IAS News: ऐसे ब्यूरोक्रेट्सः चीफ सिकरेट्री ने जब छत्तीसगढ़ की रमन सरकार को बर्खास्त होने से बचा लिया, खुद के खिलाफ CBI जांच की सिफारिश...
IAS News: 26 मई 2012 को रमन सरकार को बर्खास्त करने की तैयारी लगभग पूरी हो गई थी। मगर चीफ सिकरेट्री ने ऐसा कुछ किया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए चीफ सोनिया गांधी को छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति शासन लगाने का इरादा त्यागना पड़ा। जानकारों का कहना है कि ऐसे नस्ल के अफसरों की घुड़सवारी आसान नहीं होती। मगर उनकी खासियत यह होती है कि कई बार वे बड़े संकट से उबार लेते हैं और उस समय यही बात चरितार्थ हुई।
IAS News: रायपुर। 25 मई 2013 की वह शाम...बस्तर के जीरम नक्सली हिंसा से पूरा देश हिल गया था। माओवादियों ने अब तक सबसे बड़ी वारदात को अंजाम देते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे, बस्तर के दिग्गज आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा समेत कांग्रेस के 30 नेताओं को मार डाला था। नक्सलियों की गोलियों का शिकार पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भी हुए। बाद में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी।
घटना की व्यापकता को देखते अगली सुबह इंडियन एयरफोर्स के स्पेशल प्लेन से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी और पार्टी के उस समय के महासचिव राहुल गांधी रायपुर पहुंच गए। पार्टी के मृत नेताओं को श्रंद्धाजलि देने के बाद दोपहर ढाई बजे राजभवन में हाई प्रोफाइल बैठक बुलाई गई। प्रधानमंत्री बैठक लेने वाले थे। पार्टी की नेता के तौर पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी साथ में थे। तब शेखर दत्त राज्यपाल थे। निर्धारित समय पर प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी और राहुल गांधी राजभवन पहुंच गए। वहां पहले से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह, चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार समेत पीएस टू सीएम एन बैजेंद्र कुमार, सिकरेट्री टू सीएम अमन सिंह और स्पेशल सिकरेट्री टू सीएम सुबोध सिंह मौजूद थे। मीटिंग में मनमोहन सिंह कम बोल रहे थे मगर सोनिया और राहुल गांधी के तेवर तमतमाए हुए थे। बैठक की शुरूआत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की। उन्होंने सबसे पहले चीफ सिकरेट्री और डीजीपी से घटना के ब्यौरा मांगा। चीफ सिकरेट्री ने उन्हें जो बताया, उससे वे संतुष्ट नहीं हुए। सोनिया और राहुल गांधी का चेहरा कड़ा हो रहा था। तीनों के हाव भाव से लग रहा था कि सरकार अब नहीं बचने वाली। खुफिया रिपोर्ट भी थी कि दिल्ली लौटते ही छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रस्ताव राष्ट्रपति भवन भेज दिया जाएगा। बैठक के लास्ट में प्रधानमंत्री ने अंग्रेजी में कहा...सिस्टम फेल हो गया है, बडे़ एक्शन की जरूरत है। दरअसल, प्रधानमंत्री और यूपीए प्रमुख को ये फीडबैक था कि कांग्रेस नेतृत्व को खतम करने के लिए सुनियोजित तौर पर जीरम कांड को अंजाम दिया गया। तभी उनकी भौंहें तनी हुईं थीं।
चीफ सिकरेट्री ने संभाला मोर्चा
बताते हैं, बैठक में राज्य सरकार बुरी कदर घिरी हुई थी और लग रहा था कि कुछ घंटे के भीतर बड़ी कार्रवाई हो सकती है तो चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा, क्षमा चाहता हूं...मेरे उपर किसी पार्टी का कभी लेवल नहीं लगा...मैं अर्जुन सिंह जी के सीएम रहने के दौरान मध्यप्रदेश में डायरेक्टर जनसंपर्क रहा...छत्तीसगढ़ के प्रथम कांग्रेसी मुख्यमंत्री अजीत जोगी का सिकरेट्री रहा हूं...अर्जुन सिंह जी ने केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान मुझे पीएस बनाया था...जीरम घाटी नक्सली हिंसा विशुद्ध रूप एक घटना है न के सुनियोजित साजिश....इसके बाद भी अगर लगता है कि कार्रवाई होनी चाहिए तो घटना की पूरी जिम्मेदारी मैं अपने सिर पर लेता हूं...अगर कार्रवाई करनी है तो मेरे खिलाफ की जाए। सुनिल कुमार ने फ्रंट पर आकर इतना प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखी कि राजभवन के कांफ्रेंस हॉल में चार-पांच सेकेंड के लिए सन्नाटा पसर गया। और इसी के बाद बैठक की दिशा बदल गई। गुस्से से भरे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बोल भी नरम पड़ गए। सीएस ने जिस साफगोई से अपनी बातें रखी, उससे दिल्ली के नेताओं को यह स्पष्ट हो गया कि घटना के पीछे कोई सियासी या प्रशासनिक साजिश नहीं है। प्रधानमंत्री ने इसके बाद आवश्यक निर्देश दिए और मीटिंग समाप्त हो गई। ब्यूरोक्रेसी में अभी भी उस घटना को याद किया जाता है। और यह दावा भी कि सुनिल कुमार की जगह अगर दूसरा कोई चीफ सिकरेट्री होता तो रमन सरकार बर्खास्त हो गई होती। क्योंकि, जीरम घटना से पूरा देश इतने सकते में था कि राष्ट्रपति शासन का विरोध भी नहीं होता।
कड़क अफसर की घुड़सवारी कठिन
अजीत जोगी और अर्जुन सिंह भले ही सुनिल कुमार को अपनी टीम में रखा मगर वैसे आईएएस को चलाना कठिन होता है। रमन सिंह की चूकि दूसरी पारी का आखिरी समय चल रहा था। सरकार चाहती थी कि सुनिल कुमार को सीएस बनाकर प्रशासनिक कसावट का संदेश दिया जाए। उस समय अमन सिंह और बैजेंद्र कुमार के बीच तालमेल भी बढ़ियां था। सो, रमन सिंह से फ्री हैंड मिलने के बाद दोनों अफसरों ने दिल्ली जाकर सुनिल कुमार को छत्तीसगढ़ लौटने के लिए तैयार किया। सुनिल उस समय भारत सरकार में एडिशनल सिकरेट्री ह्यूमन रिसोर्स थे। नौकरशाही की जानकारां का कहना है कि सुनिल कुमार अपनी शर्तों पर छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री बनने के लिए तैयार हुए। और उन्होंने अपने हिसाब से काम भी किया। अमन सिंह और बैजेंद्र कुमार भी बराबर उनके सम्मान का ध्यान रखते थे। सुनिल कुमार का औरा ये था कि जिस मीटिंग में वे होते थे, उसमें और किसी के लिए मौका नहीं होता था। तब एक सीनियर ब्यूरोक्रेट्स ने एनपीजी न्यूज से कहा था कि ऐसे अफसरों को चलाना सरकार के लिए आसान नहीं होता। मगर ऐसे अधिकारी कई बार बड़े संकटों से सरकार को उबार लेते हैं। जीरम घटना में इसे लोगों ने देखा भी।
खुद के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश
सुनिल कुमार 1979 बैच के आईएएस अफसर थे। वे रायपुर के कलेक्टर रहे। रायपुर कलेक्टरी से ही मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने भोपाल बुलाकर डीपीआर बनाया था। छत्तीसगढ़ का चीफ सिकरेट्री बनने के बाद सुनिल कुमार की मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से पटरी नहीं बैठी। स्थिति यह हो गई थी कि कैबिनेट की बैठकों में दोनों के तेवर कड़े होते थे। बृजमोहन अग्रवाल ने एक घोटाले में जब बड़ा आरोप लगाया तो उसके अगले दिन सुनिल कुमार ने सीबीआई डायरेक्टर को पत्र लिख अपने खिलाफ जांच करने का आग्रह कर डाला।
नाम से कांपते थे अफसर
सुनिल कुमार करीब दो साल 2012 से लेकर फरवरी 2014 तक छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री रहे। पुराने मंत्रालय को नए में उन्होंने शिफ्थ कराया। सुनिल कुमार के सीएस रहने के दौरान सारे सिकरेट्री सुबह 10 बजे आफिस पहुंच जाते थे। उनकी मीटिंग से पहले अधिकारियों की झुरझुरी छूटती रहती थी कि कहीं भरी मीटिंग में डांट न पड़ जाए।
नियम-कायदों में रहकर सपोर्ट
सुनिल कुमार के साथ ऐसा नहीं था कि वे सरकार की भी नहीं सुनते थे। रास्ता वे जरूर बता देते थे। जब बिलासपुर हाई कोर्ट में अफसरों के संविदा नियुक्ति पर केस चल रहा था, तब उन्होंने छत्तीसगढ़ संविदा भर्ती अधिनियम बनाकर मामले को ही खतम कर दिया। जाहिर है, संविदा भर्ती नियम बनने के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था।