नई दिल्ली । बेनामी संपत्ति एक्ट को आज सुप्रीम कोर्ट ने रद्द करते हुए निष्प्रभावी कर दिया है। अब इसमें जेल नही जाना होगा। केंद्र सरकार ने 1 नवंबर 2016 को इसे लागू किया था। साथ ही इसे पुरानी तारीख से लागू नही किये जा सकने का भी फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया है।
बेनामी संपत्ति लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 की धारा 3 (1) में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को बेनामी संपत्ति के अंदर प्रवेश करने का कोई अधिकार नहीं है. कोई भी व्यक्ति बेनामी संपत्ति में प्रवेश नहीं कर सकता. व 1988 की धारा 3(2) में प्रावधान है कि जो भी इसके तहत दोषी पाया जाता है उसे तीन से सात साल की सजा से लेकर कुल सम्पति का 25 प्रतिशत जुर्माना वसूला जाएगा।
आज सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमणा, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हीमा कोहली की पीठ ने इस मामले पर फैसला दिया है. पीठ ने कहा है कि 1988 के एक्ट के अनुसार ही 2016 में लाए गए अधिनियम के सेक्शन 3(2) असंवैधानिक है. क्योंकि यह संविधान के आर्टिकल 20(1) का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने इस धारा को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही इसमें सजा का प्रावधान खत्म हो गया है।
बेनामी सम्पति वह सम्पति होती है जिसमे किसी और का पैसा लगा होता है पर दस्तावेज में नाम किसी और का होता है। ये नाम मात्र के मालिक होते हैं पर असली मालिक कोई और होता है। बहुत से अधिकारी, नेता अपने नाते रिश्तेदारों व करीबियों के नाम से बेनामी सम्पति बनाते हैं। जिसके निपटने के लिए यह अधिनियम लाने की बात केंद्र ने कही थी।
किस मामले में आया फैसला:-
सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी मंगलवार को जो फैसला सुनाया उसका कनेक्शन कोलकाता हाइकोर्ट के फैसले से है. दरअसल, पहले गणपति डीलकॉम मामले की सुनवाई करते हुए कोलकाता हाईकोर्ट ने यही फैसला सुनाया था. उस फैसले पर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई. सुप्रीम कोर्ट ने भी उसी फैसले को सही ठहराते हुए सजा को रद्द किया. दरअसल, इस कानून से जुड़ा संशोधन 1 नवंबर, 2016 से लागू हुआ था, लेकिन बेनामी सम्पत्ति के मामले में 2016 से पहले फंसे लोगों पर भी इसी कानून के तहत कार्रवाई की जा रही है.
अधिनियम कि धारा 3(2) बेनामी लेनदेन को अपराध घोषित करती है और इसे 3 साल से 7 साल तक के कारावास से दंडनीय बनाती है. दिसंबर 2019 में कोलकाता हाईकोर्ट ने कहा था कि बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 2016 का संशोधन पिछली तारीख से यानी रिट्रोस्पेकेट्व इफेक्ट से लागू नहीं किया जा सकता है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को लागू रखा हैं।