UPSC: बिना यूपीएससी क्लियर किए भी आईएएस बना जा सकता है, पढ़िये इसके तीन तरीके...
UPSC: आईएएस देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस मानी जाती है। मगर इसमें सलेक्शन इतना कठिन होता है, इससे आप समझ सकते हैं कि 10 लाख आवेदनों में से लगभग एक हजार ही सलेक्ट हो पाते हैं। बाकी नौ लाख 99 हजार अभ्यार्थियों के खाते में निराशा आती है।
UPSC: एनपीजी ब्यूरोक्रेसी डेस्क
यूपीएससी यानी लोक सेवा आयोग। यह आयोग ऑल इंडिया सर्विस की परीक्षाएं आयोजित करता है। इनमें आईएएस, आईपीएस समेत 24 परीक्षाएं होती हैं। देश की इस सबसे बड़ी परीक्षा उतीर्ण किए अफसरों का ठाठ-बाट और रुतबा देखकर हर युवा का बचपन से सपना होता है, इनमें से कोई एग्जाम वह क्लियर कर लें तो सपने को पंख लगने के साथ ही जिंगदी संवर जाएगी। मगर तीन चरणों में होने वाली इस परीक्षा का स्टैंडर्ड इतना हाई होता है कि 10 लाख आवेदनों में से लगभग हजार का ही सलेक्शन हो पाता है। इसमें कई बार वैंकेंसी के हिसाब से पोस्ट 50-100 उपर नीचे होता रहता है। मगर मोटे तौर पर आवेदन करीब 10 लाख आते हैं।
यूपीएससी का पहला स्टेप है, प्रारंभिक परीक्षा। इसमें पास होने के बाद मेन एग्जाम होता है। ये दोनों परीक्षाएं लिखित होती है। फिर आता है फायनल परीक्षा इंटरव्यू का। बहुत सारे लोग इंटरव्यू तक पहुंचकर सलेक्ट नहीं हो पाते। इसके बाद नंबर के आधार पर आईएएस, आईपीएस और बाकी 24 सर्विस एलॉट किए जाते हैं। हालांकि, यूपीएससी के अलावे भी आईएएस बनने के तीन रास्ते हैं। आइये आपको बताते हैं, वो कौन से रास्ते हैं...
पहला डिप्टी कलेक्टर से
राज्य प्रशासनिक सेवा याने राप्रेस के अफसर भी प्रमोशन से आईएएस बनते हैं। इसके लिए वैसे तो सात-से-आठ साल की सर्विस होनी चाहिए। मगर आमतौर पर इसमें 14 से 15 साल लग जाते हैं। दरअसल, हर राज्य में कुल कैडर का 33 फीसदी वैकेंसी डिप्टी कलेक्टर से आईएएस बनने के लिए होती है। इसके तहत राज्य सरकार एक पद के खिलाफ तीन नामों की सूची यूपीएससी को भेजती है। यूपीएससी फिर डीपीसी की तारीख तय करती है। इसकी बैठक यूपीएससी दिल्ली में होती है। इसमें संबंधित राज्य के चीफ सिकरेट्री और एसीएस लेवल का एक अफसर मेम्बर होता है। यूपीएससी चेयरमैन इसकी अध्यक्षता करते हैं। डीओपीटी इसके सदस्य होते हैं। इस हाई प्रोफाइल मीटिंग में आईएएस प्रमोशन पर मुहर लगाई जाती है। राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बनने के लिए पहली शर्त होती है गोपनीय चरित्रावली क क्षेणी का हो। कोई अगर डीई या शिकायत तो फिर बिना उसे क्लियर किए आईएएस अवार्ड नहीं होता। इसके बाद फिर आती है उम्र सीमा। इसके लिए अधिकतम 55 साल आयु होना चाहिए।
दूसरा एलॉयड सर्विस
सभी राज्यों में एलायड सर्विस के तहत कुल कैडर का तीन फीसदी सीटें आरक्षित होती हैं। हालांकि, आईएएस लॉबी कई बार इसमें आधा-एक परसेंट की डंडी मारती रहती है। फिर आईएएस बनने का ये भी एक रास्ता है। इसके तहत राज्य सेवा में कार्यरत क्लास टू के वे अधिकारी इसके पात्र होते हैं, जो पीएससी से सलेक्ट हुए होते हैं। निर्माण और इंजीनियरिंग सर्विस वालों को छोड़ सभी विभागों के क्लास टू के अफसर एलायड सर्विस से आईएएस बन सकते हैं। इसके लिए राज्य सरकारें समय-समय पर वैकेंसी निकालती रहती हैं। इसमें सबसे पहले राज्य स्तर पर चीफ सिकरेट्री की अध्यक्षता में बनी कमेटी आवेदनों की स्कूटनी कर लिस्ट तैयार करती है। फिर उसे यूपीएससी को भेजा जाता है। एलायड सर्विस से भी उसी तरह आईएएस बनते हैं, जिस तरह डिप्टी राप्रसे को आईएएस बनाने की प्रक्रिया होती है। यूपीएससी चेयरमैन की अध्यक्षता में बैठक होती है, जिसमें डीओपीटी सिकरेट्री, राज्य के चीफ सिकरेट्री और सीनियर एसीएस इसमें शामिल होते हैं।
तीसरा लेटरल इंट्री
सिविल सेवा में चुने जाने का तीसरा तरीका लेटरल एंट्री स्कीम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरूआत की है। हालांकि, इसे आईएएस नहीं कहा जाता। मगर इसमें चुने जाने पर सीधे ज्वाइंट सिकरेट्री पद पर पोस्टिंग मिलती है। भारत सरकार में ज्वाइंट सिकरेट्री का पद विशुद्ध तौर पर आईएएस के लिए रिजर्व होता था। मगर मोदी सरकार ने इसमें बदलाव किया है। इसके लिए प्राइवेट कंपनी में काम करने वाला 40 साल तक का कोई भी अधिकारी अप्लाई कर सकता है। उसके पास कम संबंधित फील्ड में कम से कम 15 साल काम करने का अनुभव होना चाहिए। आवेदन के बाद भारत सरकार के कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी के सामने इंटरव्यू देना होता है। लेटरल एंट्री से नियुक्ति तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर होती है.