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Bilaspur High Court: 100 रुपये रिश्वत का आरोप, 39 साल बाद मिटा रिश्वतखोरी का दाग, हाई कोर्ट ने सुनाया कुछ ऐसा फैसला

Bilaspur High Court: देश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन MPSRTC रायपुर के बिल सहायक को एंट्री करप्शन ब्यूरो ने 100 रुपये रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार कर चालान पेश किया था। ट्रायल कोर्ट ने एक साल की सजा और एक हजार रुपये जुर्माना किया था। ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। 39 साल बाद ही सही, याचिकाकर्ता के ऊपर लगे रिश्वतखोरी का दाग कोर्ट के फैसले से मिट गया है। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।

CG Highcourt News
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur High Court: बिलासपुर। बिल पास करने के एवज में 100 रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को एक साल की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए बिल सहायक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। तब से लेकर पूरे 39 साल यह मामला चला। लंबे अरसे बाद ही सही याचिकाकर्ता बिल सहायक पर लगे घूसखोरी का दाग अब मिट गया है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है, शिकायतकर्ता पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि आरोपी ने रिश्वत मांगी या स्वीकार की। मौखिक के अलावा दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी आरोप सिद्ध नहीं कर पाया है।

मध्यप्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन MPSRTC रायपुर के बिल सहायक रामेश्वर प्रसाद अवधिया पर बिल पास कराने के एवज में 100 रुपए रिश्वत मांगने का आरोप था। यह आरोप निगम के ही एक कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा ने लगाया था।

रायपुर के बिल असिस्टेंट को लोकायुक्त ने 50-50 रु. के नोट के साथ पकड़ा था। आरोप के अनुसार वर्ष 1981 से 1985 तक का बकाया बिल (एरियर) पास करने रामेश्वर प्रसाद ने उससे 100 रुपए रिश्वत मांगी। इसकी शिकायत कर्मचारी ने लोकायुक्त को दर्ज कराई थी।

ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ कर्मचारी की अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, आरोपी ने रिश्वत मांगी या रिश्वत स्वीकार की यह साबित नहीं हुआ। मौखिक, दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य आरोप को सिद्ध नहीं कर सके। कोर्ट ने कहा कि 1947 और 1988 के भ्रष्टाचार निवारण कानूनों में अंतर है। नए अधिनियम के अनुरूप साक्ष्य न होने पर दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए अवधिया को बरी कर दिया।

लोकायुक्त की टीम ने ट्रैप के लिए शिकायतकर्ता को 50-50 रुपए के कैमिकल लगे नोट दिया था। लोकायुक्त ने अवधिया को रंगे हाथों पकड़कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। वर्ष 2004 में ट्रायल कोर्ट ने अवधिया को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 व 13(1) (डी) सहपठित 13(2) के तहत एक साल जेल की सजा सुनाई। साथ ही 1000 रुपए जुर्माना भी लगाया। हाई कोर्ट के फैसले से अब जाकर याचिकाकर्ता को राहत मिली है।

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