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Marital rape: वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने सुप्रीम कोर्ट में याचिका, सॉलिसिटर जनरल ने दी ये दलील...

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Marital rape: वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने सुप्रीम कोर्ट में याचिका, सॉलिसिटर जनरल ने दी ये दलील...
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Supreme Court

By NPG News

नई दिल्ली। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के लिए लगी याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस ड़ी वाई चंद्रचूड़ जस्टिस पीएस नरसिम्हा व जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सरकार की तरफ से 15 फरवरी तक जवाब पेश करने को कहा। मामलें में नियमित सुनवाई 21 मार्च से शुरू होगी।

वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध मानने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट समेत कर्नाटक हाईकोर्ट में अलग अलग याचिकाएं लगी थी। खुशबू सैफी नामक याचिकाकर्ता के अलावा अन्य ने याचिका लगा कर बताया था कि भारतीय दंड सहिंता की धारा 375 ( दुष्कर्म) एक पति को अपनी पत्नी से उसकी मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाने या अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने की छूट प्रदान करता है। 375 के तहत इसे अपराध नही बल्कि अपवाद माना जाता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वैवाहिक दुष्कर्म से छूट की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह उन विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभाव है। जिनका उनके पति द्वारा यौन शोषण किया जाता है। जिस पर सुनवाई करते हुए पिछले साल 11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने विभाजित फैसला दिया था।

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की खंडपीठ ने फैसला सुनाया था। खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद रूप में "असंवैधानिक" होने का समर्थन किया। न्यायमूर्ति ने अपने निर्णय में कहा कि यह दुखद होगा अगर एक विवाहित महिला की न्याय की पुकार 162 साल बाद भी नहीं सुनी जाती है। जबकि आईपीसी के लागू होने के बाद से न्यायमूर्ति शंकर ने कहा कि बलात्कार कानून के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और ये एक समझने के अंतर पर आधारित है। वही इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने पिछले साल 23 मार्च को कहा था कि अपनी पत्नी के साथ दुष्कर्म तथा आप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप से पति को छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर कुछ अन्य याचिकाएं भी दायर की गयी है।

आज मामले की सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस मुद्दे के सामाजिक प्रभाव होंगे और कुछ महीने पहले उन्होंने राज्यो से इस मामले में अपने इनपुट साझा करने को कहा था। केंद्र का जवाब आने के बाद 21 मार्च से मामले की नियमित सुनवाई शुरू होगी।

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