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Chhattisgrah Tarkash 2024: फिल्म अंधा कानून और पीएससी

Chhattisgrah Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय दीक्षिक का निरंतर 15 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Chhattisgrah Tarkash 2024: फिल्म अंधा कानून और पीएससी
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By Sanjay K Dixit

तरकश, 11 फरवरी 2024

संजय के. दीक्षित

फिल्म अंधा कानून और पीएससी

80 के दशक में अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी की एक फिल्म आई थी अंधा कानून। इस फिल्म के नायक अमिताभ को देश के सिस्टम पर भरोसा नहीं रहता और वे अपने हिसाब से विरोधियों से निबटते हैं। इस पिक्चर में उस समय का एक बेहद हिट गाना भी था, ये अंधा कानून है...।

हरहाल, बात छत्तीसगढ़ पीएससी की। वर्षा डोंगरे की लंबी लड़ाई के बाद बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए पीएससी 2003 परीक्षा परिणाम को निरस्त कर दिया था। और नए सिरे से स्केलिंग कर रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया था। मगर क्या करें...इस देश में आरोपियों के हाथ भी लंबे हो गए हैं। काली कमाई वाले अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में करोड़ी वकील को खड़ा कर स्टे हासिल कर लिया। जबकि, ईओडब्लू की जांच में दस्तावेजी प्रमाण मिले थे कि किस तरह पीएससी ने खेला किया। आरटीआई में पीएससी ने खुद जो जानकारियों दी, उसके बाद कुछ कहने के लिए बच नहीं जाता। बावजूद इसके, 2003 पीएससी के अफसरों को सर्विस करते करीब 18 साल हो गए हैं। जब तक स्टे हटेगा या फैसला आएगा, तब तक लाखों, करोड़ों का वारा-न्यारा कर सभी अधिकारी रिटायर हो चुके होंगे।

ब बात 2021 और 2022 पीएससी की। सीएम विष्णुदेव साय ने बड़ा स्टैंड लेते हुए सीबीआई जांच का ऐलान किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हमारे बच्चों के कैरियर से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। सीएम की मंशा नेक हैं। तभी सीबीआई जांच की घोषणा हुई। मगर सूबे के युवाओं को पीएससी 2003 बार-बार याद आ जा रहा। जो लोग बेटे-बेटी, बेटी-दामाद को डिप्टी कलेक्टर बनाने एक-एक खोखा दे सकते हैं, समझा जा सकता है...ऐसे बड़े लोगों के हाथ कितने बड़े होंगे।

मंत्रियों को मौका

स्टेट में काम करने वाले आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सीधे मुख्यमंत्री के नियंत्रण में होते हैं। सीआर से लेकर ट्रांसफर, पोस्टिंग, डीई, कार्रवाई...सब सीएम लेवल पर होता है। मंत्रियों का इसमें कोई रोल नहीं होता। इसके अलावा कलेक्टर कांफ्रेंस हो या एसपी, आईजी कांफ्रेंस... मुख्यमंत्री ही इसे मलेते हैं। मगर अपने सीएम विष्णुदेव साय मंत्रियों को काम करने और दिखाने का भरपूर मौका दे रहे हैं। उनकी सरकार की पहली एसपी, आईजी कांफें्रस 10 फरवरी को रायपुर में हुई। मुख्यमंत्री इसमें पहुंचे और शुरूआती एड्रेस कर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से जशपुर रवाना हो गए। उनकी जगह गृह मंत्री विजय शर्मा एसपी, आईजी साहबों की क्लास लिए। वाकई, विजय के लिए बड़ा दिन रहा। क्योंकि, किसी राज्य के गृह मंत्री को यह मौका नहीं मिलता कि वो ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों की क्लास ले। विजय तेज और दबंग तो हैं ही, लगता है सरकार से उन्हें पावर भी भरपूर मिल रहा है। वरना, कोई सीएम शीर्ष अफसरों की लगाम मंत्रियों को नहीं सौंपता।

उलझन में सिस्टम?

अभी तक राजभवन में सिकरेट्री हो या फिर एडीसी, वहां से सभी ठीकठाक पोस्टिंग लेकर ही निकलते हैं। सिकरेट्री में आईसीपी केसरी पीडब्लूडी सिकरेट्री बनकर राजभवन से मंत्रालय आए थे तो सुशील त्रिवेदी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए गए थे। पीसी दलेई से लेकर जवाहर श्रीवास्तव, एसके जायसवाल सभी को रिटायर होने के बाद भी कोई-न-कोई पोस्टिंग मिली थी। इस समय अमृत खलको राजभवन में सिकरेट्री हैं। उन्होंने राज्य सूचना आयोग में बतौर सिकरेट्री के लिए अप्लाई किया है। खलको फिलवक्त संविदा में राजभवन में पोस्टेड है। पीएससी 2021 की परीक्षा में उनका बेटा और बेटी दोनों डिप्टी कलेक्टर में सलेक्ट हो गए। जाहिर है, इसको लेकर काफी बवाल मचा था। पीएससी स्कैम को लेकर विष्णुदेव सरकार अब सख्ती के मूड में है। सीबीआई जांच की घोषणा भी हो गई है। ऐसे में, हो सकता है खलको को राजभवन से खाली हाथ निकलना पड़े।

कलेक्टरों का चेक और सूटकेस

नई सरकार ने स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल योजना को समाप्त कर कलेक्टरों की प्रबंध समिति को भंग कर दिया। बता दें, कलेक्टरों की ये प्रबंध समिति नहीं, पैसा निकासी समिति थी। सरकार ने कलेक्टरों को डीएमएफ से इन स्कूलों को चलाने का जिम्मा सौंपा और कलेक्टरों ने दोनों हाथांं से डीएमएफ उड़ाने का माध्यम बना लिया। कई गुना रेट पर फनीर्चर से लेकर ब्लैक बोर्ड, प्रोजेक्टर जैसे समान खरीद डाले। चूकि डीएमएफ के मालिक कलेक्टर होते हैं, सो उनसे कोई पूछ नहीं सकता कि वे इस राशि को किस मद में खर्च कर रहे हैं। इससे हुआ यह कि जिन स्कूलों में बिजली नहीं, वहां पांच गुने रेट पर टीवी और प्रोजेक्टर, इलेक्ट्रानिक ब्लैक बोर्ड खरीदे गए। कलेक्टरों ने जिन शिक्षकों को नोडल अधिकारी बनाया, वे पोस्टिंग में खेला कर दिए। डे़ढ़ लाख से लेकर ढाई लाख तक लेकर ग्रामीण इलाकों के हिंदी टीचरों को शहरों के अंग्रेजी स्कूलों में पोस्टिंग दे दी। शिक्षकों भी लगा कि पैसा लेकर रायपुर में दलालों का चक्कर काटने से अच्छा है, अंग्रेजी स्कूलों में डेपुटेशन लेकर शहर आ जाओ। कुल मिलाकर कलेक्टर्स अंग्रेजी स्कूल को कमाउ पूत बना डाले थे। एक हाथ से डीएमएफ का चेक काटो, और दूसरे हाथ से सप्लायरों से सूटकेस ले लो।

युवा मंत्री, युवा सिकरेट्री

वित्त मंत्री अमर अग्रवाल को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ सरकार का बजट पेश करने वाले सभी मंत्री या सीएम 60 प्लस रहे। छत्तीसगढ़ के पहले वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने तीन बार बजट पेश किया। वे 60 प्लस रहे। इसके बाद तीन बजट पेश करने वाले अमर अग्रवाल अंडर 45 थे। इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 12 और भूपेश बघेल ने पांच बजट पेश किया। इस बार बजट पेश करने वाले ओपी चौधरी न केवल अंडर 45 हैं बल्कि पहली बार विधायक बनकर सदन में पहुंचे हैं। हिन्दी से यूपीएससी क्लियर करने वाले माटी पुत्र ओपी ने खुद से बजट भाषण तैयार किया था। ओपी ने जब लच्छेदार बोलना शुरू किया तो सदन इस युवा मंत्री के भाषण को सिर्फ देखता और सुनता रहा। 1.24 घंटे के संबोधन में कोई टोकाटोकी नहीं। मंत्री के साथ बजट को मूर्तरूप देने वाले फायनेंस सिकरेट्री भी कोई पके बाल वाले नहीं हैं। आईएएस में ओपी से जस्ट जूनियर हैं। 2006 बैच के। दो साल पहले ही सिकरेट्री बने हैं। वरना, पहले एसीएस या पीएस लेवल के अफसर ही फायनेंस सिकरेट्री होते थे। डीएस मिश्रा, अजय सिंह, अमिताभ जैन ने काफी सालों तक वित्त विभाग संभाला। उसके बाद कुछ दो बार अलरमेल मंगई डी वित्त सचिव रहीं।

प्रेशर में नहीं सरकार

89 अफसरों की पहली प्रशासनिक सर्जरी करने के बाद कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया था कि बड़ी लिस्ट निकालकर सरकार ने कुछ ब्लंडर कर दिया। मीडिया में खबरें भी वायरल कराई गई कि पीएमओ तक में शिकायत हो गई है...अब खैर नहीं। मगर सरकार गीदड़भभकी से प्रेशर में नहीं आई। प्रशासनिक लिस्ट में 19 जिलों के कलेक्टरों का ट्रांसफर किया गया था। पुलिस की लिस्ट में भी कम नहीं हुआ। चार रेंज के आईजी हटाए गए तो 25 जिलों के एसपी बदल दिए गए।

रणछोड़दास एसपी

एसपी की लिस्ट देर से आई मगर ठीकठाक रही। सरकार ने मेरिट को वेटेज देते हुए पिछली सरकार में कुछ अच्छे पुलिस अधीक्षकों को फिर से कंटीन्यू किया करने से परहेज नहीं किया। कुल मिलाकर अधिकांश बड़े जिलों में इस बार रिजल्ट देने वाले तेज-तर्रार अफसरों को बिठाया गया है। मगर मजबूरी में ही सही...एक रणछोड़दास अफसर को जिला मिल गया। 12 जुलाई 2009 को मोहला मानपुर में हुई नक्सली हिंसा में राजनांदगांव के एसपी विनोद चौबे शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद इस अफसर को मोहला मानपुर का एसडीओपी बनाया गया। मगर पुलिस अधिकारी ने नक्सलियों की खौफ के डर से वहां ज्वाईन करने से साफ इंकार कर दिया था। तब रमन सरकार ने बस्तरिया आईपीएस सरयू राम सलाम को वहां भेजा। चलिए, ठीक है...डेमोक्रेसी में वर्गवाद की वजह से कई बार ऐसे फैसले सरकार को लेने पड़ते हैं। मगर विडंबना यह है कि सलाम मोहला मानपुर में ढाई साल रहे, जब उस इलाके के नाम से पुलिस वाले कांप जाते थे। आखिर, पहली बार नक्सली हिंसा में देश में कोई एसपी शहीद हुआ था। उससे पहिले सलाम बस्तर में भी बारुदी विस्फोट में बाल-बाल बचे थे। मगर इस अफसर को अभी तक एक बार भी एसपी बनने का मौका नहीं मिला।

राजस्व बोर्ड चेयरमैन

ब्यूरोक्रेसी में राजस्व बोर्ड को शंटिंग स्टेशन माना जाता है। यानी लूपलाईन वाली पोस्टिंग। सरकार जिस अफसर से नाराज होती है, उसे राजस्व बोर्ड का चेयरमैन बना दिया जाता है। चूकि यह चीफ सिकरेट्री रैंक की कुर्सी है, इसलिए किसी सीएस को हटाना होता है या फिर इस रैंक के किसी अफसर को मंत्रालय से हटाना होता है या किसी बैच का अफसर अगर चीफ सिकरेट्री बन गया तो उस बैच के दीगर अफसर को राजस्व बोर्ड एडजस्ट किया जाता है। मसलन, 87 बैच के आईएएस आरपी मंडल चीफ सिकरेट्री बनें तो सीके खेतान को राजस्व बोर्ड भेज दिया गया। जाहिर है, पिछली सरकार खेतान से किसी बात से नाराज थी, इसलिए बैचवाइज सीनियर होने के बाद भी उन्हें सीएस बनने का मौका नहीं मिला। मंडल के बाद अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री बने। अब लगता है, अमिताभ अगले साल मई में रिटायर होंगे, तो कोई बड़ा अफसर राजस्व बोर्ड जाएगा। अमिताभ के बाद अगर सुब्रत सीएस बन गए तो ठीक वरना, 94 बैच का कोई आईएएस जाएगा राजस्व बोर्ड। क्योंकि, इस बैच में कई चार आईएएस हैं। और सीएस एक ही बनेगा।

सीएस का मिथक

ब्यूरोक्रेसी में मिथक है कि जो अफसर प्रशासन अकादमी में पोस्टिंग पाता है, वह चीफ सिकरेट्री नहीं बन पाता। बीकेएस रे से लेकर सरजियस मिंज, डीएस मिश्रा तक कई ऐसे बड़े नाम हैं, जो ठीकठाक अफसर होने के बाद भी चीफ सिकरेट्री की कुर्सी तक नहीं पहुंंच पाए। और जो सीएस बने हैं, वे कभी प्रशासन अकादमी में नहीं रहे। ऐसे में, एसीएस सुब्रत साहू को कुछ पूजा-पाठ करा लेना चाहिए। क्योंकि, वे इस समय प्रशासन अकादमी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इन चर्चाओं में कितनी सत्यता है कि सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड सीनियर आईएएस अमित अग्रवाल क्या छत्तीसगढ़ लौटने वाले हैं?

2. छत्तीसगढ़ के दोनों उप मुख्यमंत्रियों में अभी सबसे प्रभावशाली कौन हैं?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

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