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Bilaspur High Court: इस्तीफा स्वीकार करने में बरती लापरवाही, इसलिए दे हर्जाना: हाई कोर्ट ने सरकार को दिया ये निर्देश

Bilaspur High Court: कांग्रेस शासनकाल में कांग्रेस नेता सुशील आनंद शुक्ला को राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ भाड़ा नियंत्रण अधिकरण के सदस्य के पद पर नियुक्त किया था। उनका कार्यकाल तीन साल का था। कार्यकाल के पहले से ही उनको पद से हटा दिया गया। हालांकि हाई कोर्ट ने राज्य शासन के इस फैसले पर स्थगन आदेश जारी कर दिया था। हाई कोर्ट से स्टे लेने के बाद सुशील आनंद शुक्ला ने दोबारा पदभार ग्रहण करने के बजाय पद से इस्तीफा दे दिया। विभागीय अधिकारियों ने उनके इस्तीफे को छह महीने विलंब से स्वीकार किया। पढ़िए कांग्रेस नेता ने क्यों हर्जाना मांगा और हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया है।

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BILASPUR HIGH COURT

By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। कांग्रेस शासनकाल में कांग्रेस नेता सुशील आनंद शुक्ला को राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ भाड़ा नियंत्रण अधिकरण के सदस्य के पद पर नियुक्त किया था। उनका कार्यकाल तीन साल का था। कार्यकाल के पहले से ही उनको पद से हटा दिया गया। हालांकि हाई कोर्ट ने राज्य शासन के इस फैसले पर स्थगन आदेश जारी कर दिया था। हाई कोर्ट से स्टे लेने के बाद सुशील आनंद शुक्ला ने दोबारा पदभार ग्रहण करने के बजाय पद से इस्तीफा दे दिया। विभागीय अधिकारियों ने उनके इस्तीफे को छह महीने विलंब से स्वीकार किया। सुशील आनंद शुक्ला ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कहा कि याचिकाकर्ता के इस्तीफे को स्वीकार करने में विभागीय अधिकारियों ने छह महीने विलंब कर दिया है। याचिकाकर्ता पेशे से वकील हैं, इस्तीफा स्वीकार करने में हुए विलंब के कारण वे इस दौरान प्रैक्टिस भी नहीं कर पाए। उनको आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। लिहाजा याचिकाकर्ता को उस तिथि की वेतन,भत्ता और अन्य सुविधाएं दी जाए।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप दुबे ने सिंगल बेंच के समक्ष पैरवी करते हुए कहा है कि 18 अगस्त 2021 को याचिकाकर्ता सुशील कुमार शुक्ला को छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिकरण का सदस्य नियुक्त किया गया था। 29.नवबंर.2021 को सचिव आवास एवं पर्यावरण विभाग ने याचिकाकर्ता को उक्त पद पर नियुक्ति के संबंध में पत्र भेजा। 20 दिसंबर 2023 को याचिकाकर्ता को उक्त पद से हटा दिया गया। 21 दिसंबर 2023 को रजिस्ट्रार छत्तीसगढ़ किराया अधिकरण ने एक आदेश जारी कर याचिकाकर्ता की सेवा तीन वर्ष की सेवा पूरी किए बिना ही समाप्त कर दी गई।

छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिनियम, 2011 के प्रावधानों के अनुसार छत्तीसगढ़ भाड़ा नियंत्रण अधिकरण (सदस्यों की नियुक्ति, योग्यता एवं कार्यकाल) नियम, 2016 के अनुसार उक्त पद पर याचिकाकर्ता का कार्यकाल 03 वर्ष की अवधि अर्थात 31 अगस्त 2021 से 30 अगस्त 2024 तक निर्धारित है। उक्त निष्कासन आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की थी। 08 जनवरी .2024 को हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर 2023 के राज्य शासन के आदेश के प्रभाव और संचालन पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ता को छग किराया नियंत्रण अधिकरण के सदस्य के रूप में अपने कर्तव्य, कार्य का निर्वहन जारी रखने की अनुमति दी थी। लेकिन उक्त पद पर कार्यभार ग्रहण करने के बजाय 09. जनवरी 2024 को याचिकाकर्ता ने रजिस्ट्रार के समक्ष अपना इस्तीफा प्रस्तुत कर दिया। जिसे 05 जून 2024 को स्वीकार कर लिया गया है। हालांकि, विभाग ने गलती से उनके इस्तीफे को 05 जून.2024 के बजाय 09.जनवरी 2024 की तिथि से स्वीकार कर लिया है।

पांच महीने नहीं कर पाया प्रैक्टिस, आर्थिक रूप से उठाना पड़ा नुकसान

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप दुबे ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता पेशे से अधिवक्ता हैं। उनके इस्तीफे को देर से स्वीकार करने के कारण, 09.जनवरी 2024 से 05. जून 2024 तक अधिवक्ता के रूप में कार्य नहीं कर सके, इसलिए उन्हें नुकसान हुआ। अधिवक्ता दुबे ने कोर्ट से आग्रह करते हुए कहा कि 05.जून 2024 और 18 जून 2024 के आक्षेपित आदेशों को 09.जनवरी 2024 की तिथि से याचिकाकर्ता के इस्तीफे की सीमा तक रद्द किया जाए और संबंधित अधिकारी को निर्देश जारी किया जाए कि वह याचिकाकर्ता को वेतन, मानदेय, टीए, डीए और अन्य सभी देय राशि का भुगतान करे, जो नवंबर, 2023 से जून, 2024 तक का भुगतान नहीं किया गया है।

राज्य शासन ने ये कहा

सामान्य प्रशासन विभाग ने 15 दिसंबर 2023 के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य में की गई सभी राजनीतिक नियुक्तियों को समाप्त करने का निर्देश जारी किया है। उक्त निर्देश के अनुपालन में 20 दिसंबर 2023 के आदेश के तहत, याचिकाकर्ता की सेवा छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिकरण के सदस्य के पद से तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी गई है।

08 जनवरी 2024 के आदेश के तहत, हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिकरण के सदस्य के पद पर बनाए रखने का निर्देश दिया है। 08 जनवरी 2024 के आदेश के अनुसरण में, याचिकाकर्ता संबंधित प्राधिकारी के समक्ष 09 जनवरी 2024 को उपस्थित हुआ और उक्त पद पर कार्यभार ग्रहण करने के बजाय, उसने अपना त्यागपत्र प्रस्तुत कर दिया है। चूंकि, छत्तीसगढ़ राज्य में 16 मार्च 2024 से 04 मई 2024 तक आचार संहिता प्रभावी था, इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं किया गया था, लेकिन बाद में 05 जून 2025 को, याचिकाकर्ता का 09 जनवरी 2024 को दिया गया त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया और इसकी सूचना याचिकाकर्ता को 18 जून 2024 को दे दी गई है।

राज्य शासन के अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वयं 09 जनवरी .2024 को छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिकरण के सदस्य पद से त्यागपत्र दे दिया था और वर्तमान याचिका में, उन्होंने 09 जनवरी 2024 से 05 जून 2024 के आक्षेपित आदेश तक कार्यालय सेवा विस्तार का अनुरोध किया है, जो स्वयं याचिकाकर्ता की दुर्भावनापूर्ण मंशा को दर्शाता है।

ये है मामला

18 अगस्त 2021 को याचिकाकर्ता को छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिकरण के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था और छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिनियम, 2011 और छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिकरण (सदस्यों की नियुक्ति, योग्यता और कार्यकाल) नियम, 2016 के प्रावधान के अनुसार, उक्त पद पर याचिकाकर्ता का कार्यकाल 03 वर्ष की अवधि के लिए निर्धारित है, अर्थात, 31अगस्त 2021 से 30 अगस्त 2024 तक, हालांकि, रिट याचिका दायर करने से पहले अवधि बीत चुकी है।

यह भी निर्विवाद है कि 08. जनवरी 2024 के आदेश के तहत, इस न्यायालय ने 20 दिसंबर 2023 के आदेश के प्रभाव और संचालन पर रोक लगा दी है और याचिकाकर्ता को छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण के सदस्य के रूप में अपने कर्तव्य/कार्य का निर्वहन जारी रखने की अनुमति दी है, हालांकि, उक्त पद पर शामिल होने के बजाय, याचिकाकर्ता ने संबंधित रजिस्ट्रार के समक्ष 09 जनवरी 2024 को अपना इस्तीफा प्रस्तुत किया है और 09 जनवरी 2024 से अपने इस्तीफे की स्वीकृति तक अर्थात 05 जून 2024 तक उक्त पद पर कभी काम नहीं किया है।

इसलिए नहीं मिलेगा मौद्रिक लाभ

कोर्ट ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित कानून के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि यह कानून सुस्थापित है कि त्यागपत्र उसकी स्वीकृति की तिथि से प्रभावी माना जाता है। वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने 09. जनवरी .2024 को संबंधित रजिस्ट्रार के समक्ष अपना त्यागपत्र प्रस्तुत किया था, जिसे 05 जून 2024 को स्वीकार कर लिया गया है। हालांकि, विभाग ने उनका इस्तीफा 05. जून 2024 के बजाय 09. जनवरी 2024 की तारीख से स्वीकार किया है, इसलिए, यह कानून की नजर में अस्थिर है।

याचिकाकर्ता ने 09.जनवरी .2024 से अपने इस्तीफे की स्वीकृति तक, अर्थात 05. जून 2024 तक, उक्त पद पर कभी काम नहीं किया, इसलिए, याचिकाकर्ता उक्त अवधि के दौरान कोई भी मौद्रिक लाभ पाने का हकदार नहीं है। लिहाजा, मांगी गई राहत अस्वीकार की जाती है।

कोर्ट ने अपने फैसले में ये कहा

मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि जहां तक याचिकाकर्ता के वकील का सवाल है कि पेशे से याचिकाकर्ता एक अधिवक्ता हैं और उनके इस्तीफे की देर से स्वीकृति के कारण, वे 09 जनवरी .2024 से 05 जून 2024 तक अधिवक्ता के रूप में काम नहीं कर सके, इसलिए उन्हें भारी नुकसान हुआ, हालांकि, रिट याचिका के अवलोकन से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने मुआवजे के अनुदान के संबंध में कोई दावा नहीं किया है, इसलिए, यह न्यायालय कोई मुआवजा देने के लिए इच्छुक नहीं है। रिट याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। 05 जून 2024 और 18 जून .2024 के आक्षेपित आदेश, याचिकाकर्ता के त्यागपत्र की सीमा तक, 09 जनवरी 2024 से निरस्त किए जाते हैं और यह माना जाता है कि उक्त पद से याचिकाकर्ता के त्यागपत्र की प्रभावी तिथि, उसके स्वीकार किए जाने की तिथि, अर्थात 05 जून 2024 है। मानदेय के भुगतान के संबंध में, याचिकाकर्ता प्राधिकारियों के समक्ष अभ्यावेदन देने के लिए स्वतंत्र होगा और बदले में, प्राधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे उसके अभ्यावेदन पर हाई कोर्ट के आदेश की प्रति प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर समुचित कार्रवाई करने करें।

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