रायपुर । निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता के निलंबन को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने निरस्त कर दिया है। मुकेश गुप्ता 1988 बैच के छतीसगढ़ कैडर के आईपीएस हैं। जो फिलहाल रिवर्ट होने के बाद एडीजी रैंक के अफसर है। इसी माह 30 सितंबर को उनका रिटायरमेंट है। उससे 14 दिन पहले उनका निलंबन निरस्त कर दिया गया है।
आईपीएस मुकेश गुप्ता को पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने 6 अक्टूबर 2018 को आचार संहिता लगने के कुछ ही घंटो पहले प्रमोशन देते हुए एडीजी से डीजी के पद पर प्रमोशन किया था। उनके साथ उन्ही के बैच के दो अन्य अफसरों को भी प्रमोशन दिया गया था। चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार राज्य में बनने के 8 फरवरी 2019 को अवैध फोन टैपिंग को लेकर आईपीएस मुकेश गुप्ता व एसपी नारायणपुर रजनेश सिंह के खिलाफ acb-eow में एफआईआर दर्ज की गई। मामला 2015 का है। तब मुकेश गुप्ता एसीबी के चीफ हुआ करते थे और रजनेश सिंह एसपी थे। तब नागरिक आपूर्ति निगम (नान) में घोटाले के नाम से कई नान अफसरों पर छापे पड़े थे। मामले में कई लोगों के गैर कानूनी ढंग से फोन टैपिंग किए गए थे। फोन टैपिंग मामलें में राज्य बनने के बाद यह पहला एफआईआर था। एफआईआर के दूसरे दिन 9 फरवरी 2019 को मुकेश गुप्ता व रजनेश सिंह को निलंबित कर दिया गया था।
मुकेश गुप्ता पर दूसरी एफआईआर एमजीएम ट्रस्ट में हुई आर्थिक अनियमितता के चलते हुई थी। एमजीएम ट्रस्ट ने गरीबों का निःशुल्क मोतियाबिंद ऑपरेशन कराने, शासकीय कर्मचारियों को विशिष्ट चिकित्सा सुविधा का लाभ देने, मेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षण देने के नाम पर साल 2006 में दो करोड़ और 2007 में एक करोड़ रुपये का अनुदान राज्य सरकार से प्राप्त किया था। बाद में इस राशि का दुरुपयोग करते हुए ट्रस्ट के बैंक कर्ज अदा करने में इस्तेमाल के आरोप में एमजीएम के मुख्य ट्रस्टी मुकेश गुप्ता के पिता जयदेव गुप्ता, डायरेक्टर, डॉक्टर दीपशिखा अग्रवाल के विरुद्ध भादवि की धारा 420, 406,120 (बी) तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धाराओं के तहत एसीबी में एफआईआर दर्ज की गई थी।
तीसरी एफआईआर दुर्ग जिले के सुपेला थाने में जमीन घोटाले की हुई थी। मुकेश गुप्ता को 9 फरवरी 2019 को निलंबित कर उन्हें 6 मार्च 2019 को आरोप पत्र जारी किया गया। निलंबन के खिलाफ मुकेश गुप्ता ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष 3 मई 2019 को अपील प्रस्तुत की थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुकेश गुप्ता की अपील पर राज्य सरकार की टिप्पणी मंगवाई थी। जिस पर राज्य सरकार द्वारा 1 जून 2022 को आईपीएस की अपील पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की। जिसमें राज्य सरकार ने बताया कि निलंबन नियमों के अनुसार किया गया है और निलंबन सही है। मामला अदालतों के समक्ष लंबित है और यदि मुकेश गुप्ता का निलंबन रद्द किया जाता है तो मामलों की जांच प्रभावित हो सकती है।
इसी बीच मुकेश गुप्ता ने मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स को 17 अगस्त 2022 को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत करते हुए बताया कि वह साढ़े तीन वर्षों से निलंबित है। तथा उनके खिलाफ दर्ज सभी मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई है। इसके अलावा कैट की जबलपुर बैंच ने 12 जुलाई 2019 को आदेश जारी कर राज्य सरकार द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई अनुशासत्मक कार्यवाही पर रोक लगा दी है। मुकेश गुप्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में न्यायालय के आदेशों की प्रतियां, राज्य सरकार की फाइलों की नोटशीट, और कैट के आदेश की प्रतियां प्रस्तुत की थी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 3 मई 2019 को मुकेश गुप्ता की अपील तथा 17 अगस्त 2022 को दिये गये अभ्यावेदन तथा राज्य सरकार द्वारा 1 जून 2022 को प्राप्त टीप न्यायालय के आदेश, प्रासंगिक अभिलेख तथा मामले के तथ्य व परिस्थितियों को देखते हुए माना कि मुकेश गुप्ता को निलंबित रखा जाना उचित नही है। साथ ही उनके निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया गया।