवीजन बेंच ने हर महीने छह हजार रुपए भरण पोषण देने का निर्देश दिया है। डिवीजन बेंच ने कहा, लिव इन में रहने के कारण विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है। यह पूरी तरह गैरकानूनी है। लिहाजा बच्चों की मां और याचिकाकर्ता की बहू गुजारा भत्ता की पात्र नहीं है।

बलौदा-भाटापारा जिले के पलारी तहसील के गांव बलौदी निवासी महिला ने तीन बच्चों की ओर से भरण पोषण की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका लगाई गई थी। इसमें बताया था कि उनका विवाह 2008 में रेशम लाल साहू से हुआ था। शादी के बाद उनके तीन बच्चे हुए। 10 साल बाद पति ने खुदकुशी कर ली थी। फैमिली कोर्ट ने छह हजार रुपए भरण पोषण देने का आदेश बच्चों के दादा को दिया था। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए बच्चों के दादा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। दादा ने अपनी याचिका में बताया कि उसके बेटे का विवाह कानूनी नहीं था। अपनी बहू के संबंध में कहा कि उसकी शादी रायपुर सरोरा में हुई थी। पति से तलाक लिए बिना ही आ गई थी और उसके बेटे के साथ रह रही थी।

ससुर के आरोपों को खारिज करते हुए बहू ने कोर्ट को बताया कि सास और ससुर उसके पति को प्रताड़ित करते थे। सास ससुर दोनों बच्चों के प्रति भी सहानुभूति नहीं रखते। पति की गुहार पर समाज की बैठक हुई थी। सामाजिक पदाधिकारियों ने ससुर को बच्चों की जिम्मेदारी उठाने और एक एकड़ जमीन भरण पोषण के लिए बेटे को देने का फैसला सुनाया था। सामाजिक पदाधिकारियों की बात को भी ससुर ने नहीं मानी। विवश होकर वह बच्चों को लेकर मायके चली गई और वहीं जीविकोपार्जन के लिए काम करने लगी। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा, हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम के तहत बच्चों को आश्रित माना जा सकता है। ससुर ने माना है कि बच्चे उनके बेटे की संतान हैं। याचिकाकर्ता की सहमति के बाद डिवीजन बेंच ने बच्चों के भरण पोषण की जिम्मेदारी देते हुए उसकी याचिका को खारिज कर दिया है। बेंच ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।

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