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Narayanpur Collector: बिना कलेक्टर का जिलाः छत्तीसगढ़ के इस जिले में 12 दिन से कोई कलेक्टर नहीं, चुनाव आयोग पर टिकी सरकार की निगाहें

Narayanpur Collector: छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग ने चुनाव आयोग से परमिशन लिए बगैर ज्वाइंट चीफ इलेक्टशन आफिसर को जिले का कलेक्टर बना दिया। मगर आयोग ने अनुमति देने से लटका दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि नारायणपुर जैसा नक्सल दृष्टि से संवेदनशील जिला 12 दिन से बिना कलेक्टर का है।

Narayanpur Collector: बिना कलेक्टर का जिलाः छत्तीसगढ़ के इस जिले में 12 दिन से कोई कलेक्टर नहीं, चुनाव आयोग पर टिकी सरकार की निगाहें
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By Sanjeet Kumar

Narayanpur Collector: रायपुर। 3 दिसंबर की आधी रात छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार ने राज्य के इतिहास की सबसे बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की थी। एक लिस्ट में 89 अफसरों को बदला गया या नई पोस्टिंग दी गई। 89 में में 19 जिलों के कलेक्टर भी शामिल थे। इनमें से 18 कलेक्टरों ने अगले दिन ही दौड़ते-भागते जाकर नए जिले में पदभार ग्रहण कर लिया। मगर एक जिले के कलेक्टर अभी भी पदभार ग्रहण नहीं कर पाए हैं।

राज्य सरकार ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय में ज्वाइंट सीईओ के पद पर कार्यरत विपीन मांझी को नारायणपुर का कलेक्टर बनाया था और नारायणपुर के कलेक्टर अजीत बसंत को कोरबा का। अजीत बसंत अगली सुबह रिलीव होकर कोरबा ज्वाईन कर लिए। कलेक्टर के साथ ही सरकार ने जिला पंचायत सीईओ का भी ट्रांसफर किया है। सीईओ भी कार्यमुक्त होकर जा चुके हैं। लिहाजा, नारायणपुर जिले में न कलेक्टर हैं और न ही जिला पंचायत सीईओ। कलेक्टर के बाद सीईओ जिले में नंबर दो होते हैं। लिहाजा, कोई कलेक्टर अगर जिले से बाहर जाता है तो सीईओ का चार्ज देता है। मगर इस समय दोनों विदा हो चुके हैं।

मांझी क्यों नहीं हुए रिलीव

विपीन मांझी प्रमोटी आईएएस हैं। आईएएस अवार्ड होने के बाद भी वे न तो किसी जिले का कलेक्टर बनें और न ही उन्हें कोई अच्छी पोस्टिंग मिली। उल्टे मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय में पिछले चार साल से टाईम गुजार रहे हैं। मांझी का अगले साल मई में रिटायरमेंट हैं। सो, नई सरकार ने सोचा कि मांझी का उद्धार कर दिया जाए। मगर सामान्य प्रशासन विभाग को यह अंदाजा नहीं था कि चुनाव आयोग में परमिशन का मामला अटक जाएगा। चूकि मांझी का नाम आखिरी दिनों में पोस्टिंग लिस्ट में जुड़ा। इसलिए पहले से चुनाव आयोग को लेटर नहीं भेजा गया। नियमानुसार निर्वाचन से किसी को हटाना होता है तो उसके लिए चुनाव आयोग का परमिशन चाहिए। क्योंकि आयोग के स्टाफ पर राज्य सरकार को कोई नियंत्रण नहीं होता। वो भी जब सामने लोकसभा चुनाव है, चुनाव आयोग और अलर्ट मोड में होता है। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार मांझी को कलेक्टर बनाने से पहले कायदे से आयोग से इजाजत ले लेनी थी। मगर वो हुआ नहीं। जीएडी ने अब मांझी को आयोग से ट्रांसफर करने का परमिशन मांगने के साथ ही उनकी जगह पर नया ज्वाइंट सीईओ अपाइंट करने के लिए तीन सदस्यीय पेनल चुनाव आयोग को भेजा है। इनमें तीनों नाम राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बने अधिकारी हैं। एक महिला आईएएस का भी लिस्ट में नाम है। सिस्टम में बैठे लोग चिंतित इसलिए हैं कि लेटर गए हफ्ता भर से अधिक हो गया है। आयोग से कोई रिप्लाई नहीं आया है। जब तक परमिशन नहीं आएगा, विपीन मांझी जिले में ज्वाईन नहीं कर सकते। मांझी इसलिए परेशान हैं कि कैरियर में पहली बार कलेक्टरी मिली, उसमें भी 12 दिन ऐसे ही निकल गए। चुनाव आयोग अब पेनल के तीन नामों से किसी एक पर टिक लगाकर उन्हें ज्वाइंट सीईओ अपाइंट करेगा, उसके बाद फिर मांझी कार्यमुक्त होंगे।

मांझी का बीजेपी से जुड़ा है तार?

आईएएस विपीन मांझी का सत्ताधारी पार्टी से ठीक-ठाक संबंध बताए जाते हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्हें बिंद्रानवागढ़ से टिकिट देने की चर्चा थी। मगर वो अंजाम तक नहीं पहुंच पाया। हालांकि, मांझी ने कभी इस संबंध में कोई संकेत नहीं दिए हैं। मगर कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया जाए।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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