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Bilaspur High Court: दिव्यांगजन आरक्षण का सरकार नहीं कर रही पालन: हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

Bilaspur High Court: केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2016 से दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम में बड़ा बदलाव कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार इस पर अमल ना करते वर्ष 2014 के नियमों व अधिनियमों के अनुसार दिव्यांगजनों को आरक्षण दे रही है। राज्य सरकार के इस निर्णय को चुनौती देते हुए डॉ. रितेश तिवारी ने अधिवक्ता संदीप दुबे व ज्योति चंद्रवंशी के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

Bilaspur High Court: दिव्यांगजन आरक्षण का सरकार नहीं कर रही पालन: हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर मांगा जवाब
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। संसद द्वारा पारित दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के बजाय राज्य सरकार द्वारा पुराने नियमों व अधिनियमों के तहत दिव्यांगजनों को आरक्षण देने के निर्णय को चुनौती देते हुए दोनों पैर से दिव्यांग डॉ. रितेश तिवारी ने अधिवक्ता संदीप दुबे व ज्योति चंद्रवंशी के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। डिवीजन बेंच ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस का जवाब देने के लिए चार सप्ताह की मोहलत दी है।

याचिकाकर्ता डॉ रितेश तिवारी आयुर्वेद स्नातक है और छत्तीसगढ़ में बीएल कैटेगरी के तहत नौकरी की पात्रता रखते हैं। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 1995 के अधिनियम के तहत दिव्यांगों को आरक्षण दिया जा रहा है। इस अधिनियम में तीन कैटेगर में पांच प्रकार के दिव्यांगता का उल्लेख है। इसी आधार पर चिन्हांकित तीन कैटेगरी के दिव्यांगों को ही शासकीय सेवा में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है।

अधिवक्ता संदीप दुबे ने डिवीजन बेंच को दी जानकारी

याचिकाकर्ता की ओर से डिवीजन बेंच के समक्ष पैरवी करते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने बेंच को बताया, वर्ष 2016 में पार्लियामेंट ने दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम में बड़ा बदलाव कर दिया है। आरक्षण सुविधा के लिए 17 कैटेगरी को शामिल किया है। इसमें

बहु विकलांगता, द्वारिज्म, मानसिक विकलांगता, एसिड अटैक विकलांगता, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, ब्लाइंड, बौनापन सहित इस कैटेगरी में शामिल किए गए दिव्यांजनों को आरक्षण का लाभ देने का प्रावधान है। अधिवक्ता दुबे ने डिवीजन बेंच को बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सभी नियुक्तियों में पूर्व के अधिनियम के अनुसार सिर्फ 5 प्रकार के दिव्यांगता को ही चिन्हांकित कर आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। यह पार्लियामेंट द्वारा पारित अधिनियम और बनाए गए कानून का सीधेतौर पर उल्लंघन है।

राज्य सरकार के निर्णय से दिव्यांगजनों को हो रहा है नुकसान

अधिवक्ता संदीप दुबे ने डिवीजन बेंच को बताया कि पार्लियामेंट द्वारा पारित अधिनियम का छत्तीसगढ़ में पालन नहीं किया जा रहा है। नए अधिनियम के तहत समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा भर्ती के लिए निकाले जाने वाले विज्ञापन में पदों के अनुसार दिव्यांगजनों को आरक्षण देने के लिए अब तक कमेटी का गठन नहीं किया गया है और ना ही पद चिन्हांकित किया गया है। दिव्यांगजनों को सरकारी नौकरी में आयु सीमा में भी छूट नहीं दी जा रही है। अधिवक्ता दुबे ने बताया कि रिक्त पदों को अगले वर्ष के लिए कैरी फॉरवर्ड भी नहीं किया जा रहा है। दिव्यांगजनों के साथ राज्य में भेदभाव किया जा रहा है। जिस कानून को संसद ने निरस्त कर दिया है उसके तहत छत्तीसगढ़ सरकार नौकरियों में भर्ती कर रही है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

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