Power of SP & IG: आईजी पद में बड़ा होता है मगर रुतबा और पावर एसपी का ज्यादा क्यों? जानिये इसके कारण
Power of SP & IG: आईजी कई जिलों का प्रमुख होता है और एसपी सिर्फ एक जिले का। फिर भी रुतबा के मामले में एसपी बनने का आकर्षण ज्यादा होता है। आईपीएस अफसर नहीं चाहते कि उनका आईजी में प्रमोशन हो।

Power of SP & IG: रायपुर। भारतीय पुलिस ढांचे में पुलिस को नियंत्रित करने के लिए तीन लेवल बनाए गए हैं। जिलों में एसपी, पुलिस रेंज में आईजी और पुलिस मुख्यालय में डीजीपी। डीजीपी याने डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस जिसे हिन्दी में पुलिस महानिदेशक कहा जाता है। डीजीपी विभाग के मुखिया होने के कारण सबसे अधिक पावरफुल होते हैं। उनके बाद फील्ड पोस्टिंग में आईजी आते हैं।
जानिये आईजी के बारे में
आईजी याने इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस। इसे हिन्दी में पुलिस महानिरीक्षक भी कहा जाता है। भारतीय पुलिस सिस्टम में जिलों के उपर पुलिस रेंज बनाया गया है। आईजी पुलिस रेंज के हेड होते हैं। एक पुलिस रेंज में सरकार राज्य की भौगोलिक और लॉ एंड ऑर्डर की दृष्टि से जिलों को शामिल करती है। दो दशक पहले तक अपराध कम होते थे इसलिए रेंज का एरिया काफी फैला होता था। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर पुलिस रेंज का नाम था बिलासपुर-रीवा पुलिस रेंज। याने बिलासपुर रेंज का दायरा रीवा तक पसरा था। छत्तीसगढ़ बन जाने के बाद अब रीवा तो अलग हो ही गया, बिलासपुर से कटकर सरगुजा नया पुलिस रेंज बन गया।
आईजी के अधिकार
एसपी से प्रमोशन के बाद आईपीएस डीआईजी बनते हैं और इसके पांच साल बाद फिर आईजी प्रमोट होते हैं। आमतौर से पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि एसपी की तुलना में आईजी के पावर सिर्फ 30 फीसदी बच जाते हैं। चूकि आईजी के पास कई जिले होते हैं इसलिए सिस्टम में उसे अधिकारी कम कर दिए गए हैं। जिलों में अगर कोई घटना होती है तो सरकार या मुख्यमंत्री आईजी की बजाए एसपी से सीधे बात कर लेते हैं। आईजी के पास कई जिले होते हैं, इसलिए सरकार को भी लगता है कि आईजी इस समय किस जिले में हांगे, पता नहीं। फिर पुलिस सिस्टम में थानों की भूमिका अहम होती है। कोई भी कार्रवाई करनी हो...एफआईआर से लेकर गिरफ्तारी तक, थाने के टीआई इसे अंजाम देते हैं। रेंज के मुखिया भले ही आईजी होते हैं, मगर टीआई पर सीधा नियंत्रण एसपी के होते हैं। एसआई से लेकर टीआई तक के ट्रांसफर भी एसपी करते हैं। कई भले एसपी होते हैं, तो आईजी को सूचित कर देते हैं कि वे इन टीआई को हटा रहे हैं। मगर अधिकांश एसपी आईजी को सूचित करना भी मुनासिब नहीं समझते। आईजी के पास सिर्फ टीआई को सस्पेंड करने के अधिकार होते हैं। मगर इसे भी वे एसपी की नोटिस में लाकर करते हैं। क्योंकि, रिजल्ट एसपी को देना है और आईजी सीधे टीआई पर कार्रवाई कर नियंत्रण स्थापित करने लगा तो फिर बात बिगड़ने लगती है।
एसपी का जलवा आईजी से ज्यादा क्यों
आईजी को सिस्टम में इसलिए बनाया गया है कि वे पोलिसिंग पर नजर रख सकें, निगरानी कर सकें। जिलों के आपस में कोई मतभेद हो रहे हो तो उसमें समन्वय स्थापित कर सकें। मगर आईजी डे-टू-डे की वर्किंग में दखल नहीं दे सकता। आईजी साल में एक बार थानों का निरीक्षण कर लेते हैं। इसके साथ महीने में एकाध बार समीक्षा। मगर जिलों में रोज की समीक्षा, मीटिंग और कार्रवइयां पुलिस कप्तान ही करते हैं। जाहिर है, एसपी का पलड़ा भारी होगा। जिलों में कहां क्या हो रहा है...थानेदार भी एसपी को सूचित करते हैं। कोई घटना के बारे में अगर एसपी को लगता है तो वह आईजी को बता देता है। वरना, छोटे-छोटे अपराधों की जानकारी आईजी को नहीं दी जाती। इसकी वजह यह भी है कि आईजी के पास कई जिले होते हैं। अगर छोटे-छोटे क्राईम के बारे में उसे बताया जाने लगा तो फिर उसके पास कुछ और करने का टाईम ही नहीं मिलेगा।
एसपी और आईजी में टकराव क्यों?
एसपी और आईजी के अधिकारों के मामले में एक महीन रेखा है। चूकि आईजी एसपी से बड़ा होता है और उपर से अत्यधिक सक्रिय और तेज तो फिर एसपी के साथ उसका संतुलन गड़बड़ाने लगता है। कई बार ऐसा देखने में आया है कि एसपी अगर थोड़ा शरीफ या कमजोर तो आईजी भारी पड़ जाते हैं। वैसे, आमतौर पर यह स्थिति कम ही नजर आती है। अधिकांश आईजी अपने पद की गरिमा को समझते हुए उसी तरह का आचरण करते हैं। आईजी जब एसपी गिरी करते हुए सीधे थानेदारों को निर्देश देने लगते हैं...डे-टू-डे की वर्किंग में दिलचस्पी लेने लगते हैं तो फिर एसपी के साथ तकरार बढ़ने लगती है।
फिर पीएचक्यू हरकत में
एसपी और आईजी के बीच अगर समन्वय गड़बड़ाने लगता है तो फिर पुलिस मुख्यालय उसमें हस्तक्षेप करता है। पीएचक्यू चाहता है कि दोनों में संतुलन बना रहे और दोनों अपनी लक्ष्मण रेखा को पहचाने। अगर एसपी और आईजी में विवाद की स्थिति निर्मित होती है तो आदर्श कार्रवाई यह होती है कि जिसकी गल्ती होती है, उसे पहले डांट, समझाकर शांत कराया जाता है। इससे भी अगर बात नहीं बनी तो उसे हटा दिया जाता है। दूसरी स्थिति में यह होता है कि एसपी और आईजी में जिसकी राजनीतिक पौवा ज्यादा भारी होता है वह सामने वाले को हटवा देता है।