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Bastar: बस्तर में सिर्फ नक्सली नहीं, इन खासियतों को आप नहीं जानते, पढ़िये NPG की इस रिपोर्ट को...आप भी चौंक जाएंगे

Bastar: भौगोलिक सीमा की बात करें, तो बस्तर संभाग बेल्जिमय और इजराइल जैसे कई देशों से बड़ा है। इसमें दो लोकसभा सीटें आती हैं। बस्तर और कांकेर। बस्तर में 19 अप्रैल को वोटिंग है तो कांकेर में 26 अप्रैल को। बस्तर देश की गिनी-चुनी रियासतों में शामिल रही, जहां अंग्रेजों कब्जा नहीं कर पाए। बस्तर का घोटुल भी बड़ा चर्चित रहा है। लिव इन रिलेशन सरीखा इस कल्चल मीट में युवा और युवतियां नाचते-गाते कुछ दिन बिताते थे। फिर अगर दोनों में समझ बैठ गई, तो उनकी शादी करा दी जाती थी।

Bastar: बस्तर में सिर्फ नक्सली नहीं, इन खासियतों को आप नहीं जानते, पढ़िये NPG की इस रिपोर्ट को...आप भी चौंक जाएंगे
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By Sandeep Kumar

अनिल तिवारी

Bastar: जगदलपुर/ रायपुर। सिर पर कौड़ियों वाला सिंगमौर, हाथ में तीर-धनुष या छोटा फरसा, आधे बदन में कपड़ा, आधे उघड़ा, बिना कपड़ों के बच्चे, एल्युमिनियम के बर्तन। कुछ ऐसी ही तस्वीर हमारे जेहन में कौंध जाती है, जब हम बस्तर का नाम लेते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य बनने के करीब-करीब ढाई दशक बाद ये तस्वीरें बहुत कुछ बदल गई हैं। बस्तर के बीहड़ वाले गांवों में भी अब लेंटर वाले पक्के मकान दिख जाते हैं। नागिन की तरह घूमती हुई सड़कें कच्ची ही सही, मगर हर छोटे-बड़े गांव तक नदी-नाले पार कर पहुंच जाती हैं। बस्तर एक बार फिर सुर्खियों में है। क्योंकि नक्सल प्रभावित इस इलाके में आम चुनाव होने जा रहे हैं। बस्तर लोकसभा सीट के लिए पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होना है। बस्तर राज्य का एक महत्वपूर्ण संभागीय और जिला मुख्यालय है। यहां तमाम बड़े सरकारी, गैर सरकारी दफ्तर हैं। बस्तर लोकसभा सीट को आदिवासी बाहुल्य इलाका है। छत्तीसगढ़ की यह लोकसभा सीट नक्सलवाद से प्रभावित है। यहां की करीब 60 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासी है। बस्तर घने जंगलों से सराबोर इलाका है, यही कारण है कि आदिवासियों की एक बड़ी जनजाति जंगलों में भी निवास करती है। बस्तर क्षेत्र से आने वाले लोग अपनी संस्कृति, कला, पर्व और सहज जीवन शैली के लिए देश-विदेश में मशहूर हैं। बस्तर क्षेत्र में जलप्रपात को देखने के लिए पर्यटकों का जमावड़ा भी लगा रहता है।

प्रसिद्ध है बस्तर बीयर सल्फी

छत्तीसगढ़ के बस्तर में हर गांव, हाट, बाजार में सल्फी आसानी से मिल जाती है। सल्फी एक तरह की बीयर ही है, जो बस्तरिया संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। सल्फी दरअसल, केरियोटा यूरेन्स यानी ताड़ कुल का एक पुष्पधारी पेड़ है। इससे बस्तरिया एक मादक रस बनाते हैं। एक दिन में 20 लीटर तक रस देने वाले इस पेड़ का बस्तर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। जब बेटियों की शादी आम बस्तरियों से की जाती है तो दहेज में सल्फी का पेड़ दिया जाता है। वहीं जिसकी बेटी नहीं होती, उसके भांजे को सल्फी का झाड़ देने की परंपरा भी है।

70 फीसदी भाग जनजातीय

बस्तर की कुल आबादी का लगभग 70 फीसदी भाग जनजातीय है। यहां जंगल अधिक हैं जिनमें गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियां निवास करती हैं। यहां के आदिवासी जंगलों में लकड़ियां, लाख, मोम, शहद, चमड़ा साफ करने तथा रंगने के पदार्थ आदि इकट्ठे करते हैं। वनोपज संग्रहण में तसर, तेंदू पत्ता, लाख, धूप, साल बीज, इमली, अमचूर, कंद, मूल औषधियां प्रमुख हैं। हमेशा से बस्तर के गांवों में यही उनकी आजीविका का भी मुख्य साधन रहा है। यहां धान, मक्का, गेहूं के अलावा ज्वार, कोदो, कुटकी, चना, तुअर, उड़द, तिल, राम तिल, सरसों की खेती भी की जाती है।

बस्तर का भूगोल

कभी दक्षिण कौशल नाम से विख्यात बस्तर 6596.90 वर्ग किलोमीटर में फैला है। केरल जैसे राज्य और बेल्जियम, इज़राइल जैसे देशों से बड़ा। 1999 से पहले तक बस्तर सिर्फ एक जिला था। मगर 1999 में इसे विभाजित कर कांकेर और दंतेवाड़ा जिला बना। फिर बाद में कोंडागांव, सुकमा, बीजापुर भी जिले बनाए गए। बस्तर के उत्तर में दुर्ग, उत्तर-पूर्व में रायपुर, पश्चिम में चांदा, पूर्व में कोरापुट तथा दक्षिण में पूर्वी गोदावरी जिले हैं। ये पहले एक देशी रियासत था। इसका अधिकांश भाग कृषि के अयोग्य है। जगंलों में टीक तथा साल के पेड़ प्रमुख हैं। यहाँ की स्थानांतरित कृषि में धान तथा कुछ मात्रा में ज्वार, बाजरा पैदा कर लिया जाता है। इंद्रावती यहाँ की प्रमुख नदी है। चित्रकोट आदि कई झरने भी हैं। रामायणकालीन दंडकारण्य के पठार पर स्थित बस्तर लोकसभा सीट नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, जहां हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं। केंद्र की पैरामिलिट्री फोर्स ने नक्सलियों की मांद में घुसकर घेराबंदी कर दी है। यहां की कुल जनसंख्या करीब 22 लाख है। यह आदिवासी बहुल है और यहां की आबादी का करीब 70 फीसद हिस्‍सा आदिवासियों का है। इंद्रावती के मुहाने पर बसा यह इलाका वनीय क्षेत्र है। यहां पर टीक तथा साल के पेड़ बड़ी मात्रा में हैं। इस इलाके की खूबसूरती यहां के झरने और बढ़ा देते हैं। यहां खनिज पदार्थों में लोहा, अभ्रक सबसे ज्यादा मिलता है। बस्तर जिला घने जंगलों, ऊँची, पहाड़ियों, झरनों, गुफाओ एवं वन्य प्राणियों से भरा हुआ है। बस्तर महल, बस्तर दशहरा ,दलपत सागर, चित्रकोट जलप्रपात, तीरथगढ़ जलप्रपात, कुटुमसर और कैलाश‌ गुफ़ा आदि पर्यटन के मुख्य केंद्र हैं द्य

संस्कृति एवं कला

बस्तर अपनी परंपरागत कला-कौशल के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। कभी उनके कुटीरों से साप्ताहिक हाट-बाजारों तक ही सीमित रहने वाली उनकी कला आज देश की राजधानी दिल्ली तक मशहूर है। काष्ठ कला, बांस कला, मृदा कला, धातु कला में विभाजित उनकी ये कला बिना किसी उत्कृष्ट मशीनों के उपयोग के रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले उपक्रमों से ही बनाये जाते हैं। लकड़ी के फर्नीचरों में बस्तर की संस्कृति, त्योहारों, जीव-जन्तुओं, देवी-देवताओं की कलाकृति बनाना, देवी देवताओं की मूर्तियां, साज सज्जा की कलाकृतियां हर किसी को भाती हैं। बांस की शीखों से कुर्सियां, बैठक, टेबल, टोकरियाँ, चटाई, और घरेलू साज-सज्जा के सामान तैयार होते हैं। धातु कला में तांबे और टिन मिश्रित धातु के ढलाई किये हुए कलाकृतियां बनाई जाती हैं।

तीज-त्यौहार का बादशाह है बस्तर

ओडिशा से शुरू होकर दंतेवाड़ा की भद्रकाली नदी में समाहित होने वाली करीब 240 किलोमीटर लंबी इंद्रावती नदी बस्तर के लोगों के लिए आस्था और भक्ति की प्रतीक है। दंतेवाड़ा से लेकर संभाग मुख्यालय जगदलपुर तक करीब तीन महीने तक मनाया जाने वाला ’बस्तर दशहरा’ अपने आप में अनूठा है। हरियाली अमावस्या से मुरिया दरबार की रस्म तक होने वाला बस्तर दशहरा विदेशों से भी पर्यटक भी बस्तर दशहरा देखने आते हैं। इसके अलावा चैतराई, आमाखानी, अकती, बीज खुटनी, हरियाली, इतवारी, नवाखाई आदि बस्तर के आदिवासियों के मुख्य त्यौहार हैं। आदिवासी समुदाय एकजुट होकर डोकरीदेव, ठाकुर दाई, रानीमाता, शीतला, रावदेवता, भैंसासुर, मावली, अगारमोती, डोंगर, बगरूम आदि देवी देवताओं को पान फूल, नारियल, चावल, शराब, मुर्गा, बकरा, भेड़, गाय, भैंस, आदि देकर अपने-अपने गांव-परिवार की खुशहाली के लिए मन्नत मांगते है।

कभी 36 बोलियां थी बस्तर में

बस्तर का इतिहास खंगालने से पता चलता रहै कि कभी बस्तर में 36 बोलियां थीं। लेकिन अब गोंडी, हल्बी, भतरी, धुरवी, परजी, माड़ी जैसी गिनी-चुनी बोलियां ही बची हैं। बस्तर की कुछ बोलियां संकटग्रस्त हैं और इनके संरक्षण व संवर्धन की जरूरत है। बस्तर की दो दर्जन से अधिक बोलियां विलुप्त हो गई हैं। वर्तमान में बस्तर की कम से कम 20 जनजातियों की अपनी बोली विलुप्त हो चुकी है। वस्तुतः हल्बी और भतरी बोलियों का प्रभुत्व इतना रहा कि दूसरी बोलियां इनमें समाहित हो गईं। अब बस्तर में प्रमुख रूप से तीन बोलियां हैं। गोंडी सबसे बड़े भूभाग की बोली है, जबकि हल्बी बस्तर की जनजातियों की संपर्क भाषा रही है।

विश्वप्रसिद्ध है घोटूल और मृतक स्तम्भ

बस्तर दशहरा के अलावा यहां दूसरी जो सबसे ज्यादा चर्चित रस्म है, वो है ’घोटुल’। माड़िया जनजाति में घोटुल को मनाया जाता है। घोटुल गांव के किनारे बनी एक मिट्टी की झोपड़ी होती है। कई बार घोटुल में दीवारों की जगह खुला मण्डप होता है। घोटुल में आने वाले लड़के-लड़कियों को अपना जीवनसाथी चुनने की छूट होती है। घोटुल को सामाजिक स्वीकृति भी मिली हुई है। इसे आजकल के लिव इन रिलेशन जैसे समझ सकते हैं। जब युवा अपना जीवनसाथी चुनने से पहले दोनों आपसी रजामंदी से कुछ दिनों के लिए साथ रहते हैं। फिर आगे साथ जिंदगी बिताना है, या नहीं, इसका फैसला करते हैं। इसी तरह बस्तर की एक और अनोखी परम्परा है जिसमें परिजन के मरने के बाद उसका स्मारक बनाया जाता है। इसे ’मृतक स्तम्भ’ कहते हैं। मारिया और मुरिया जनजाति में मृतक स्तम्भ बनाने की परंपरा है। जिसे स्थानीय भाषा में गुड़ी भी कहा जाता है।

बस्तर का इतिहास

रामायण में दंडकारण्य और महाभारत में कोसाला साम्राज्य का हिस्सा रहा बस्तर का इतिहास काफी गौरवशाली है। अंतिम काकातिया राजा प्रताप रुद्र देव के भाई अन्नाम देव ने वारंगल को छोड़ दिया। जिसके बाद 1324 ईस्वी के करीब बस्तर रियासत की स्थापना हुई। महाराजा अन्नम देव के बाद महाराजा हमीर देव, बैताल देव, महाराजा पुरुषोत्तम देव, महाराज प्रताप देव, दिकपाल देव, राजपाल देव ने शासन किया। बस्तर के अंतिम महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव ने 1936 से 1948 के बीच शासन किया। 1948 में भारत के राजनीतिक एकीकरण के दौरान बस्तर रियासत का भारत में विलय हुआ। ये कुछ गिने चुने जगहों में से एक है जहाँ अंग्रेज अपना राज स्थापित नहीं कर पाए।

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

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