Commissioner Power: कमिश्नरों के कद और अधिकारों पर ऐसे कैंची चल गई, पढ़िये कमिश्नर अब किस श्रेणी के अफसर पर कार्रवाई कर सकते हैं...
Commissioner Power: संभागीय कमिश्नरों द्वारा बीईओ को सस्पेंड किया जा रहा है। इस पर शिक्षक नेता सवाल खड़े कर रहे हैं। डीपीआई ऑिॅफस वालों को भी ये भा नहीं रहा। बहरहाल, इसी चक्कर में एनपीजी न्यूज में कल चूकवश एक खबर लग गई कि कमिश्नरों को बीईओ को सस्पेंड करने का अधिकार नहीं है। जबकि, ऐसा नहीं है। नीचे पढ़िये डिविजनल कमिश्नर किसे सस्पेंड कर सकते हैं किसे नहीं और मध्यप्रदेश के समय कितने थे ताकतवर...

Commissioner Power
Commissioner Power: रायपुर। मध्यप्रदेश के समय कमिश्नरों को जलवा होता था। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कमिश्नर सिस्टम खतम होने तक कमिश्नरों के पास अकूत पावर होते थे। मगर छोटे राज्य में कमिश्नरों की उपयोगिता न होने का हवाला देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कमिश्नरी की व्यवस्था को खतम कर दिया था। दिसंबर 2003 में जब बीजेपी सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह ने फिर से कमिश्नर सिस्टम प्रारंभ किया।
कमिश्नरों का पावर घटा
मध्यप्रदेश के समय आज भी कमिश्नरों को अधिकार दिया गया है कि वे क्लास वन के अधिकारी को सस्पेंड कर सकते हैं। मगर छत्तीसगढ़ में जब फिर से कमिश्नर सिस्टम शुरू हुआ तो सामान्य प्रशासन विभाग ने कमिश्नरों के अधिकारियों में कटौती कर 2008 में कार्रवाई संबंधी आदेश जारी किया। उसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि कमिश्नर क्लास टू तक के अधिकारी को सस्पेंड कर सकते हैं।
बीईओ और व्याख्याता को सस्पेंड
शिक्षक नेता इस बीईओ और व्याख्याता को कमिश्नर द्वारा सस्पेंड करने पर प्रश्न उठाया जा रहा है मगर जीएडी का 6 अगस्त 2008 का आदेश देखें तो उसमें साफ लिखा है कि कमिश्नर क्लास टू के अधिकारियों को सस्पेंड कर सकते हैं। बीईओ और व्याख्याता क्लास टू केटेगरी में आते हैं, इसलिए कमिश्नर उन्हें निलंबित कर सकते हैं।
कलेक्टर कमिश्नर को रिकमांड क्यों
वैसे आमतौर पर कलेक्टर विभाग प्रमुखों को कार्रवाई के लिए अनुशंसा करते हैं। मगर कलेक्टरों के कई पत्र विभागों में दबे रह जाते हैं और कार्रवाई नहीं हो पाती। इस चक्कर में फास्ट कार्रवाई के लिए कलेक्टर कार्रवाई के लिए कमिश्नर को भेजना ज्यादा मुफीद समझते हैं।
कमिश्नरों का वजन कम!
छत्तीसगढ़ में सरकारों ने कलेक्टरों को फ्री हैंड देने के लिए कमिश्नरों का रुतबा कम कर दिया। कमिश्नर अब सिर्फ राजस्व मामलों की सुनवाई तक सिमट कर रह गए हैं। कमिश्नरों के अधिकारों पर सरकारों ने कैंची चलाई ही, उनका कद भी कम कर दिया। छत्तीसगढ़ में पांच संभाग हैं, इनमें एक में भी डायरेक्ट आईएएस कमिश्नर नहीं हैं। पिछले 15 साल की बात करें, तो केडीपी राव, सोनमणि बोरा और यशवंत कुमार के अलावा कोई डायरेक्ट आईएएस कमिश्नर नहीं रहा।
कलेक्टरों के बीच कोआर्डिनेशन
कमिश्नरों का काम कलेक्टरों के बीच कोआर्डिनेशन के साथ कोई बड़ा मामला आया तो उसमें मार्गदर्शन करना होता था। मगर छोटे राज्य होने की वजह से कलेक्टर और सरकार के बीच की कमिश्नर वाली कड़ी का कोई मतलब नहीं रह गया है। कलेक्टर खुद सरकार में बैठे सीनियर और प्रभावशाली अधिकारियों के संपर्क में रहकर अपनी लॉयजनिंग करते रहते हैं। और, जब सरकार में उनके सीधे संपर्क हैं तो फिर कमिश्नरों को वे क्यों महत्व देंगे। वैसे अधिकांश कलेक्टर चाहते भी नहीं कि कोई डायरेक्ट आईएएस कमिश्नर बने। विष्णुदेव साय जब मुख्यमंत्री बने थे, तब ये बाते आई थीं कि कुछ डायरेक्ट आईएएस को कमिश्नर बनाकर इस पद का औरा बढ़ाया जाए। मगर ऐसा हो नहीं पाया, क्योंकि कलेक्टरों की भी अपनी लॉबी है।