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Bilaspur High Court: कर्मचारियों की खबर: कर्मचारी के बैंक अकाउंट का नामिनी होता है सिर्फ अभिरक्षक, मालिक नहीं....

Bilaspur High Court: कर्मचारियों के बैंक अकाउंट के नामिनी को लेकर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला आया है। कोर्ट ने साफ कहा है, कर्मचारी के बैंक अकाउंट का नामिनी सिर्फ अकाउंट का अभिरक्षक होता है। मालिक की भूमिका नहीं रहती। वह बैंक अकाउंट का मालिक नहीं हो सकता। मृत कर्मचारी के बैंक अकाउंट में जमा 15 लाख रुपये को लेकर मृत महिला कर्मचारी की ससुर और दामाद दोनों ने दावा ठोक दिया था। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए दामाद की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है। 15 लाख की रकम को लेकर ससुर-दामाद के दावों के बीच हाई कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून का हवाला देते हुए ससुर के दावे को सही ठहराया है।

Bilaspur High Court: कर्मचारियों की खबर: कर्मचारी के बैंक अकाउंट का नामिनी होता है सिर्फ अभिरक्षक, मालिक नहीं....
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। कर्मचारियों के बैंक अकाउंट के नामिनी को लेकर हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला आया है। कोर्ट ने साफ कहा है, कर्मचारी के बैंक अकाउंट का नामिनी सिर्फ अकाउंट का अभिरक्षक होता है। मालिक की भूमिका नहीं रहती। वह बैंक अकाउंट का मालिक नहीं हो सकता। मृत कर्मचारी के बैंक अकाउंट में जमा 15 लाख रुपये को लेकर मृत महिला कर्मचारी की ससुर और दामाद दोनों ने दावा ठोक दिया था। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए दामाद की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है। 15 लाख की रकम को लेकर ससुर-दामाद के दावों के बीच हाई कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून का हवाला देते हुए ससुर के दावे को सही ठहराया है।

पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा

है कि बैंक खाते में नामांकन होने मात्र से ही किसी व्यक्ति को मृतक की जमा राशि का मालिकाना हक नहीं मिल जाता। कोर्ट ने कहा कि नामिनी सिर्फ राशि का अभिरक्षक Custodian होता है, न कि वारिस। इस फैसले के साथ ही 15 लाख रुपए पर चल रहा ससुर और दामाद का विवाद भी खत्म हो गया है।

क्या है मामला

स्वास्थ्य कार्यकर्ता रंजनादेवी प्रधान के नाम से बैंक ऑफ इंडिया, मुंगेली शाखा में 15 लाख रुपए जमा था। उनकी मृत्यु के बाद दामाद राहुल ध्रुव और ससुर लल्लाराम दोनों ने इस रकम पर दावा ठोक दिया था। ट्रायल कोर्ट ने नामांकन देखकर रकम दामाद को देने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ मृतक कर्मचारी के ससुर ने अपील पेश की। मामले की सुनवाई के बाद जिला कोर्ट्र ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में यह प्रावधान है, मृतका के पति पक्ष के वारिसों को प्रथम अधिकार प्राप्त है, और इस आधार पर ससुर लल्लाराम को मृतका के नाम बैंक में जमा राशि के भुगतान का निर्देश दिया था। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ मृतका के दामाद ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।

मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि नामिनी का अर्थ सिर्फ संरक्षण होता है। उसे प्रबंधन का अधिकार नहीं मिलता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कानूनी वारिस पर इसका असर नहीं पड़ता। कोर्ट ने अपीलीय न्यायालय के आदेश को सही ठहराते हुए मृतक कर्मचारी के ससुर को बैंक में जमा राशि का उत्तराधिकारी ठहराते हुए भुगतान का निर्देश दिया है।

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