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Chhattisgarh Tarkash: नए CM को ऐसे बधाई

Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय दीक्षित का निरंतर 14 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Chhattisgarh Tarkash: नए CM को ऐसे बधाई
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By Sanjay K Dixit

तरकश, 26 नवंबर 2023

संजय के. दीक्षित

नए CM को ऐसे बधाई

बात 15 बरस पुरानी है मगर काउंटिंग के मौके पर मौजूं भी। 2008 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने सीएम का कोई चेहरा प्रोजेक्ट नहीं किया था मगर व्हील चेयर पर होने के बाद भी अजीत जोगी का जिस तरह दबदबा था, उससे प्रतीत हो रहा था कि सरकार अगर पलटी तो जोगीजी ही मुख्यमंत्री होंगे। उस समय की इस सबसे दिलचस्प घटना का ब्यौरा देने से पहले बता दें कि 2003, 2008 और 2013 तीनों विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस में नौ-दस सीटों का ही फासला रहा है। याने चार से पांच सीटें किसी पार्टी की बढ़ती तो बराबर की स्थिति। बहरहाल, आठ दिसंबर को तब काउंटिंग थी। दोपहर तक लग रहा था कि कुछ भी हो सकता है। घड़ी का कांटा जैसे ही एक पर पहुंचा तो कांग्रेस एकबारगी उपर आ गई। रंग बदलने में माहिर ब्यूरोक्रेट्स नतीजों पर टकटकी लगाए बैठे थे। जैसे ही रिजल्ट का ट्रेंड कांग्रेस की तरफ मुड़ा, भावी सीएम को सबसे पहिले बधाई देने अफसरों की गाड़ियां दौड़ पड़ी। तब राजधानी के देवेंद्र नगर आफिसर्स कालोनी में सारे आईएएस रहते थे। वहां से जोगीजी के सागौन बंगला की दूरी बमुश्किल ढाई किलोमीटर होगी। मगर आईएएस नहीं चाहते थे कि जोगी साहेब को बधाई देने में एक मिनट भी पीछे रहे। लिहाजा, एक-एक करके तीन गाड़ियां काली मंदिर और नीर भवन के बीच में आकर खड़ी हो गई। उस समय व्हाट्सएप था नहीं। बेचैनी में वे मोबाइल पर अपडेट लेते रहे। मगर लास्ट मोमेंट में बाजी पलट गई...फायनली बीजेपी जीत गई। चूकि सीएम हाउस भी काली मंदिर से दो मिनट की दूरी पर है, सो नौकरशाहों की गाड़ियां सागौन बंगले की तरफ से सीएम हाउस की तरफ टर्न हो गईं। उस समय मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह का सिक्यूरिटी का तामझाम उतना नहीं था। विक्रम सिसोदिया को फोन लगाए और पांच मिनट के भीतर तीनों आईएएस रमन सिंह को यह कहते हुए बधाई दे रहे थे...बधाई सर...मैं आपसे कहा था न, और लगभग वैसा ही रिजल्ट आया है।

चमत्कारिक योजना और 1 सीट

2006 में कोटा उपचुनाव में करारी हार के बाद भाजपा ने विधानसभा चुनाव से सालेक भर पहिले ब्रम्हास्त्र चलाते हुए चावल योजना लांच किया था। उसमें दो रुपए किलो के हिसाब से 35 किलो चावल दिया जाना था। तब मार्केट में वही चावल 17 से 20 रुपए का था। एक तरह से कहें तो गरीबों के लिए यह फ्री का राशन था। इसकी गूंज पूरे देश में हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह चाउर वाले बाबा कहलाने लगे। अब बात करोड़ों की इस मुफ्त चावल योजना का सियासी लाभ का...तो 2008 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को मात्र एक सीट का इजाफा हुआ। 2003 में बीजेपी की झोली में 49 सीटें आई थी, 2008 में बढ़कर 50 हुईं। राजनीतिक प्रेक्षक भी नतीजों से हैरान रह गए थे। किसी को अंदाज नहीं था कि इतनी बड़ी योजना से सत्ताधारी पार्टी की महज एक सीट बढ़ेगी।

कांग्रेस का गढ़, छत्तीसगढ़?

अटल जी ने जब छत्तीसगढ़ राज्य बनाया तब कहा जाता था कि छत्तीसगढ़ की वजह से मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार नहीं बन पाती थी, इसलिए एनडीए सरकार ने कांग्रेस के गढ़ छत्तीसगढ़ को अलग कर दिया। हालांकि, ये भी एक विडंबना रहा कि कांग्रेस के इस गढ़ में बीजेपी के डॉ0 रमन सिंह ने 15 साल तक राज किया। 2018 के विस चुनाव में बीजेपी जब औधे मुंह गिरी तो पार्टी के भीतर का क्लेश सतह पर आ गया। चुनाव के बाद पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जब रायपुर आए तो एक गुजरात मूल के एक पूर्व विधायक भरी मीटिंग में पार्टी नेतृत्व पर हार का ठीकरा फोड़ते हुए बरस पड़े थे। इस पर अमित शाह ने उन्हें नसीहत दी थी कि कांग्रेस के गढ़ में बीजेपी की 15 साल सरकार रही, ये क्या कम है। बहरहाल, देखना यह है कि अबकी आक्रमक रणनीति की बदौलत भाजपा कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा पाती है या फिर कांग्रेस का गढ़ सुरक्षित रहेगा।

कंफ्यूज ब्यूरोक्रेसी

ब्यूरोक्रेसी आपसी बातचीत में सत्ताधारी पार्टी को 55 सीट दे रही है मगर असलियत यह है कि सियासी पंडितों और नेताओं की तरह वे भी रिजल्ट को लेकर कंफ्यूज्ड हैं। कभी कांग्रेस की सरकार बनाते हैं तो कभी भाजपा की। छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी भी मानती हैं कि भाजपा अगर 35 पर सिमट गई तभी विपक्ष में बैठेगी। वरना, 40 आ गया तो अमित शाह बाकी काम पूरा कर देंगे। बहरहाल, हवा का रुख भांपने में माहिर आईएएस अफसर सेफ गेम खेल रहे हैं। सुबह कांग्रेस के दिग्गज नेताओं या उनके लोगों को साधने की कोशिश तो शाम को भाजपा नेताओं को जीत का गणित समझाना...उनका दिनचर्या बन गया है। जाहिर सी बात है कि देश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित सर्विस के अधिकारियों की पोस्टिंग सबसे बड़ी कमजोरी होती है। और अच्छी पोस्टिंग सरकार के गुडबुक के बिना संभव नहीं। सो, बेचारों की ये मजबूरी भी है।

खाली डिब्बा, खाली बोतल...

सरकार ने वोटिंग से पहले कर्मचारियों को खुश करने चार परसेंट डीए देने के लिए अनुमति मांगी थी मगर आयोग ने उसे अनसूना कर दिया था। मगर मतदान होने के हफ्ते भर उसे हरी झंडी मिल गई है। लिहाजा, छत्तीसगढ़ में अब भारत सरकार के बराबर कर्मचारियों का डीए हो जाएगा। जीएडी ने चूकि खुद ही अनुमति मांगी थी इसलिए अब इसमें ना-नुकुर करने की गुंजाइश नहीं है। याने खजाने में अक्टूबर, नवंबर का रेवेन्यू आया, वह भी अब कर्मचारियों, अधिकारियों के डीए में निकल जाएगा। नई सरकार किसी की भी बनें, स्थिति विकट रहेगी।

20 हजार करोड़ का टेंशन-1

विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा ने घोषणाओं का पिटारा खोलने में कोई कंजूसी नहीं की। बल्कि दोनों में होड़ लग गई...मेरा ज्यादा, नहीं मेरा ज्यादा। मगर अब नवंबर की रुमानी मौसम में भी वित्त विभाग के अधिकारियों की सांसें फुल रही है। नेताजी लोगों को घोषणाएं करने में क्या जाता है, धन की व्यवस्था वित्त विभाग को करनी होती है। फायनेंस के अधिकारी दिन-रात इस गुनतारे में लगें हैं कि इतनी राशि आएगी किधर से। दोनों ही पार्टियों ने कमोवेश जो घोषणाएं की हैं, उसकी पूर्ति के लिए 20 हजार करोड़ अतिरिक्त रेवेन्यू बढ़ाना होगा। बीजेपी ने 25 दिसंबर तक दो साल का बोनस देने का वादा किया है और इसके बाद धान का एकमुश्त भुगतान भी। ये दोनों घोषणाएं बिना लोन लिए पूरा कर पाना संभव नहीं। क्योंकि, चार हजार करोड़ बकाया बोनस पर जाएगा। और 20 हजार करोड़ धान के एकमुश्त भुगतान पर। याने 14 हजार करोड़ तुरंत चाहिए। कांग्रेस का भी लगभग ऐसा ही है।

20 हजार करोड़ का टेंशन-2

छत्तीसगढ़ में राजस्व का मुख्य स्त्रोत माईनिंग, ट्रांसपोर्ट, शराब, स्टांप ड्यूटी, इलेक्टिसिटी ड्यूटी है। इसके अलावा आधे दर्जन और छोटे-मोटे टैक्सेज हैं। अफसरों को पूरा कांफिडेंस है कि 20 हजार करोड़ एक्सट्रा रेवेन्यू बढ़ाना कठिन काम नहीं है मगर उसके लिए टैक्स बढ़ाना पड़ेगा। वो भी सरकार बनते ही इसे मिशन मोड में करना होगा। इसमें अगर लेट हुआ तो राज्य की वित्तीय स्थिति डगमगा जाएगी। मगर इसमें दिक्कत यह है कि टैक्स बढ़ाने के लिए पॉलीटिशियन कितने तैयार हैं। चार महीने बाद अप्रैल, मई में लोकसभा चुनाव है। ज्यादा टैक्स बढ़ गया तो लोकसभा चुनाव के नतीजे प्रभावित होंगे। ऐसे में, दोनों पार्टियों के हाईकमान नहीं चाहेंगे कि लिमिट से ज्यादा टैक्स बढ़ाए जाएं। ऐसे में, राज्य की वित्तीय स्थिति का भविष्य ठीक नजर नहीं आ रहा।

अब जनार्दन की शरण में

चुनाव में नेताओं ने जनता का हाथ-पैर जोड़ने में कोई कमी नहीं की। क्या नहीं किया...सफेद लिफाफा, चेपटी, साड़ी, कंबल सब दिया। मगर सूबे के ऐसे निर्मम वोटर....बड़े-बड़े सियासी सूरमा भी हवा का रुख भांप नहीं पा रहे। एक आदमी जीतवाता है, दूसरा टक्कर बताता और तीसरे से पूछो तो बोलेगा भइया निबट रहे हैं। ऐसे में, नेताजी लोग अब भगवान की शरण में भाग रहे। शायद वहां से कुछ हो जाए। बीजेपी, कांग्रेस के नेता सबसे अधिक महाकाल और तिरुपति बालाजी का चक्कर मार रहे हैं। बीजेपी के एक बड़े नेता और सीएम पद के दावेदार महाकाल के दरबार में मत्था टेककर लौट चुके हैं। तो एक बड़े नेता के साथ एक विधायक और महामंत्री बालाजी पहुुंच चुके हैं। एक कांग्रेस नेता कामख्या वाली देवी के शरण में हैं। देखिए, किस पर कितनी कृपा बरसती है।

8 के बाद रामराज्य?

चुनाव आयोग ने आचार संहिता का ऐलान होते ही एक झटके में दो कलेक्टर, तीन एसपी समेत आठ अधिकारियों को हटा दिया। इसके बाद एक पटवारी तक पर कार्रवाई नहीं हुई। तो इसका मतलब निकाला जाए कि चुनाव आयोग की कार्रवाई के बाद चुनाव़ में रामराज्य आ गया? क्या छत्तीसगढ़ में पैसे नहीं बंटे, साड़ी, कंबल और शराब इस बार एकदम रुक गया। चुनाव आयोग ने भांति-भांति के 50 से अधिक आब्जर्बर अपाइंट किए थे। ये आब्जर्बर किधर क्या कर रहे थे किसी को पता नहीं चला। कांग्रेस-बीजेपी के लोग शिकायत करते रहे, कोई कार्रवाई नहीं हुई। चुनाव पर निगरानी करने आए एक आईएएस आब्जर्बर पर आयोग को निगरानी करनी पड़ गई। सुबह से शाम तक शराब में डूबे रहने वाले आईएएस को आखिरकार हटाना पड़ गया। इस बार सिर्फ एक बार आयोग का फुलबोर्ड आया, उसके बाद फिर कोई नहीं। कुल मिलाकर चुनाव आयोग ने शुरूआत में कुछ अफसरों को कौंवा बनाकर टांग दिया, उसके बाद कुछ नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. बीजेपी के एक बड़े नेता किस आईपीएस अधिकारी की सलाह पर काम कर रहे हैं?

2. इस विधानसभा चुनाव में युवा, महिलाएं और कर्मचारी सरकार का फैसला करेंगे या किसान?

Sanjay K Dixit

संजय के. दीक्षित: रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। भोपाल से एमजे। पिछले 30 साल में विभिन्न नेशनल और रीजनल पत्र पत्रिकाओं, न्यूज चैनल में रिपोर्टिंग के बाद पिछले 10 साल से NPG.News का संपादन, संचालन।

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