Bastar Dussehra 2025 : प्रधानमंत्री मोदी भी देख सकते हैं हमारे बस्तर दशहरा की अनोखी परम्पराएं, जानिए बिना राम-रावण के कैसे होती है "बस्तर दशहरा"
Bastar Dussehra 2025 : सांसद कश्यप ने विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री को औपचारिक आमंत्रण दिया

Prime Minister Modi may also be a part of Bastar Dussehra : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हो सकते हैं. बस्तर सांसद महेश कश्यप ने इस बस्तर दशहरा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रण दिया है. उन्होंने अपनी धर्मपत्नी चंपा कश्यप और सुपुत्री क्षमता कश्यप के साथ नई दिल्ली में सांसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सौजन्य मुलाकात की। इस मौके पर सांसद कश्यप ने विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री को औपचारिक आमंत्रण दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने इस निमंत्रण को आत्मीयता के साथ स्वीकार करते हुए बस्तर दशहरे में समय निकालकर शामिल होने का आश्वासन दिया।
मुलाकात के दौरान सांसद कश्यप ने प्रधानमंत्री को बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर और केंद्र सरकार द्वारा संचालित विकास कार्यों के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने एक स्मृति चिन्ह भेंट किया और कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पिछले ग्यारह वर्षों में भारत ने अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की हैं। गौरतलब है की छत्तीसगढ़ के वनांचल बस्तर में दशहरा पर किसी को राम और रावण से कोई सरोकार नहीं। यहां न रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही रामलीला होती है। यह दशहरा 75 दिन तक चलता है। इसमें कई रस्में होती हैं और 13 दिन तक दंतेश्वरी माता समेत अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है।
हरेली अमावस्या से शुरुआत
75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है। इसमें सभी वर्ग, समुदाय और जाति-जनजातियों के लोग हिस्सा लेते हैं। इस पर्व में राम-रावण युद्ध की नहीं बल्कि बस्तर की मां दंतेश्वरी माता के प्रति अगाध श्रद्धा झलकती है। इस पर्व की शुरुआत हरेली अमावस्या को माचकोट जंगल से लाई गई लकड़ी (ठुरलू खोटला) पर पाटजात्रा रस्म पूरी करने के साथ होती है। इसके बाद बिरिंगपाल गांव के ग्रामीण सीरासार भवन में सरई पेड़ की टहनी को स्थापित कर डेरीगड़ाई रस्म पूरी करते हैं। इसके बाद विशाल रथ निर्माण के लिए जंगलों से लकड़ी लाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। झारउमरगांव व बेड़ाउमरगांव के ग्रामीणों को रथ निर्माण की जिम्मेदारी निभाते हुए दस दिनों में पारंपरिक औजारों से विशाल रथ तैयार करना होता है।
इस पर्व में काछनगादी की पूजा का विशेष प्रावधान है। रथ निर्माण के बाद पितृमोक्ष अमावस्या के दिन ही काछनगादी पूजा संपन्न की जाती है। इस पूजा में मिरगान जाति की बालिका को काछनदेवी की सवारी कराई जाती है। ये बालिका बेल के कांटों से तैयार झूले पर बैठकर रथ परिचालन व पर्व को सुचारु रूप से शुरू करने की अनुमति देती है। दूसरे दिन गांव आमाबाल के हलबा समुदाय का एक युवक सीरासार में 9 दिनों की निराहार योग साधना में बैठ जाता है। ये पर्व को निर्विघ्न रूप से होने और लोक कल्याण की कमाना करता है। इस दौरान हर रोज शाम को दंतेश्वरी मां के छत्र को विराजित कर दंतेश्वरी मंदिर, सीरासार चौक, जयस्तंभ चौक व मिताली चौक होते रथ की परिक्रमा की जाती है।
रथ में माईजी के छत्र को चढ़ाने और उतारने के दौरान बकायदा सशस्त्र सलामी दी जाती है। भले ही वक्त बदल गया हो और साइंस ने तरक्की कर ली हो पर आज भी ये सबकुछ पारंपरिक तरीके से होता है। इसमें कहीं भी मशीनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। पेड़ों की छाल से तैयार रस्सी से ग्रामीण रथ खींचते हैं। इस रस्सी को लाने की जिम्मेदारी पोटानार क्षेत्र के ग्रामीणों पर होती है। इस पर्व के दौरान हर रस्म में बकरा, मछली व कबूतर की बलि दी जाती है। वहीं अश्विन अष्टमी को निशाजात्रा रस्म में कम से कम 6 बकरों की बलि आधी रात को दी जाती है। इसमें पुजारी, भक्तों के साथ राजपरिवार सदस्यों की मौजूदगी होती है।
रस्म में देवी-देवताओं को चढ़ाने वाले 16 कांवड़ भोग प्रसाद को तोकापाल के राजपुरोहित तैयार करते हैं। जिसे दंतेश्वरी मंदिर के समीप से जात्रा स्थल तक कावड़ में पहुंचाया जाता है। निशाजात्रा का दशहरा के दौरान विशेष महत्व है। इस परंपरा को कैमरे में कैद करने विदेशी पर्यटकों में भी उत्साह होता है।
24 जुलाई शुरू हुआ, 7 अक्टूबर तक अलग-अलग कार्यक्रम
24 जुलाई- पाट जात्रा पूजा विधान
5 सितंबर- डेरी गड़ाई पूजा विधान
21 सितंबर- काछनगादी पूजा विधान
22 सितंबर- कलश स्थापना पूजा विधान
23 सितंबर- जोगी बिठाई पूजा विधान
24 से 29 सितंबर- प्रतिदिन नवरात्र पूजा एवं रथ परिक्रमा पूजा विधान
29 सितंबर- बेल पूजा विधान
30 सितंबर- महाअष्टमी पूजा विधान एवं निशा जात्रा पूजा विधान
1अक्टूबर- कुंवारी पूजा विधान, जोगी उठाई पूजा विधान एवं मावली परघाव
2 अक्टूबर- भीतर रैनी पूजा विधान एवं रथ परिक्रमा पूजा विधान
3अक्टूबर- बाहर रैनी पूजा विधान एवं रथ परिक्रमा पूजा विधान
4 अक्टूबर- काछन जात्रा पूजा विधान के पश्चात दोपहर में मुरिया दरबार का आयोजन
5 अक्टूबर- कुटुम्ब जात्रा पूजा विधान में ग्राम्य देवी-देवताओं की विदाई
7 अक्टूबर- मावली माता की डोली की विदाई पूजा विधान के साथ ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व सम्पन्न होगा।
